“मीठे
बच्चे– तुम्हें शुद्ध नशा होना चाहिए कि हम श्रीमत पर अपने ही तन-मन-धन से
खास भारत आम सारी दुनिया को स्वर्ग बनाने की सेवा कर रहे हैं”
प्रश्न: तुम बच्चों में भी सबसे अधिक सौभाग्यशाली किसको कहें?
उत्तर:जो
ज्ञान को अच्छी रीति धारण करते और दूसरों को भी कराते हैं, वे बहुत-बहुत
सौभाग्यशाली हैं। अहो सौभाग्य तुम भारतवासी बच्चों का, जिन्हें स्वयं भगवान
बैठकर राजयोग सिखला रहे हैं। तुम सच्चेस च्चे मुख वंशावली ब्राह्मण बने
हो। तुम्हारा यह झाड़ धीरे-धीरे बढ़ता जायेगा। घर-घर को स्वर्ग बनाने की
सेवा तुम्हें करनी है।
ओम् शान्ति।
तुम
बच्चे समझते हो कि हम सेना हैं। तुम हो सबसे पावरफुल क्योंकि
सर्वशक्तिमान् के तुम शिव शक्ति सेना हो। इतना नशा चढ़ना चाहिए। बाबा यहाँ
नशा चढ़ाते हैं, घर में जाने से भूल जाते हैं। तुम शिव शक्ति सेना क्या कर
रहे हो? सारी दुनिया जो रावण की जंजीरों में बंधी हुई है, उनको छुड़ाते हो।
यह शोकवाटिका में हैं। भल एरोप्लेन में घूमते हैं। बड़े-बड़े मकान हैं,
परन्तु यह तो सब खत्म होने वाले हैं। इनको रूण्य के पानी (मृगतृष्णा) मिसल
राज्य कहा जाता है। बाहर से देखने में भभका बहुत है, अन्दर पोलमपोल लगा हुआ
है। द्रोपदी का मिसाल भी है। बाबा कहते हैं कि मैं जब आया था तो यही सब था
जो अभी तुम देख रहे हो। पार्टीशन भी अब हुआ जो तुम देख रहे हो। बाकी लड़ाई
के मैदान आदि की तो बात है नहीं। यह रथ है जिसमें शिवबाबा विराजमान हो
बैठकर बच्चों को ज्ञान देते हैं। तुम भारत की सेवा कर रहे हो। जो भी
त्योहार हैं, इस भारत में मनाये जाते हैं– वह सब अभी के हैं। तीजरी की कथा,
गीता की कथा, शिव पुराण, रामायण आदि सभी इस समय के लिए बैठ बनाये हैं।
सतयुग, त्रेता में तो यह बात नहीं है। बाद में शास्त्र बनाने शुरू किये
हैं। वह तो फिर भी बनेंगे। तुम बच्चों ने सब समझ लिया है। आगे तो बिल्कुल
घोर अंधियारे में थे। इस समय कोई भी सृष्टि चक्र को यथार्थ रीति नहीं जानते
हैं। अभी तुम बच्चों को शुद्ध अंहकार होना चाहिए। तुम तन-मन-धन से भारत की
सेवा कर रहे हो, खास भारत की आम सारी दुनिया की। बाप की मदद से हम मुक्ति
जीवनम् क्ति का रास्ता बतलाते हैं। तुम श्रीमत पर ये सेवा करते हो। श्रीमत
है शिवबाबा की। परन्तु शिव का नाम गुम कर दिया है। बाकी ब्रह्मा की मत और
श्रीकृष्ण की मत दिखाई है। सो भी कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। तुम भारत
को स्वर्ग अर्थात् हीरे मिसल बनाते हो। परन्तु हो कितने साधारण, कोई घमण्ड
नहीं। तुमको यहाँ अपना सब कुछ स्वाहा करना है, गोया शिवबाबा पर पूरा-पूरा
बलि चढ़ना है। तो शिवबाबा फिर 21 जन्म बलि चढ़ते हैं। बाबा ऐसे नहीं कहते
कि गृहस्थ व्यवहार नहीं सम्भालना है। वह भी सम्भालना है, परन्तु श्रीमत पर।
अविनाशी सर्जन से कुछ छिपाना नहीं। गाया भी जाता है गुरू बिगर घोर
अंधियारा। यह ब्रह्मा दादा भी कहते हैं कि शिवबाबा बिगर हम और तुम बिल्कुल
घोर अंधियारे में थे। वह तो शिव शंकर को मिला देते हैं। ब्रह्मा कौन है? कब
आते हैं? क्या आकर करते हैं? हर एक बात समझना चाहिए ना। जानवर तो नहीं
समझेंगे। अभी तुम बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जान गये हो। विद्वान,
पण्डित आदि कोई नहीं जानते हैं कि सतगुरू बिगर घोर अन्धियारा है। गुरू लोग
तो बहुत हैं। सभी का सतगुरू एक है, जिसको वृक्षपति कहते हैं। तो तुम बच्चों
को नशा चढ़ना चाहिए। यह दुनिया जो इन ऑखों से देख रहे हो, वह नहीं रहेगी।
जो अब बुद्धि से जानते हो वही रहना है। तो इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा
देना चाहिए। बच्चों को भी सम्भालना है। बाबा को कितने ढेर बाल-बच्चे हैं।
कोई तो कहते हैं बाबा हम आपका दो मास का बच्चा हूँ। कोई कहते एक मास का
बच्चा हूँ। एक मास के बच्चे भी झट धारणा कर एकदम जवान बन जाते हैं और कोई
तो 20 वर्ष वाले भी जामड़े (बौने) बन जाते हैं। यह तो तुम जानते हो कि नया
झाड़ है, धीरे- धीरे वृद्धि को पायेंगे। पहले जरूर पत्ते निकलेंगे। बाद में
फूल निकलेंगे। यहाँ ही फूल बनना है। वहाँ सब फूल ही फूल हैं। यहाँ तो कोई
गुलाब के, कोई चम्पा के बनते हैं। जैसी-जैसी धारणा ऐसा पद मिल जाता है।
वहाँ फूल की बात नहीं। मर्तबे की बात है। तो यह नशा रहना चाहिए कि हम इन
ऑखों से पवित्र शिवालय स्वर्ग को देखेंगे। आधाकल्प सिर्फ कहते थे कि फलाना
स्वर्ग पधारा। वह कामना प्रैक्टिकल में बाप ही अब पूरी करते हैं। अभी तुम
बाप के बच्चे बन जाते हो तो भारत का खाना आबाद हो जाता है। 33 करोड़ देवता
गाये जाते हैं, वह इतने कोई सतयुग त्रेता में नहीं रहते हैं। यह तो सारे
भारत के देवी-देवता धर्म की आदमशुमारी है। बाहर की तरफ देखो तो कितने
फ्राक्शन पड़ गये हैं। चीन-जापान है तो बौद्धी, नाम फिर भी बौद्ध का लेंगे
लेकिन फ्राक्शन (मतभेद) कितनी है। यहाँ भारत में तो शिवबाबा को उड़ा दिया
है, उनको बिल्कुल जानते ही नहीं। चित्र हैं, गाते भी हैं, नंदीगण भी है
परन्तु जानते नहीं। अभी तुम बच्चे जानते हो, बाप ने बताया है कि हम परमधाम
से आकर यहाँ यह शरीर ले पार्ट बजा रहे हैं। तुम चक्र को जान गये हो।
ज्ञान-अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान अंधेर विनाश। आगे तो कुछ भी पता नहीं था।
अभी बेहद के बाप क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर को तुम जान गये हो। 84
जन्म किसको लेने चाहिए! कौन लेते होंगे, तो तुम जानते हो। तुम्हारा अब
तीसरा नेत्र खुला है तो इतना नशा रहना चाहिए। मनुष्य जब शराब पीते हैं तो
भल दीवाला मारा हुआ हो तो भी नशे में समझते हैं कि सबसे साहूकार मैं हूँ।
बाबा तो वैष्णव थे, कभी टच नहीं किया। बाकी सुना है कि शराब पिया और नशा
चढ़ा। कहते हैं कि यादवों ने भी शराब पी, मूसल निकाल एक दो के कुल का नाश
किया। यहाँ भी मिलेट्री को शराब पिलाते हैं तो मरने, मारने का ख्याल नहीं
रहता। नशा चढ़ जाता है। तो तुम बच्चों को भी सदैव नारायणी नशा रहना चाहिए।
हम वही कल्प पहले वाले शक्ति सेना हैं। अनेक बार हमने भारत को हीरे जैसा
बनाया है, इसमें मूँझने की बात नहीं है। संशयबुद्धि विनशन्ती, निश्चयबुद्धि
विजयन्ती। संशय बुद्धि ऊंच पद नहीं पायेंगे। प्रजा में कम पद पा लेंगे।
वहाँ तो तुम्हारे महलों में सदैव बाजे बजते रहेंगे। दु:ख की बात ही नहीं।
आगे राजाओं के महलों के दरवाजे के बाहर चबूतरे पर शहनाईयां बजती थी। अभी तो
वह राजाओं का ठाठ खत्म हो गया है। प्रजा का राज्य हो गया है। अभी तुम
बच्चे जानते हो कि हम पवित्र बन योग में रह और चक्र को याद करते-करते भारत
को स्वर्ग बना देंगे, परन्तु बहुत बच्चे भूल जाते हैं। बाबा राय देते हैं
कि सबसे अच्छा कर्तव्य है गरीबों की सेवा करना। आजकल गरीब तो बहुत हैं।
मनुष्य हॉस्पिटल बहुत बनाते हैं तो मरीजों को सुख मिले, जो हॉस्पिटल
खोलेंगे उनको दूसरे जन्म में कुछ अच्छी काया मिलेगी, रोगी नहीं बनेंगे।
कोई-कोई अच्छा तन्दरूस्त होते हैं, मुश्किल कभी बीमार होते हैं। तो जरूर
आगे जन्म में तन्दरूस्ती का दान दिया होगा। वह है हॉस्पिटल खोलना। कोई
एज्यूकेशन में बहुत होशियार होते हैं तो जरूर विद्या का दान किया होगा।
कोई-कोई सन्यासियों को छोटेपन में ही शास्त्र कण्ठ हो जाते हैं तो कहेंगे
पास्ट जन्म के आत्मा संस्कार ले आई है। तो यहाँ भी कोई 3 पैर पृथ्वी का
लेकर यह रूहानी हॉस्पिटल खोले और लिख दे कि आकर 21 जन्मों के लिए हेल्थ का
वर्सा लो बाप से। कितनी सहज बात है। तुम पूछते हो बताओ लक्ष्मी-न् रायण को
यह वर्सा किसने दिया, तो जरूर पूछने वाला खुद जानता होगा। बाप ही स्वर्ग का
रचयिता है। कैसे रचता है, वह बैठो तो हम समझायें। हम भी उनसे वर्सा ले रहे
हैं। शिवबाबा, ब्रह्मा बाबा द्वारा स्थापना करा रहे हैं फिर पालना भी वही
करेंगे। शंकर द्वारा विनाश भी होना है। विनाश जरूर नर्क का होगा ना। नई
दुनिया तो अब बन रही है। छोटे से बैज पर तुम समझा सकते हो कि ब्रह्मा
द्वारा स्थापना हो रही है। यही राजयोग है। मनुष्य से देवता बनना है, जो
अपने कुल का होगा उसको झट दिल में लग जायेगा। उसका चेहरा ही चमक जायेगा और
पुरूषार्थ से अपना वर्सा ले लेंगे। अपने ब्राह्मण कुल के जो हैं– वह शुद्र
कुल से बदलने जरूर हैं, यह ड्रामा में नूँध है। तुम भारत की बहुत सेवा करते
हो परन्तु गुप्त। आगे भी ऐसे-ऐसे की थी। ड्रामा को अभी अच्छी रीति जानना
है। गाया जाता है आप मुये मर गई दुनिया। बाकी आत्मा रह जाती है। आत्मा तो
मरती नहीं। आत्मा शरीर से अलग हो जाती है तो उनके लिए दुनिया ही नहीं रही।
फिर जब शरीर में जायेगी तब माँ-बाप का सम्बन्ध आदि नया होगा। यहाँ भी तुमको
अशरीरी बनना है। अभी तो यह दुनिया प्रैक्टिकल में खत्म होनी है। बाप कहते
हैं मुझे याद करते रहो तो विकर्मो का जो बोझा है वह उतर जायेगा और तुम
सम्पूर्ण बन जायेंगे। बच्चों के मैनर्स बहुत अच्छे होने चाहिए। बोलना,
चलना, खाना, पीना...। बहुत थोड़ा बोलना चाहिए। राजायें लोग बहुत थोड़ा और
आहिस्ते बोलते हैं, चुप रहते हैं। तुम्हारे में तो बहुत फजीलत (सभ्यता)
होनी चाहिए। देवताओं में फजीलत थी। यहाँ तो मनुष्य बन्दर मिसल हैं तो
बदफजीलत हैं। कुछ भी अक्ल नहीं। बेहद का बाप जो सृष्टि को स्वर्ग बनाते
हैं, उनको पत्थर ठिक्कर कुत्ते बिल्ली सबमें ढकेल दिया है। माया ने एकदम
बुद्धि को गॉडरेज का ताला लगा दिया है। अब बाबा आकर ताला खोलते हैं। अभी
तुम बच्चे कितने बुद्धिवान बन गये हो। शिवबाबा, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर,
लक्ष्मी-नारायण, जगदम्बा आदि सबकी बायोग्राफी को तुम जान गये हो।। अब तुमको
सतगुरू शिवबाबा से पूरी समझ मिली है। बाबा नॉलेजफुल है ना। हर एक अपने दिल
से पूछे तो बरोबर हम कुछ नहीं जानते थे। बन्दर जैसी चलन थी। अब हम सब जान
गये हैं। नई रचना कैसे रचते हैं। ऊंचे ते ऊंचा ब्राह्मण कुल बनाते हैं सो
तुम जानते हो। मूर्ति जो पूज्य है वह कुछ बोलती नहीं है। अभी तुम समझते हो
कि हम ही पूज्य फिर पुजारी बनते हैं। अभी तुम सच्चे-सच्चे ब्रह्मा मुख
वंशावली ब्राह्मण हो। तुम जानते हो कि संगम युग पर सतयुग की रचना कैसे होती
है, यह और कोई नहीं जानते। बैरिस्टर पढ़ायेगा तो क्या बनायेगा? भगवान भी
आकर सहज राजयोग सिखलाते हैं। अहो सौभाग्य भारतवासी बच्चों का... तुम्हारे
में भी सौभाग्यशाली वह जो अच्छी रीति धारणा करके दूसरों को कराते रहते हैं।
आगे चल बहुत घर स्वर्ग बनेंगे। झाड़ धीरे-धीरे बढ़ता है। मेहनत है। जितना
ऊंच जायेंगे उतना माया के तूफान जोर से आयेंगे। पहाड़ी पर जितना ऊंच
जायेंगे उतना तूफान ठण्डी आदि का सामना भी होगा। सर्विस में जितना टाइम
मिले उतना अच्छा है, एडवरटाइज करो। जो दिल में राय आवे वह बताओ कि ऐसे-ऐसे
करना चाहिए। बाबा कहेंगे कि भल करो। बिचारे मनुष्य बहुत दु:खी हैं। इस समय
सब तमोप्रधान बन पड़े हैं। कोई भी चीज सच्ची नहीं रही है। झूठी माया, झूठी
काया... अब तुम बच्चे स्वर्गवासी बनते हो। (गीत: नई उमर की कलियां) इस गीत
में सीता की महिमा करते हैं। जिस देश में सीता थी, वह देश पवित्र था। उस
देश में फिर रावण कहाँ से आया? वन्डर तो यह है कि फिर कहते कि बन्दरों की
सेना ली। अब बन्दरों की सेना कहाँ से आई! यहाँ भी मनुष्यों का लश्कर है।
गवर्मेन्ट बन्दरों का लश्कर थोड़ेही लेती है। फिर वहाँ बन्दरों की सेना
कैसे आई? यह भी समझते नहीं हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1)
सम्पूर्ण बनने के लिए याद की यात्रा से अपने विकर्मों का बोझ उतारना है,
अच्छे मैनर्स धारण करना है। सभ्यता (फजीलत) से व्यवहार करना है। बहुत कम
बोलना है।
2)
किसी भी बात में संशय बुद्धि नहीं बनना है। भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा
में अपना सब कुछ सफल करना है। शिवबाबा पर पूरा-पूरा बलि चढ़ना है।
वरदान:
चारों ही सबजेक्ट को अपने स्वरूप में लाने वाले विश्व कल्याणकारी भव
पढ़ाई
की जो चार सबजेक्ट हैं, उन सबका एक दो के साथ सम्बन्ध है। जो ज्ञानी तू
आत्मा है, वह योगी तू आत्मा भी अवश्य होगा और जिसने ज्ञान-योग को अपनी नेचर
बना लिया उसके कर्म नेचुरल युक्तियुक्त वा श्रेष्ठ होंगे। स्वभाव-संस्कार
धारणा स्वरूप होंगे। जिनके पास इन तीनों सबजेक्ट की अनुभूतियों का खजाना है
वह मास्टर दाता अर्थात् सेवाधारी स्वत: बन जाते हैं। जो इन चारों सबजेक्ट
में नम्बरवन लेते हैं उन्हें ही कहा जाता है विश्व कल्याणकारी।
स्लोगन:
ज्ञान-योग को अपनी नेचर बनाओ तो कर्म नेचुरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त होंगे।
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I am very happy