आन्तरिक बल 106
-प्रेम और क्षमा
-दुख से बाहर आने लिये कुछ लोग शराब पीते है, कुछ लोग सिगरेट पीते है या और कोई नशा करते है । एक दुख को मिटाने के लिये दूसरे अनेक दुखों को बुलावा देते है । मजा समझ कर सजा भुगतते है । फ़िर माफिया माँगते है ।
-कोई दुख -दर्द, मन की बाते आप से शेयर करता है, आप उसे ढान्ढ्स देते है । वह तो हल्का हो जाता है और आप भारी । उनके दुख और कुछ नहीँ, प्रेम की कमी के कारण हैं । उसको तथा उस से सम्बन्धित व्यक्तियों को प्रेम की तरंगे दो । शांति की तरंगे दो । सब ठीक हो जायेगा तथा आप की शक्ति कम नहीँ होगी ।
-किसी के दुख मे दुखी हो जाना, अनजाने मे उसके दुःख को और बढा रहे है । आप के मन मे हमदर्दी उमड़ती है, कहते है बेचारा कितना दुखी है, ईश्वर ऐसा क्यों करता है । उसके प्रति बार बार बेचारा, दुखी, बदनसीब, परेशान जैसे शब्द दिमाग मे रखने से उनका दुख और बढ़ जाता है तथा आप भी दुखी हो जाते है ।
-नियम याद रखो, जिस चीज का वर्णन करेंगे, मन मे सोचेगे, वही चीज़, वही हालात बढेगे । ये नियम लगातार काम करता है जैसे धरती की चुम्बकीय शक्ति काम कर रही है । आप अपना और उसका दुख बढा रहे है ।
-उसे प्रेम से भरपूर करो । उसके प्रति प्रेम के शब्द कहो और सोचो । बेचारा की बजाय किस्मत वाला, दुखी के बजाय सुखी , बदनसीब के बजाय भाग्यशाली, परेशान के बजाय शान जैसे शब्द अपने मन मे उनके प्रति रखो चाहे वह कितने भी निम्न स्तर पर हो । इस से वह अपने दुखों से बाहर आ जायेगा । तथा आप और सुखी हो जायेगे ।
-हमारे शब्द एवं संकल्प बूमरैंग का काम करते है । वे अच्छे हो बुरे हो या नफरत से भरे हो चाहे प्रेम से भरे हो, वे उल्टे हम पर ही आकर गिरेंगे ।
-कुछ बोलने से पहले मन ही मन शब्दो की जाँच कर लें । शब्द दिल दुखाने वाले तो नहीँ है, लड़ाई कराने, उकसाने वाले तो नहीँ है । किसी को निराश करने वाले तो नहीँ है । चिढाने वाले तो नहीँ है । चोट पहुँचाने वाले तो नहीँ है । शव्दो का निर्माण मन मे होता है । मधुर शब्दो का निर्माण करो । माफिया मत मांगो ।
-मै तो केवल मन मे सोच रहा हूँ । कोस रहा हूँ । कुछ बोला तो नहीँ । मेरे मन की बात मेरे मन मे ही रहेगी । मैने क्या गलती की । किसी का क्या बुरा किया । ये प्रेम नहीँ है ।
-जो बाते मन मे दोहराई जाती है वे एक ना एक दिन हकीकत बन जाती है ।
-किसी के लिये बुरा सोच रहे है तो आप अपना नुकसान कर रहे है । गलत विचार सब से पहले आप को ही रोगी बना देते है जिस से अनेकों परेशानियां खड़ी हो जाती है ।
-इसलिये सदैव शान्ति और प्रेम के विचार प्रवाहित करो चाहे सामने वाला कितना भी नीच हो ।
-प्रेम और क्षमा
-दुख से बाहर आने लिये कुछ लोग शराब पीते है, कुछ लोग सिगरेट पीते है या और कोई नशा करते है । एक दुख को मिटाने के लिये दूसरे अनेक दुखों को बुलावा देते है । मजा समझ कर सजा भुगतते है । फ़िर माफिया माँगते है ।
-कोई दुख -दर्द, मन की बाते आप से शेयर करता है, आप उसे ढान्ढ्स देते है । वह तो हल्का हो जाता है और आप भारी । उनके दुख और कुछ नहीँ, प्रेम की कमी के कारण हैं । उसको तथा उस से सम्बन्धित व्यक्तियों को प्रेम की तरंगे दो । शांति की तरंगे दो । सब ठीक हो जायेगा तथा आप की शक्ति कम नहीँ होगी ।
-किसी के दुख मे दुखी हो जाना, अनजाने मे उसके दुःख को और बढा रहे है । आप के मन मे हमदर्दी उमड़ती है, कहते है बेचारा कितना दुखी है, ईश्वर ऐसा क्यों करता है । उसके प्रति बार बार बेचारा, दुखी, बदनसीब, परेशान जैसे शब्द दिमाग मे रखने से उनका दुख और बढ़ जाता है तथा आप भी दुखी हो जाते है ।
-नियम याद रखो, जिस चीज का वर्णन करेंगे, मन मे सोचेगे, वही चीज़, वही हालात बढेगे । ये नियम लगातार काम करता है जैसे धरती की चुम्बकीय शक्ति काम कर रही है । आप अपना और उसका दुख बढा रहे है ।
-उसे प्रेम से भरपूर करो । उसके प्रति प्रेम के शब्द कहो और सोचो । बेचारा की बजाय किस्मत वाला, दुखी के बजाय सुखी , बदनसीब के बजाय भाग्यशाली, परेशान के बजाय शान जैसे शब्द अपने मन मे उनके प्रति रखो चाहे वह कितने भी निम्न स्तर पर हो । इस से वह अपने दुखों से बाहर आ जायेगा । तथा आप और सुखी हो जायेगे ।
-हमारे शब्द एवं संकल्प बूमरैंग का काम करते है । वे अच्छे हो बुरे हो या नफरत से भरे हो चाहे प्रेम से भरे हो, वे उल्टे हम पर ही आकर गिरेंगे ।
-कुछ बोलने से पहले मन ही मन शब्दो की जाँच कर लें । शब्द दिल दुखाने वाले तो नहीँ है, लड़ाई कराने, उकसाने वाले तो नहीँ है । किसी को निराश करने वाले तो नहीँ है । चिढाने वाले तो नहीँ है । चोट पहुँचाने वाले तो नहीँ है । शव्दो का निर्माण मन मे होता है । मधुर शब्दो का निर्माण करो । माफिया मत मांगो ।
-मै तो केवल मन मे सोच रहा हूँ । कोस रहा हूँ । कुछ बोला तो नहीँ । मेरे मन की बात मेरे मन मे ही रहेगी । मैने क्या गलती की । किसी का क्या बुरा किया । ये प्रेम नहीँ है ।
-जो बाते मन मे दोहराई जाती है वे एक ना एक दिन हकीकत बन जाती है ।
-किसी के लिये बुरा सोच रहे है तो आप अपना नुकसान कर रहे है । गलत विचार सब से पहले आप को ही रोगी बना देते है जिस से अनेकों परेशानियां खड़ी हो जाती है ।
-इसलिये सदैव शान्ति और प्रेम के विचार प्रवाहित करो चाहे सामने वाला कितना भी नीच हो ।
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