21-03-17 प्रात:मुरली ओम शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें निश्चय है कि हम संगम पर भविष्य की कमाई के लिए पढ़ते हैं, बाप हमें पढ़ाकर के 21 जन्मों का वर्सा देते हैं''
प्रश्नः- अपने आप पर कृपा वा आशीर्वाद करने की विधि क्या है?
उत्तर:- अपने आप पर कृपा वा आशीर्वाद करने के लिए बाप की पढ़ाई रोज़ पढ़ते रहो। कभी भी संगदोष में आकर पढ़ाई में गफलत नहीं करो। जो सदा श्रीमत पर चलते हैं वह अपने आप पर कृपा करते हैं, उन्हें बाप की भी आशीर्वाद मिलती रहती है।
गीत:-मैं एक नन्हा सा बच्चा हूँ...
ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच, जब मनुष्य गीता सुनाते हैं तो हमेशा कहते हैं साकार कृष्ण भगवानुवाच। बाप आकर समझाते हैं कि तुमको अब मैं राजाई प्राप्त करा रहा हूँ - इस राजयोग और ज्ञान द्वारा। कृष्ण तो था ही सतयुग का प्रिन्स। मुख्य है यह भूल गीता में। तुम बच्चे जानते हो शिव भगवान हमको पढ़ा रहे हैं इस शरीर द्वारा। शिव जयन्ती भी गाई जाती है। यूँ भी जन्म दिन मनाया जाता है। आत्मा का तो एक ही नाम चला आता है। बाप कहते हैं मैं गर्भ से जन्म नहीं लेता हूँ। मैं साधारण शरीर में प्रवेश करता हूँ। आत्मा जब शरीर में प्रवेश करती है तो अन्दर चुरपुर करती है। मालूम पड़ता है - अन्दर आत्मा ने प्रवेश किया है। बच्चे के आरगन्स चलने लगते हैं। यह बात अच्छी रीति समझनी है। और जो भी मनुष्य सुनाते हैं वह कब ऐसे नहीं कहते कि हम आत्मा तुमको समझाते हैं। वह प्रसिद्ध हैं शरीर से। यह बाबा तो विचित्र है, इनको अपना शरीर नहीं है। शरीरधारी को कभी भगवान नहीं कहना चाहिए। स्थूल वा सूक्ष्म कोई भी हो! आत्मा इन आरगन्स द्वारा याद करती है परमपिता परमात्मा को। वह तो बैठकर मनुष्यों के बनाये हुए शास्त्र सुनाते हैं। यहाँ यह नई बात है। भगवानुवाच, भगवान कौन? जिसको सब भगत हे भगवान कहकर याद करते हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर के तो नाम जानते हैं। हे ब्रह्मा, हे विष्णु कह पुकारते हैं, वह हैं देवतायें। भगवान कहने से निराकार ही याद आते हैं। निराकार परमात्मा की ही बन्दगी करते हैं। वह कहते हैं मैं भी हूँ आत्मा परन्तु सुप्रीम हूँ। मेरा भी चित्र बनाते हैं। तुम आत्माओं के भी चित्र बनाते हैं। मन्दिरों में बड़ा शिवलिंग भी रखते हैं और छोटे सालिग्राम भी, जिससे सिद्ध होता है कि वह आत्मायें हैं एक परमात्मा के बच्चे। बाप हमेशा बच्चों से बड़ा होता है इसलिए बड़ा लिंग बनाते हैं। वास्तव में मैं कोई सालिग्राम बड़ा नहीं हूँ। आत्मा साइज़ में छोटी बड़ी नहीं होती है। मनुष्य छोटा बड़ा होता है, बाकी आत्मा जैसी तेरी वैसी मेरी। पर मेरी आत्मा परम है, परे ते परे परमधाम में रहने वाली है। ऊंचे ते ऊंचा परमपिता परमात्मा मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। बीज रचयिता को कहा जाता है। जैसे जड़ बीज लगाया जाता है उससे पहले झाड़ निकल आता है। वैसे आत्मा का रूप देखो कैसा है। शरीर का कितना विस्तार है। तो पहले नई बात यह है कि यहाँ परमात्मा बाप पढ़ाते हैं। ऊंचे ते ऊंच भगवानुवाच तो जरूर इम्तहान भी ऊंचे ते ऊंचा होगा। भगवान कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, जिससे भविष्य 21 जन्मों के लिए तुमको देवता बनाता हूँ। फिर उनमें तुम सूर्यवंशी बनो वा चन्द्रवंशी बनो। मर्तबे तो बहुत हैं। यह सारी राजधानी स्थापन होती है। यह है संगमयुग। बाप समझाते हैं कि तुम इस जन्म के लिए नहीं पढ़ते। यह है भविष्य की कमाई और जो भी कुछ करते हैं वह सब इस जन्म के लिए। मनुष्य समझते हैं आगे का अभी क्यों सोचें, जो होना होगा देखा जायेगा। तुम बच्चे निश्चय करते हो हम अगले जन्म-जन्मान्तर के लिए पढ़ते हैं। बाप आने वाले 21 जन्मों का वर्सा देते हैं, इस निश्चय से तुम पढ़ते हो। बिगर निश्चय कोई यहाँ बैठ न सके। यहाँ कोई पण्डित आदि नहीं पढ़ाते हैं, परन्तु निराकार भगवान पढ़ाते हैं। आत्मा को खुशी होती है कि हमको बेहद का बाप पढ़ाते हैं, इनको अपना मनुष्य तन तो है नहीं। खुद कहते हैं मुझ निराकार को इस ब्रह्मा तन में ही आना है। यह अनादि बना बनाया ड्रामा है। तुमको बुद्धि में सारा याद आता है। मूलवतन में हम आत्मायें रहती हैं और कोई मनुष्य की बुद्धि में यह नहीं आता होगा कि हमारी आत्मा परमधाम में बाप के साथ रहने वाली है, जिसको ब्रह्माण्ड कहते हैं। हम आत्मा हैं बिल्कुल छोटा स्टॉर। पूजा के लिए बड़ा बनाया है। बाकी इतनी बड़ी आत्मा यहाँ भ्रकुटी में तो बैठ न सके। कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा..... स्टॉर कितना छोटा है। यह बना बनाया अविनाशी ड्रामा है। हर एक आत्मा में अपना-अपना अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, जो हर एक अपना-अपना पार्ट रिपीट करता है। इसमें जरा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता है। फिल्म में जो एक बार पार्ट हुआ है वह फिर रिपीट होगा, इसमें भूल चूक हो नहीं सकती। यह बातें बिल्कुल नई हैं। कोटों में कोई ही समझते हैं। 8-10 वर्ष वाले भी पढ़ाई को छोड़ देते हैं, संगदोष लग जाता है। यह पढ़ाई ऐसी है जो जहाँ तक जीते रहो, वहाँ तक पीते रहो। अन्त तक यह पढ़ाई चलती रहेगी। यह पढ़ाई हम आने वाले 21 जन्मों के लिए पढ़ते हैं। बच्चों को यह नशा चढ़ता है कि हमको भगवान पढ़ाते हैं। कोई राजा का बच्चा हो और राजा ही बैठ उनको पढ़ावे तो कहेंगे हमारा बाबा, महाराजा हमको पढ़ाते हैं। यहाँ है पतित-पावन बाप, जो हमको पढ़ाते हैं। राजयोग सिखाते हैं। अन्दर सदैव बहुत खुशी रहनी चाहिए। हम गॉडली स्टूडेन्ट, गॉड फादर परमपिता परमात्मा से स्वर्ग का स्वराज्य ले रहे हैं। कितनी सहज बात है। परन्तु इस पढ़ाई में माया के विघ्न भी बहुत पड़ते हैं। चलते-चलते पढ़ाई को छोड़ भी देते हैं। यह रूहानी पढ़ाई रोज़ पढ़नी पड़े, इसके लिए ही यह टेप आदि का प्रबन्ध रखा है। मनुष्य पढ़ने के लिए अमेरिका, लन्दन में भी जाते हैं। यहाँ तो घर में रहने वाले पूरा नहीं पढ़ते। समझते नहीं कि परमात्मा हमको राजयोग सिखला रहे हैं। भगवान जो त्रिलोकीनाथ है, वर्ल्ड आलमाइटी है, लिबरेटर है, गाइड है, उनकी महिमा देखो कितनी है। परन्तु बाप को तुम्हारे में भी कोई विरले जानते हैं।
इस समय तुम गुप्त हो। तुम जानते हो हम मूलवतन के रहने वाले हैं फिर सूक्ष्मवतन भी है। उस सूक्ष्मवतन में बच्चियां जाती हैं। मनुष्य साक्षात्कार करते हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में जाते हो। सूक्ष्मवतन में तुम ब्राह्मण और देवताओं का मिलन होता है। वह है ब्राह्मण और देवताओं का संगम। यह है ब्राह्मण और क्षत्रियों का संगम। वहाँ भोग लेकर जाते हो। अन्त में बहुत साक्षात्कार होंगे। जैसे कन्या पियरघर से ससुराल घर में जाती है तो बहुत धूमधाम से बाजे गाजे बजाते हैं। ऐसे अन्त में बहुत साक्षात्कार होंगे। शुरू शुरू में तुमने बहुत कुछ देखा है फिर पिछाड़ी में भी बहुत कुछ देखेंगे। पढ़ते रहेंगे तब ही तो देखेंगे। अगर कोई का कर्मबन्धन नहीं है तो पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है। कोई का कोई मर जाता है, समझा जाता है अब यह अच्छी तरह से पढ़ सकेंगे क्योंकि बधंन छूट गया। अब खूब पुरुषार्थ करो अच्छा पद पाओ। यह नॉलेज बड़ी वन्डरफुल है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - कहते हैं बच्चे अब गफलत मत करो। माया तुम्हारा दीवा झट बुझा देगी, इसलिए बाप को अच्छी तरह याद करना है और पढ़ना है। जब तक यहाँ बैठे हो तो डायरेक्ट सुनने से नशा चढ़ता है। बाहर गये तो नशा गुम हो जाता है। जैसा संग वैसा रंग लग जाता है। बन्धन नहीं है तो बैठ पढ़े और पढ़ाये।
चित्र बहुत अच्छे बने हुए हैं। बाबा युक्तियां रच रहे हैं। गांवड़े वाले कैसे सीखें! यह तो स्लाइड से भी सीख सकते हैं। दिन प्रतिदिन इप्रूवमेंट होती रहती है। तुम्हारी बुद्धि में सारा दिन स्वदर्शन चक्र फिरना चाहिए। बुद्धि में होगा तब तो किसको समझायेंगे। नहीं तो टीचर समझ जाते हैं कि इसका पढ़ाई में ध्यान नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। मित्र सम्बन्धी, शरीर का भान आदि याद रहता है, तभी धारणा नहीं होती। फिर हम कहेंगे तकदीर में नहीं है। कितना माथा मारते हैं तो भी श्रीमत पर नहीं चलते। बच्चे पूछते हैं बाबा क्या होता है? बाबा कहेंगे तुम ठाrक पढ़ते नहीं हो, इसमें आशीर्वाद की तो बात ही नहीं। हम पढ़ाते हैं, तुम अपने ऊपर पढ़ने की कृपा करो। श्रीमत पर चलना - यही कृपा है। नहीं चलते गोया अपने ऊपर अकृपा कर श्रापित करते हैं। बाप से वर्सा न ले, रावण की मत पर चल अपने को श्रापित करते हैं। बाप तो वर्सा देने आये हैं। आशीर्वाद करते हैं चिरन्जीवी भव, जीते रहो अर्थात् स्वर्गवासी भव, स्वर्ग को ही अमरपुरी कहा जाता है। अमरनाथ ही ऐसी आशीर्वाद करते हैं। अमरपुरी के देवतायें पवित्र थे ना। हद के सम्बन्धों आदि से मोह का त्याग करना ही है। अब बाबा के पास जाना है। बाबा कहते देह के मोह से तुमको यहाँ की याद पड़ती है इसलिए देही-अभिमानी बनो तो अन्त में तुमको मुक्तिधाम तथा सुखधाम की याद पड़ेगी। शान्तिधाम और सुखधाम, यह है दु:खधाम। आदि मध्य अन्त, नई दुनिया, बीच की दुनिया और पुरानी दुनिया। जब आधा समय पूरा होता है फिर पुरानी दुनिया का नाम शुरू होता है। यह पुरानी दुनिया अब नई हो रही है। फिर से नई कैसे हो रही है, वह आकर देखो। समझो। परन्तु कोटो में कोई ध्यान देकर समझेंगे। हजारों लाखों आते हैं उनमें से 2-4 निकलते हैं। फिर भी ढीले हो जाते हैं। एक प्रदर्शनी से 2-4 भी ठहर जायें तो अहो सौभाग्य। दिन प्रतिदिन यह प्रदर्शनी भी वृद्धि को पायेगी। चलते-चलते फिर रोज़ 10 हजार भी आयेंगे। बड़े बड़े हाल, बड़े बड़े चित्र भी होंगे। समझाने वाले भी तीखे होंगे। अन्त में महिमा तो निकलनी है। कहेंगे हे प्रभू, आपकी पतित दुनिया को पावन बनाने की गति सबसे न्यारी है। भक्ति की बहुत आदत पड़ी हुई है। देवाला मारा या कोई मर गया तो गुरू लोग कहेंगे देखा - भक्ति छोड़ दी तब ऐसा हुआ। मायावी विघ्न पड़ते हैं, श्रीमत छोड़नी नहीं है। माया बड़ी मोहनी है, कितने फैशनबुल हो गये हैं। समझते हैं हमारे लिए यह स्वर्ग हो गया है। माया का पाम्प फॉल आफ रावण राज्य है। साइंस के कारण माया का भभका बहुत है। समझते हैं गांधी ने स्वर्ग बनाया। तुमको अब स्वर्ग का ज्ञान मिला है तब समझते हैं यह नर्क है। यह राज्य रुण्य के पानी मिसल (मृग तृष्णा समान) है। (दुर्योधन का मिसाल) यह राज्य गया कि गया। कल्प की बात है। कल्प-कल्प नई दुनिया होती रहती है और पुरानी दुनिया खत्म होती है। त्रिमूर्ति शिव भी है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना कर रहे हैं, शंकर द्वारा विनाश होना है। फिर जो राजयोग सीखते हैं वही राज्य चलायेंगे। दैवी राज्य स्थापन कर उनकी जन्म-जन्मान्तर पालना करते हैं। यह बुद्धि में धारणा करनी है फिर सर्विस करनी है। सच्ची गीता के तुम पाठी हो। सुनना, सुनाना, कांटों को फूल बनाना। तुम आधाकल्प के लिए दु:ख से छूटते हो। जैसे इतवार के दिन सभी की छुट्टी होती है ना। ऐसे आधाकल्प तुम दु:ख से, रोने पीटने से छूट जाते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कर्मबन्धन से मुक्त हो रूहानी पढ़ाई रोज़ पढ़नी है। जहाँ तक जीना है, पढ़ाई जरूर पढ़नी है।
2) हद के सम्बन्धों वा देह से मोह का त्याग कर अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है। संगदोष से अपनी सम्भाल करनी है।
वरदान:- हर समय अपने दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव
जैसे स्नेह के कारण हर एक के दिल में आता है कि हमें बाप को प्रत्यक्ष करना ही है। ऐसे अपने संकल्प, बोल और कर्म द्वारा दिल में प्रत्यक्षता का झण्डा लहराओ, सदा खुश रहने की डांस करो, कभी खुश, कभी उदास-यह नहीं। ऐसा दृढ़ संकल्प अर्थात् व्रत धारण करो कि जब तक जीना है तब तक खुश रहना है। मीठा बाबा, प्यारा बाबा, मेरा बाबा-यही गीत ऑटोमेटिक बजता रहे तो प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने लगेगा।
स्लोगन:-विघ्न-विनाशक बनना है तो सर्व शक्तियों से सम्पन्न बनो।
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“मीठे बच्चे - तुम्हें निश्चय है कि हम संगम पर भविष्य की कमाई के लिए पढ़ते हैं, बाप हमें पढ़ाकर के 21 जन्मों का वर्सा देते हैं''
प्रश्नः- अपने आप पर कृपा वा आशीर्वाद करने की विधि क्या है?
उत्तर:- अपने आप पर कृपा वा आशीर्वाद करने के लिए बाप की पढ़ाई रोज़ पढ़ते रहो। कभी भी संगदोष में आकर पढ़ाई में गफलत नहीं करो। जो सदा श्रीमत पर चलते हैं वह अपने आप पर कृपा करते हैं, उन्हें बाप की भी आशीर्वाद मिलती रहती है।
गीत:-मैं एक नन्हा सा बच्चा हूँ...
ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच, जब मनुष्य गीता सुनाते हैं तो हमेशा कहते हैं साकार कृष्ण भगवानुवाच। बाप आकर समझाते हैं कि तुमको अब मैं राजाई प्राप्त करा रहा हूँ - इस राजयोग और ज्ञान द्वारा। कृष्ण तो था ही सतयुग का प्रिन्स। मुख्य है यह भूल गीता में। तुम बच्चे जानते हो शिव भगवान हमको पढ़ा रहे हैं इस शरीर द्वारा। शिव जयन्ती भी गाई जाती है। यूँ भी जन्म दिन मनाया जाता है। आत्मा का तो एक ही नाम चला आता है। बाप कहते हैं मैं गर्भ से जन्म नहीं लेता हूँ। मैं साधारण शरीर में प्रवेश करता हूँ। आत्मा जब शरीर में प्रवेश करती है तो अन्दर चुरपुर करती है। मालूम पड़ता है - अन्दर आत्मा ने प्रवेश किया है। बच्चे के आरगन्स चलने लगते हैं। यह बात अच्छी रीति समझनी है। और जो भी मनुष्य सुनाते हैं वह कब ऐसे नहीं कहते कि हम आत्मा तुमको समझाते हैं। वह प्रसिद्ध हैं शरीर से। यह बाबा तो विचित्र है, इनको अपना शरीर नहीं है। शरीरधारी को कभी भगवान नहीं कहना चाहिए। स्थूल वा सूक्ष्म कोई भी हो! आत्मा इन आरगन्स द्वारा याद करती है परमपिता परमात्मा को। वह तो बैठकर मनुष्यों के बनाये हुए शास्त्र सुनाते हैं। यहाँ यह नई बात है। भगवानुवाच, भगवान कौन? जिसको सब भगत हे भगवान कहकर याद करते हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर के तो नाम जानते हैं। हे ब्रह्मा, हे विष्णु कह पुकारते हैं, वह हैं देवतायें। भगवान कहने से निराकार ही याद आते हैं। निराकार परमात्मा की ही बन्दगी करते हैं। वह कहते हैं मैं भी हूँ आत्मा परन्तु सुप्रीम हूँ। मेरा भी चित्र बनाते हैं। तुम आत्माओं के भी चित्र बनाते हैं। मन्दिरों में बड़ा शिवलिंग भी रखते हैं और छोटे सालिग्राम भी, जिससे सिद्ध होता है कि वह आत्मायें हैं एक परमात्मा के बच्चे। बाप हमेशा बच्चों से बड़ा होता है इसलिए बड़ा लिंग बनाते हैं। वास्तव में मैं कोई सालिग्राम बड़ा नहीं हूँ। आत्मा साइज़ में छोटी बड़ी नहीं होती है। मनुष्य छोटा बड़ा होता है, बाकी आत्मा जैसी तेरी वैसी मेरी। पर मेरी आत्मा परम है, परे ते परे परमधाम में रहने वाली है। ऊंचे ते ऊंचा परमपिता परमात्मा मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। बीज रचयिता को कहा जाता है। जैसे जड़ बीज लगाया जाता है उससे पहले झाड़ निकल आता है। वैसे आत्मा का रूप देखो कैसा है। शरीर का कितना विस्तार है। तो पहले नई बात यह है कि यहाँ परमात्मा बाप पढ़ाते हैं। ऊंचे ते ऊंच भगवानुवाच तो जरूर इम्तहान भी ऊंचे ते ऊंचा होगा। भगवान कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, जिससे भविष्य 21 जन्मों के लिए तुमको देवता बनाता हूँ। फिर उनमें तुम सूर्यवंशी बनो वा चन्द्रवंशी बनो। मर्तबे तो बहुत हैं। यह सारी राजधानी स्थापन होती है। यह है संगमयुग। बाप समझाते हैं कि तुम इस जन्म के लिए नहीं पढ़ते। यह है भविष्य की कमाई और जो भी कुछ करते हैं वह सब इस जन्म के लिए। मनुष्य समझते हैं आगे का अभी क्यों सोचें, जो होना होगा देखा जायेगा। तुम बच्चे निश्चय करते हो हम अगले जन्म-जन्मान्तर के लिए पढ़ते हैं। बाप आने वाले 21 जन्मों का वर्सा देते हैं, इस निश्चय से तुम पढ़ते हो। बिगर निश्चय कोई यहाँ बैठ न सके। यहाँ कोई पण्डित आदि नहीं पढ़ाते हैं, परन्तु निराकार भगवान पढ़ाते हैं। आत्मा को खुशी होती है कि हमको बेहद का बाप पढ़ाते हैं, इनको अपना मनुष्य तन तो है नहीं। खुद कहते हैं मुझ निराकार को इस ब्रह्मा तन में ही आना है। यह अनादि बना बनाया ड्रामा है। तुमको बुद्धि में सारा याद आता है। मूलवतन में हम आत्मायें रहती हैं और कोई मनुष्य की बुद्धि में यह नहीं आता होगा कि हमारी आत्मा परमधाम में बाप के साथ रहने वाली है, जिसको ब्रह्माण्ड कहते हैं। हम आत्मा हैं बिल्कुल छोटा स्टॉर। पूजा के लिए बड़ा बनाया है। बाकी इतनी बड़ी आत्मा यहाँ भ्रकुटी में तो बैठ न सके। कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा..... स्टॉर कितना छोटा है। यह बना बनाया अविनाशी ड्रामा है। हर एक आत्मा में अपना-अपना अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, जो हर एक अपना-अपना पार्ट रिपीट करता है। इसमें जरा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता है। फिल्म में जो एक बार पार्ट हुआ है वह फिर रिपीट होगा, इसमें भूल चूक हो नहीं सकती। यह बातें बिल्कुल नई हैं। कोटों में कोई ही समझते हैं। 8-10 वर्ष वाले भी पढ़ाई को छोड़ देते हैं, संगदोष लग जाता है। यह पढ़ाई ऐसी है जो जहाँ तक जीते रहो, वहाँ तक पीते रहो। अन्त तक यह पढ़ाई चलती रहेगी। यह पढ़ाई हम आने वाले 21 जन्मों के लिए पढ़ते हैं। बच्चों को यह नशा चढ़ता है कि हमको भगवान पढ़ाते हैं। कोई राजा का बच्चा हो और राजा ही बैठ उनको पढ़ावे तो कहेंगे हमारा बाबा, महाराजा हमको पढ़ाते हैं। यहाँ है पतित-पावन बाप, जो हमको पढ़ाते हैं। राजयोग सिखाते हैं। अन्दर सदैव बहुत खुशी रहनी चाहिए। हम गॉडली स्टूडेन्ट, गॉड फादर परमपिता परमात्मा से स्वर्ग का स्वराज्य ले रहे हैं। कितनी सहज बात है। परन्तु इस पढ़ाई में माया के विघ्न भी बहुत पड़ते हैं। चलते-चलते पढ़ाई को छोड़ भी देते हैं। यह रूहानी पढ़ाई रोज़ पढ़नी पड़े, इसके लिए ही यह टेप आदि का प्रबन्ध रखा है। मनुष्य पढ़ने के लिए अमेरिका, लन्दन में भी जाते हैं। यहाँ तो घर में रहने वाले पूरा नहीं पढ़ते। समझते नहीं कि परमात्मा हमको राजयोग सिखला रहे हैं। भगवान जो त्रिलोकीनाथ है, वर्ल्ड आलमाइटी है, लिबरेटर है, गाइड है, उनकी महिमा देखो कितनी है। परन्तु बाप को तुम्हारे में भी कोई विरले जानते हैं।
इस समय तुम गुप्त हो। तुम जानते हो हम मूलवतन के रहने वाले हैं फिर सूक्ष्मवतन भी है। उस सूक्ष्मवतन में बच्चियां जाती हैं। मनुष्य साक्षात्कार करते हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में जाते हो। सूक्ष्मवतन में तुम ब्राह्मण और देवताओं का मिलन होता है। वह है ब्राह्मण और देवताओं का संगम। यह है ब्राह्मण और क्षत्रियों का संगम। वहाँ भोग लेकर जाते हो। अन्त में बहुत साक्षात्कार होंगे। जैसे कन्या पियरघर से ससुराल घर में जाती है तो बहुत धूमधाम से बाजे गाजे बजाते हैं। ऐसे अन्त में बहुत साक्षात्कार होंगे। शुरू शुरू में तुमने बहुत कुछ देखा है फिर पिछाड़ी में भी बहुत कुछ देखेंगे। पढ़ते रहेंगे तब ही तो देखेंगे। अगर कोई का कर्मबन्धन नहीं है तो पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है। कोई का कोई मर जाता है, समझा जाता है अब यह अच्छी तरह से पढ़ सकेंगे क्योंकि बधंन छूट गया। अब खूब पुरुषार्थ करो अच्छा पद पाओ। यह नॉलेज बड़ी वन्डरफुल है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - कहते हैं बच्चे अब गफलत मत करो। माया तुम्हारा दीवा झट बुझा देगी, इसलिए बाप को अच्छी तरह याद करना है और पढ़ना है। जब तक यहाँ बैठे हो तो डायरेक्ट सुनने से नशा चढ़ता है। बाहर गये तो नशा गुम हो जाता है। जैसा संग वैसा रंग लग जाता है। बन्धन नहीं है तो बैठ पढ़े और पढ़ाये।
चित्र बहुत अच्छे बने हुए हैं। बाबा युक्तियां रच रहे हैं। गांवड़े वाले कैसे सीखें! यह तो स्लाइड से भी सीख सकते हैं। दिन प्रतिदिन इप्रूवमेंट होती रहती है। तुम्हारी बुद्धि में सारा दिन स्वदर्शन चक्र फिरना चाहिए। बुद्धि में होगा तब तो किसको समझायेंगे। नहीं तो टीचर समझ जाते हैं कि इसका पढ़ाई में ध्यान नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। मित्र सम्बन्धी, शरीर का भान आदि याद रहता है, तभी धारणा नहीं होती। फिर हम कहेंगे तकदीर में नहीं है। कितना माथा मारते हैं तो भी श्रीमत पर नहीं चलते। बच्चे पूछते हैं बाबा क्या होता है? बाबा कहेंगे तुम ठाrक पढ़ते नहीं हो, इसमें आशीर्वाद की तो बात ही नहीं। हम पढ़ाते हैं, तुम अपने ऊपर पढ़ने की कृपा करो। श्रीमत पर चलना - यही कृपा है। नहीं चलते गोया अपने ऊपर अकृपा कर श्रापित करते हैं। बाप से वर्सा न ले, रावण की मत पर चल अपने को श्रापित करते हैं। बाप तो वर्सा देने आये हैं। आशीर्वाद करते हैं चिरन्जीवी भव, जीते रहो अर्थात् स्वर्गवासी भव, स्वर्ग को ही अमरपुरी कहा जाता है। अमरनाथ ही ऐसी आशीर्वाद करते हैं। अमरपुरी के देवतायें पवित्र थे ना। हद के सम्बन्धों आदि से मोह का त्याग करना ही है। अब बाबा के पास जाना है। बाबा कहते देह के मोह से तुमको यहाँ की याद पड़ती है इसलिए देही-अभिमानी बनो तो अन्त में तुमको मुक्तिधाम तथा सुखधाम की याद पड़ेगी। शान्तिधाम और सुखधाम, यह है दु:खधाम। आदि मध्य अन्त, नई दुनिया, बीच की दुनिया और पुरानी दुनिया। जब आधा समय पूरा होता है फिर पुरानी दुनिया का नाम शुरू होता है। यह पुरानी दुनिया अब नई हो रही है। फिर से नई कैसे हो रही है, वह आकर देखो। समझो। परन्तु कोटो में कोई ध्यान देकर समझेंगे। हजारों लाखों आते हैं उनमें से 2-4 निकलते हैं। फिर भी ढीले हो जाते हैं। एक प्रदर्शनी से 2-4 भी ठहर जायें तो अहो सौभाग्य। दिन प्रतिदिन यह प्रदर्शनी भी वृद्धि को पायेगी। चलते-चलते फिर रोज़ 10 हजार भी आयेंगे। बड़े बड़े हाल, बड़े बड़े चित्र भी होंगे। समझाने वाले भी तीखे होंगे। अन्त में महिमा तो निकलनी है। कहेंगे हे प्रभू, आपकी पतित दुनिया को पावन बनाने की गति सबसे न्यारी है। भक्ति की बहुत आदत पड़ी हुई है। देवाला मारा या कोई मर गया तो गुरू लोग कहेंगे देखा - भक्ति छोड़ दी तब ऐसा हुआ। मायावी विघ्न पड़ते हैं, श्रीमत छोड़नी नहीं है। माया बड़ी मोहनी है, कितने फैशनबुल हो गये हैं। समझते हैं हमारे लिए यह स्वर्ग हो गया है। माया का पाम्प फॉल आफ रावण राज्य है। साइंस के कारण माया का भभका बहुत है। समझते हैं गांधी ने स्वर्ग बनाया। तुमको अब स्वर्ग का ज्ञान मिला है तब समझते हैं यह नर्क है। यह राज्य रुण्य के पानी मिसल (मृग तृष्णा समान) है। (दुर्योधन का मिसाल) यह राज्य गया कि गया। कल्प की बात है। कल्प-कल्प नई दुनिया होती रहती है और पुरानी दुनिया खत्म होती है। त्रिमूर्ति शिव भी है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना कर रहे हैं, शंकर द्वारा विनाश होना है। फिर जो राजयोग सीखते हैं वही राज्य चलायेंगे। दैवी राज्य स्थापन कर उनकी जन्म-जन्मान्तर पालना करते हैं। यह बुद्धि में धारणा करनी है फिर सर्विस करनी है। सच्ची गीता के तुम पाठी हो। सुनना, सुनाना, कांटों को फूल बनाना। तुम आधाकल्प के लिए दु:ख से छूटते हो। जैसे इतवार के दिन सभी की छुट्टी होती है ना। ऐसे आधाकल्प तुम दु:ख से, रोने पीटने से छूट जाते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कर्मबन्धन से मुक्त हो रूहानी पढ़ाई रोज़ पढ़नी है। जहाँ तक जीना है, पढ़ाई जरूर पढ़नी है।
2) हद के सम्बन्धों वा देह से मोह का त्याग कर अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है। संगदोष से अपनी सम्भाल करनी है।
वरदान:- हर समय अपने दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव
जैसे स्नेह के कारण हर एक के दिल में आता है कि हमें बाप को प्रत्यक्ष करना ही है। ऐसे अपने संकल्प, बोल और कर्म द्वारा दिल में प्रत्यक्षता का झण्डा लहराओ, सदा खुश रहने की डांस करो, कभी खुश, कभी उदास-यह नहीं। ऐसा दृढ़ संकल्प अर्थात् व्रत धारण करो कि जब तक जीना है तब तक खुश रहना है। मीठा बाबा, प्यारा बाबा, मेरा बाबा-यही गीत ऑटोमेटिक बजता रहे तो प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने लगेगा।
स्लोगन:-विघ्न-विनाशक बनना है तो सर्व शक्तियों से सम्पन्न बनो।
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