“मीठे बच्चे– तुम बाप की श्रीमत पर चलो तो तुम्हें कोई भी दु:ख दे नहीं सकता, दु:ख तकलीफ देने वाला रावण है जो तुम्हारे राज्य में होता नहीं”
प्रश्न: इस ज्ञान यज्ञ में तुम बच्चे कौन सी आहुति देते हो?
उत्तर: इस ज्ञान यज्ञ में तुम कोई तिल जौं की आहुति नहीं देते, इसमें तुम्हें देह सहित जो कुछ भी है वह सब आहुति देनी है अर्थात् बुद्धि से सब भुला देना है। इस यज्ञ की सम्भाल पवित्र रहने वाले ब्राह्मण ही कर सकते हैं। जो पवित्र ब्राह्मण बनते वही फिर ब्राह्मण सो देवता बनते हैं।
गीत: तुम्हें पाके हमने जहान...
ओम् शान्ति।
बच्चे आये हैं बाप के पास। बच्चे जरूर आयेंगे ही तब, जब बाप को पहचान कर बाप कहेंगे। नहीं तो आ ही नहीं सकते। बच्चे जानते हैं हम जाते हैं निराकारी बेहद बाप के पास, उनका नाम शिवबाबा है। उनको अपना शरीर नहीं है, उनका कोई भी दुश्मन बन नहीं सकता। यहाँ दुश्मन बनते हैं तो राजाओं को मार डालते हैं। गांधी को मारा, क्योंकि उनका तो शरीर था। बाप को तो अपना शरीर है नहीं। मारने चाहेंगे वह भी उसको जिसमें प्रवेश करता हूँ। आत्मा को तो कोई मार काट नहीं सकते। तो जो मुझे यथार्थ रीति जानते हैं, उनको ही राज्य-भाग्य देता हूँ। उन्हों के राज्य-भाग्य को कोई जला नहीं सकता। न पानी डुबो सकता, किसी भी हालत में। तुम बच्चे बाप से वर्सा लेने आये हो अविनाशी राजधानी का। जिसको कोई भी दु:ख अथवा तकलीफ दे न सके। वहाँ तकलीफ देने वाला कोई होता ही नहीं। तकलीफ देने वाला है रावण। रावण को 10 शीश भी दिखाते हैं। सिर्फ रावण दिखाते हैं, मदोदरी दिखाते नहीं। सिर्फ नाम रख दिया है कि रावण की स्त्री थी। तो यहाँ रावण राज्य में तुमको तकलीफ हो सकती है। वहाँ तो रावण होता नहीं। बाप तो है निराकार, उनको कोई मार काट नहीं सकता। तुमको भी ऐसा बनाते हैं जो तुमको शरीर होते भी कोई दु:ख न हो सके। तो ऐसे बाप की मत पर चलना पड़े। बाबा ही ज्ञान का सागर है, और कोई यह ज्ञान दे नहीं सकते। ब्रह्मा द्वारा सभी शास्त्रों का सार समझाते हैं। ब्रह्मा है शिवबाबा का बच्चा। ऐसे नहीं कि विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला। अगर नाभी कहें तो शिवबाबा की नाभी-कमल से निकला। तुम भी शिव की नाभी से निकले हो। बाकी चित्र तो सब रांग हैं। एक ही बाबा राइटियस है। रावण अनराइटियस बना देते है। यह खेल है। इस खेल को तुम ही जानते हो। कब से रावणराज्य शुरू हुआ, कैसे मनुष्य गिरते-गिरते गिर ही गये, ऊपर कोई भी चढ़ न सके। बाप के पास जाने का जो रास्ता बताते वह और ही जंगल में डाल देते हैं क्योंकि रास्ता जानते ही नहीं हैं– बाबा के घर और स्वर्ग का। जो भी गुरू आदि हैं, सब हैं हठयोगी। घरबार छोड़ देते हैं। बाबा छुड़ाते नहीं हैं। कहते हैं पवित्र बनो। कुमार और कुमारी पवित्र हैं। द्रोपदी पुकारती है कि बाबा हमको बचाओ। हम पवित्र बनकर कृष्णपुरी में जाने चाहते हैं। कन्यायें भी पुकारती हैं, माँ बाप तंग करते हैं, मारते हैं कि शादी करनी ही होगी। पहले माँ बाप कन्या के पांव पड़ते हैं, क्योंकि खुद को पतित और कन्या को पावन समझते हैं। पुकारते भी हैं– हे पतित-पावन आओ। अब बाबा कहते हैं कुमारियां पतित न बनो। नहीं तो फिर पुकारना पड़ेगा। तुमको अपने को बचाना है। बाबा आया ही है पावन बनाने। कहते हैं स्वर्ग की बादशाही का वर्सा देने आया हूँ इसलिए पवित्र बनना पड़े। पतित बनेंगे तो पतित होकर मरेंगे। स्वर्ग के सुख देख नहीं सकेंगे। स्वर्ग में तो बहुत मौज है। हीरे जवाहरों के महल हैं। वही राधे कृष्ण फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। तो लक्ष्मी-नारायण को भी इतना प्यार करना चाहिए। अच्छा कृष्ण को प्यार करते फिर राधे को क्यों गुम कर दिया है? कृष्ण जन्माष्टमी पर कृष्ण को झूला झुलाते हो। मातायें कृष्ण को बहुत प्यार करती हैं, राधे को नहीं। और फिर ब्रह्मा जो कृष्ण बनने वाला है उनकी इतनी पूजा नहीं है। जगत अम्बा की तो बहुत पूजा करते हैं, जो सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है। आदि देव ब्रह्मा का सिर्फ अजमेर में मन्दिर है। अब मम्मा है ज्ञान ज्ञानेश्वरी। तुम जानते हो वह ब्राह्मणी है, वह कोई स्वर्ग की आदि देवी नहीं है। न कोई 8 भुजायें हैं। मन्दिर में 8 भुजायें दिखाई हैं। बाप कहते हैं माया के राज्य में झूठ ही झूठ है। एक बाप ही सत्य है जो सच बताते हैं, मनुष्य से देवता बनाने के लिए। उस जिस्मानी ब्राह्मणों द्वारा तो तुम कथायें आदि सुनते-सुनते इस हालत में पहुंच गये हो। अब मौत सामने खड़ा है। बाबा कहते हैं जब झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था होती है तब कलियुग के अन्त में कल्प के संगमयुग पर मैं आता हूँ। मैं युगे-युगे नहीं आता हूँ। मैं कच्छ मच्छ अवतार, वाराह अवतार नहीं लेता हूँ। मैं कण-कण में नहीं रहता हूँ। तुम आत्मायें भी कण-कण में नहीं जाती हो तो मैं कैसे जाऊंगा। मनुष्य के लिए कहते हैं, वह जानवर भी बनते हैं। वह तो अनेक योनियां हैं, गिनती कर ही नहीं सकते हैं। बाप कहते हैं राइट बात अब मैं तुमको समझाता हूँ। अब जज करो 84 लाख जन्म सत्य हैं या झूठ? इस झूठी दुनिया में सच कहाँ से आया? सच तो एक ही होता है। बाप ही आकर सत्य असत्य का निर्णय करते हैं। माया ने सबको असत्य बना दिया है। बाप आकर सबको सत्य बनाते हैं। अब जज करो– राइट कौन? तुम्हारे इतने गुरू गोसाई राइट या एक बाप राइट? एक राइटियस बाबा ही राइटियस दुनिया की स्थापना करते हैं। वहाँ बेकायदे कोई काम होता ही नहीं। वहाँ किसको विष नहीं मिलता। तुम जानते हो हम भारतवासी बरोबर देवी-देवता थे। अब पतित बन गये हैं। पुकारते भी हैं हे पतित-पावन आओ। यथा राजा रानी तथा प्रजा सब पतित हैं तब तो लक्ष्मी-नारायण आदि को पूजते हैं ना। भारत में ही पवित्र राजायें थे, अब अपवित्र हैं। पवित्र को पूजते हैं। अब बाबा आकर तुमको महाराजा महारानी बनाते हैं। तो पुरूषार्थ करना चाहिए। बाकी 8 भुजा वाला तो कोई है नहीं। लक्ष्मी-नारायण को भी दो भुजायें हैं। चित्रों में फिर नारायण को सांवरा, लक्ष्मी को गोरा दिखाते हैं। अब एक पवित्र, एक अपवित्र कैसे हो सकता, तो चित्र झूठे हुए ना। अब बाप समझाते हैं राधे कृष्ण दोनों गोरे थे फिर काम चिता पर बैठ दोनों सांवरे हो गये। एक गोरा, एक सांवरा तो हो न सके। कृष्ण को श्याम सुन्दर कहते हैं। राधे को श्याम सुन्दर क्यों नहीं कहते हैं। यह फर्क क्यों रखा है। जोड़ा तो एक जैसा होना चाहिए। अभी तुम ज्ञान चिता पर बैठे हो, तुम फिर काम चिता पर क्यों बैठते हो! बच्चों को भी यह पुरूषार्थ कराना है। हम ज्ञान चिता पर बैठे हैं तुम फिर काम चिता पर बैठने की चेष्टा क्यों करते हो। अगर पुरूष ज्ञान उठाता, स्त्री नहीं उठाती तो भी झगड़ा पड़ जाता है। यज्ञ में विघ्न तो बहुत पड़ते हैं। यह ज्ञान कितना लम्बा चौड़ा है। जब से बाबा आया है तो रूद्र यज्ञ शुरू हुआ है। जब तक तुम ब्राह्मण न बनो तब तक देवता बन नहीं सकते। शूद्र पतित से पावन देवता बनने के लिए ब्राह्मण बनना पड़ेगा। ब्राह्मण ही यज्ञ की सम्भाल करते हैं, इसमें पवित्र बनना है। बाकी कोई तिल जौं आदि इकठ्ठे करके नहीं रखने हैं, जैसे और लोग करते हैं। आफत के समय यज्ञ रचते हैं। समझते हैं भगवान ने भी ऐसा यज्ञ रचा था। बाप तो कहते हैं यह ज्ञान यज्ञ है जिसमें तुम आहुति डालते हो। देह सहित जो सब कुछ है, आहुति देनी है। पैसा आदि नहीं डालना है, इसमें सब कुछ स्वाहा करना है। इनके ऊपर एक कहानी है। दक्ष प्रजापिता ने यज्ञ रचा (कहानी) अब प्रजापिता तो एक है। प्रजापिता ब्रह्मा फिर दक्ष प्रजापिता कहाँ से आया? बाप प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा यज्ञ रचते हैं। तुम सब ब्राह्मण हो। तुमको मिलता है दादे का वर्सा। तुम कहते ही हो हम शिवबाबा के पास आये हैं थ्रू ब्रह्मा। यह शिवबाबा की पोस्ट ऑफिस है। चिठ्ठी भी लिखो तो शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा। बाबा का निवास इसमें है। यह सब ब्राह्मण पावन बनने के लिए ज्ञान योग सीख रहे हैं। तुम ऐसे नहीं कहेंगे हम पतित नहीं हैं। हम पतित हैं परन्तु पतित-पावन हमको पावन बना रहे हैं और कोई मनुष्य-मात्र पावन हैं नहीं तब तो गंगा स्नान करने जाते हैं। अभी तुम जानते हो कि एक सतगुरू बाबा ही हमें पावन बनाते हैं। उनकी श्रीमत है बच्चे तुम मुझ एक के साथ अपना बुद्धियोग जोड़ो। जज करो। चाहे उन गुरूओं के पास जाओ, चाहे मेरी मत पर चलो। तुम्हारा तो एक ही बाप टीचर सतगुरू है। बेहद का बाप सभी मनुष्य मात्र को कहते हैं आत्म-अभिमानी बनो। देवतायें आत्म-अभिमानी होते हैं। यहाँ तो यह ज्ञान किसी में है नहीं। सन्यासी तो कह देते हैं आत्मा सो परमात्मा। आत्मा ब्रह्म तत्व में लीन हो जाती है। ऐसी बातें सुनते-सुनते तुम कितने दु:खी पतित बन पड़े हो। भ्रष्टाचारी पतित उनको कहा जाता है जो विकार से पैदा होते हैं। वह रावण राज्य में भ्रष्टाचारी काम ही करते हैं। फिर गुल-गुल बनाने के लिए बाप को ही आना पड़ता है। भारत में ही आते हैं। बाप कहते हैं तुमको ज्ञान और योग सिखलाता हूँ। 5 हजार वर्ष पहले भी यह तुमको सिखलाकर स्वर्ग का मालिक बनाया था फिर से बनाता हूँ। कल्पकल्प मैं आता ही रहता हूँ। इसकी न आदि है, न अन्त है। चक्र चलता ही रहता है। प्रलय की तो बात ही नहीं। तुम बच्चे इस समय इन अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरते हो। शिवबाबा को कहते हैं बम-बम महादेव। बम-बम अर्थात् शंखध्वनि कर हमारी झोली भर दो। नॉलेज बुद्धि में रहती है ना। आत्मा में ही संस्कार हैं। आत्मा ही पढ़कर इंजीनियर, बैरिस्टर आदि बनती है। अभी तुम आत्मायें क्या बनेंगी? कहते हो बाबा से वर्सा लेकर लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। आत्मा पुनर्जन्म तो जरूर लेती है। यह समझने की बातें हैं ना। कोई को सिर्फ यह दो अक्षर कान में डालो– तुम आत्मा हो, शिवबाबा को याद करो तो स्वर्ग की बादशाही मिलेगी। कितना सहज है। एक ही बाप सत्य बताते हैं, सबको सद्गति देते हैं। बाकी सब झूठ बताकर दुर्गति ही करेंगे। यह शास्त्र आदि भी सब बाद में बने हैं। भारत का शास्त्र एक ही गीता है। कहते हैं परम्परा से यह चले आये हैं। परन्तु कब से? समझते हैं सृष्टि को लाखों वर्ष हुए। अच्छा। तुम बच्चे बाबा के लिए अंगूर ले आते हो। तुम ही लाते हो तुम ही खाते हो, मैं नहीं खाता हूँ। मैं तो अभोक्ता हूँ। सतयुग में भी तुम्हारे लिए महल बनाते हैं। यहाँ भी तुमको नये महल में रखता हूँ, हम तो पुराने में ही रहते हैं। यह वन्डरफुल बाबा है। यह बाप भी है तो मेहमान भी है। बाम्बे में जाये तो मेहमान कहेंगे ना। यूँ तो यह बहुत बड़ा सारी दुनिया का मेहमान है। इनको आने और जाने में देर नहीं लगती है। मेहमान भी वन्डरफुल है। दूरदेश के रहने वाले आये देश पराये। तो मेहमान हुआ ना। आते हैं तुमको गुल-गुल (फूल) बनाए वर्सा देने। कौड़ी से हीरे जैसा बनाने। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अविनाशी ज्ञान रत्नों की धारणा कर शंख-ध्वनि करनी है। सबको यह ज्ञान रत्न देने हैं।
2) सत्य और असत्य को समझकर सत्य मत पर चलना है। कोई भी बेकायदे कर्म नहीं करना है।
वरदान:
एक बाप की याद द्वारा एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले सार स्वरूप भव
एकरस स्थिति में रहने की सहज विधि है एक की याद। एक बाबा दूसरा न कोई। जैसे बीज में सब कुछ समाया हुआ होता है। ऐसे बाप भी बीज है, जिसमें सर्व सम्बन्धों का, सर्व प्राप्तियों का सार समाया हुआ है। एक बाप को याद करना अर्थात् सार स्वरूप बनना। तो एक बाप, दूसरा न कोई-यह एक की याद एकरस स्थिति बनाती है। जो एक सुखदाता बाप की याद में रहते हैं उनके पास दु:ख की लहर कभी आ नहीं सकती। उन्हें स्वप्न भी सुख के, खुशी के, सेवा के और मिलन मनाने के आते हैं।
स्लोगन:
श्रेष्ठ आशाओं का दीपक जगाने वाले ही सच्चे कुल दीपक हैं।
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