26-03-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’ अव्यक्त बापदादा“ रिवाइज:14-03-1982 मधुबन

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बापदादा द्वारा देश-विदेश का समाचार

आज बापदादा बच्चों के साथ सैर करने गये थे। बापदादा को सारी सृष्टि की परिक्रमा लगाने में कितना समय लगता होगा? जितने समय में चाहें उतने समय में परिक्रमा को पूरा कर सकते हैं। चाहे विस्तार से करें, चाहे सार में करें। आज डबल विदेशियों से मिलने का दिन है ना, इसलिए सैर समाचार सुनाते हैं। विदेश में क्या देखा और देश में क्या देखा?

कुछ समय पहले विदेश की विशेषता की लहर भारत में आई - वह क्या थी? जैसे विदेश में अल्पकाल के सुख के साधनों की मस्ती में सदा मस्त रहते थे, ऐसे भारतवासियों ने भी विदेशी सुख के साधनों को खूब अपने प्रति कार्य में लाया। खूब विदेशी साधनों द्वारा अल्पकाल के सुखों में मस्त होने की अनुभूति की और अब भी कर रहे हैं। भारत वालों ने अल्पकाल के साधनों की कापी की और कापी करने के कारण अपनी असली शक्ति को खो दिया। रूहानियत से किनारा कर लिया और विदेशी सुख के साधनों का सहारा ले लिया। और विदेश ने क्या किया? समझदारी का काम किया। भारत की असली रूहानी शक्ति ने उन्हों को विदेश में आकर्षित किया। इसका परिणाम हरेक नामधारी रूहानी शक्ति वाले के पास अथवा निमित्त गुरूओं के पास विदेशी फालोअर्स ज्यादा देखने में आयेंगे। विदेशी आत्मायें नकली साधनों को छोड़कर असलियत की तरफ, रूहानियत की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रही हैं और भारतवासी नकली साधनों में मस्त हो गये हैं। अपनी चीज़ को छोड़ पराई चीज़ के तरफ जा रहे हैं और विदेशी आत्मायें असली चीज़ को ढूढँने, परखने और पाने की ज्यादा इच्छुक हैं।

तो आज बापदादा देश-विदेश का सैर कर रहे थे। उस सैर में यही देखा कि भारतवासी क्या कर रहे हैं और विदेशी क्या कर रहे हैं। भारतवासियों को देख बापदादा को तरस आ रहा था कि इतने ऊंचे कुल की नम्बरवन धर्म की आत्मायें, पीछे के धर्म वालों की छोड़ी हुई चीजों को अपनाने में ऐसे मस्त हो गये हैं जो अपनी विशेष वस्तु को भूल गये हैं। इस कारण भारत रूपी घर में बैठे हुए, भारत रूपी घर में आये हुए श्रेष्ठ मेहमान बाप को भी नहीं जानते और विदेश की आत्मायें दूर बैठे भी सिर्फ सन्देश सुनते ही पहचान कर और पहुंच गई हैं। तो बापदादा देख रहे हैं कि डबल विदेशी बच्चों की परखने की ऑख बहुत तेज है। दूर से परखने की ऑख द्वारा, अनुभव द्वारा देख लिया और पा लिया। और भारतवासी, उनमें भी बापदादा को आबू निवासियों पर ज्यादा तरस आता है जो पास होते भी परखने की ऑख नहीं। परखने की ऑख से अंधे रह गये ना! ऐसे बच्चों को देख तरस तो आयेगा ना! तो डबल विदेशियों की कमाल देख रहे थे।

दूसरा क्या देखा - आजकल जैसे भारत गरीब है ऐसे अब लास्ट समय नजदीक होने के कारण विदेशियों में भी सम्पन्नता में कमी आ गई है। जैसे वृक्ष जब हरा-भरा होता है तो फल-फूल सब लगे होते हैं लेकिन जब वृक्ष सूखने शुरू होता है तो सब फल फूल भी सूखने शुरू हो जाते हैं। तो यह देश की प्राप्ति रूपी विशेषता जिससे प्रजा सुखी रहे, शान्ति का वातावरण रहे वह फल फूल सूखने लग गये हैं। अभी विदेश में भी नौकरी सहज नहीं मिलती। पहले विदेश में कभी यह प्राब्लम सुनी थी? तो यह भी निशानी है सुख के साधन और शान्ति के फल सूख रहे हैं। भारत रूपी मुख्य तना सूख रहा है उसका प्रभाव मुख्य शाखाओं पर भी पड़ना शुरू हो गया है। यह क्रिश्चियन धर्म लास्ट की मुख्य बड़ी शाखा है। वृक्ष के चित्र में क्रिश्चियन धर्म कौन-सी शाखा है? जो मुख्य शाखायें दिखाते हो उसमें तो लास्ट हुआ ना। उस शाखा तक सम्पन्नता के प्राप्ति की हरियाली सूख गई है। यह निशानी है सारे वृक्ष के जड़जडीभूत अवस्था की। तो सारे विश्व में अल्पकाल के प्राप्ति रूपी फल-फूल सूखे हुए देखे। सिर्फ बाकी दो बातें हैं:-

एक - मन से, मुख से चिल्लाना और दूसरा कैसे भी मजबूरी से जीवन को, देश को चलाना। चिल्लाना और कार्य को चलाना। यह दो काम बाकी रह गये हैं। खुशी-खुशी से चलना वह समाप्त हो गया है। कैसे भी चलाना है, यह रह गया है। विदेश में भी यह रूपरेखा बन गई है। तो यह भी क्या निशानी हुई? मजबूरी से चलाना कहाँ तक चलेगा! अब जो चिल्ला रहे हैं ऐसे विश्व को क्या करना है? मजबूरी से चलाने वालों को प्राप्ति के पंख दे उड़ाना है। कौन उड़ा सकेगा? जो स्वयं उड़ती कला में होगा। तो उडती कला में हो? उड़ती कला वा चढ़ती कला - किस कला में हो? चढ़ती कला भी नहीं, अभी उड़ती कला चाहिए। कहाँ तक पहुँचे हो? डबल विदेशी क्या समझते हैं? मैजारिटी तो बाप समान शिक्षक क्वालिटी हैं ना। तो टीचर अर्थात् उड़ती कला वाले। ऐसे ही हो ना? अच्छा -

आज तो सिर्फ सैर समाचार सुनाया। अब देश-विदेश वाले प्रैक्टिकल में निशानियां स्पष्ट देख रहे हैं। आजकल जो बात होती तो कहते हैं 100 वर्ष पहले हुई थी। सब विचित्र बातें हो रही हैं क्योंकि यह विचित्र बाप को प्रत्यक्ष करेंगी। सबके मुख से अभी यह आवाज़ निकल रहा है कि अब क्या होगा? यह क्वेश्चन मार्क सबकी बुद्धि में स्पष्ट हो गया है। अब फिर यह बोल निकलेंगे कि जो होना था वह हो गया। बाप आ गया। क्वेश्चन मार्क समाप्त हो, फुलस्टॉप लग जायेगा। जैसे मथनी से मक्खन निकाला जाता है तो पहले हलचल होती है बाद में मक्खन निकलता है। तो यह क्वेश्चन मार्क रूपी हलचल के बाद प्रत्यक्षता का मक्खन निकलेगा। अब तेजी से हलचल शुरू हो गई है। चारों और अब प्रत्यक्षता का मक्खन विश्व के आगे दिखाई देगा। लेकिन इस मक्खन को खाने वाले कौन? तैयार हो ना खाने के लिए? सभी आप फरिश्तों का आह्वान कर रहे हैं। अच्छा।

सर्व अप्राप्त आत्माओं को सर्व प्राप्ति कराने वाले, सर्व को परखने का नेत्र दान करने वाले महादानी, सर्व को सन्तुष्टता का वरदान देने वाले वरदानी सन्तुष्ट आत्मायें, सदा स्व के प्राप्ति के पंखों द्वारा अन्य आत्माओं को उड़ाने वाले, सदा उड़ती कला वाले, सदा स्व द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, विश्व के आगे प्रख्यात होने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

विदेशी बच्चों के साथ - अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

सदा अपने को सर्व प्राप्ति सम्पन्न अनुभव करते हो? सर्व प्राप्तियों की अनुभूति है? जिस आत्मा को सर्व प्राप्तियों की अनुभूति होगी, उनकी निशानी क्या दिखाई देगी? वह सदा सन्तुष्ट होगा। उनके चेहरे पर सदा प्रसन्नता की निशानी दिखाई देगी। उनके चेहरे से दिखाई देगा कि यह सब कुछ पाई हुई आत्मा है। जैसे देखो लौकिक रीति से जो राजकुमार, राजकुमारी होते हैं वा ऊंचे कुल के होते हैं तो उनके चेहरे से दिखाई देता कि यह भरपूर आत्मायें हैं। ऐसे आप रूहानी कुल की आत्माओं के चेहरे से दिखाई दे - जो किसको नहीं मिला है वह इनको मिला है। ऐसे अनुभव होता है कि हमारी चलन और चेहरा बदल गया है, चेहरे पर प्राप्ति की चमक आ गई है? डबल विदेशियों को डबल चांस मिला है तो सेवा भी डबल करनी है। डबल सेवा कैसे करेंगे? सिर्फ वाणी से नहीं लेकिन चलन से भी और चेहरे से भी। जैसे स्वयं परवाने बने हो, ऐसे अनेक परवानों को शमा के पास लाने वाली आत्मायें हो। तो आपकी उड़ान देखते ही अन्य परवाने भी आपके पीछे-पीछे उड़ने लग जायेंगे। जैसे आप सभी हर बात की गहराई में जाते हो, ऐसे हर गुण की अनुभूति की गहराई में जाओ। जितना गहराई में जायेंगे उतना रोज़ नया अनुभव कर सकेंगे। जैसे शान्त स्वरूप का अनुभव रोज़ करते हो वैसे हर रोज़ नवीनता का अनुभव करो। नया अनुभव तब होगा जब एकान्तवासी होंगे। एकान्तवासी अर्थात् सदा स्थूल एकान्त के साथ-साथ एक के अन्त में सदा रहना।

एक “बाबा'' शब्द भी जो बार-बार कहते हो, वह हर बार नया अनुभव होना चाहिए। जैसे शुरू में जब आये तब भी बाबा शब्द कहते थे, मधुबन में आये तब भी यही बोला और अब जब जायेंगे तब भी बाबा शब्द बोलेंगे लेकिन पहले बोलने में और अब के बोलने में कितना अन्तर होगा। यह अनुभव तो है ना? बाबा शब्द तो वही है लेकिन जिगरी प्राप्ति के आधार पर वही बाबा शब्द अनुभव में आगे बढ़ता गया। तो फ़र्क पड़ता है ना! ऐसे सब गुणों में भी रोज़ नया अनुभव करो। शान्त स्वरूप तो हो लेकिन शान्ति की अनुभूति किस प्वॉइन्ट के आधार पर होती है, जैसे देखो मैं आत्मा परमधाम निवासी हूँ इससे भी शान्ति की अनुभूति होती है और मैं आत्मा सतयुग में सुख-शान्त स्वरूप हूँगी उसका अनुभव देखो तो और होगा। ऐसे ही कर्म करते हुए, अशान्ति के वातावरण में होते भी मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, उसकी अनुभूति करते हो तो उसका अनुभव और होगा। फ़र्क हो गया ना तीनों में। है तो शान्त स्वरूप। ऐसे रोज़ उस शान्त स्वरूप की अनुभूति में भी प्रोग्रेस हो। कभी किस प्वॉइन्ट से शान्त स्वरूप की अनुभूति करो, कभी किससे तो रोज़ का नया अनुभव होगा और सदा इसी में बिजी रहेंगे कि नया-नया मिले। नहीं तो क्या होता है चलते-चलते वही याद की विधि, वही मुरली सुनने और सुनाने की विधि, फिर वही बात कहाँ-कहाँ कामन अनुभव होने लगती है इसलिए फिर उमंग भी जैसे सदा रहता है वैसे ही रहता है, आगे नहीं बढ़ता। और इसकी रिजल्ट में फिर कहाँ अलबेलापन भी आ जाता है। यह तो मुझे आता ही है, यह तो जानते ही हैं! तो उड़ती कला के बजाए ठहरती कला हो जाती है इसलिए स्वयं तथा जिन आत्माओं के लिए निमित्त बनते हो, उन्हें सदा नवींनता का अनुभव कराने के लिए यह विधि जरूर चाहिए। समझा! आप सब मैजारिटी सेवा के निमित्त आत्मायें हो ना, तो यह विशेषता जरूर धारण करनी है। रोज़ कोई न कोई प्वॉइन्ट निकालो - शान्त स्वरूप के अनुभूति की प्वॉइन्ट्स क्या हैं? ऐसे प्रेम स्वरूप, आनन्द स्वरूप सबकी विशेष प्वॉइन्ट बुद्धि में रखते हुए रोज़ नया-नया अनुभव करो। सदा ऐसे समझो कि आज नया अनुभव करके औरों को कराना है। फिर अमृतवेले बैठने में भी बड़ी रूची होगी। नहीं तो कभी-कभी सुस्ती की लहर आ जाती है। जहाँ नई चीज मिलती है वहाँ सुस्ती नहीं होती है। और वही-वही बातें हैं तो सुस्ती आने लगती है। तो समझा क्या करना है? तरीका समझ में आया? अभी कोई प्रश्न पूछना है तो पूछो - विदेशियों को वैसे भी वैरायटी अच्छी लगती है। जैसे पिकनिक में नमकीन भी चाहिए, मीठा भी चाहिए। और वैरायटी प्रकार का चाहिए तो जब भी अनुभव करने बैठते हो तो समझो अभी बापदादा से वैरायटी पिकनिक करने जा रहे हैं। पिकनिक का नाम सुनकर ही फुर्त हो जायेंगे। सुस्ती भाग जायेगी। वैसे भी आप लोगों को पिकनिक करना, बाहर में जाना अच्छा लगता है ना! तो चले जाओ बाहर, कभी परमधाम में चले जाओ, कभी स्वर्ग में चले जाओ, कभी मधुबन में आ जाओ, कभी लण्डन सेन्टर में चले जाओ, कभी आस्ट्रेलिया पहुँच जाओ। वैरायटी होने से रमणीकता में आ जायेंगे। अच्छा।

वरदान:- बेहद के सम्पूर्ण अधिकार के निश्चय और रूहानी नशे में रहने वाले

सर्वश्रेष्ठ, सम्पत्तिवान भव
वर्तमान समय आप बच्चे ऐसे श्रेष्ठ सम्पूर्ण अधिकारी बनते हो जो स्वयं आलमाइटी अथॉरिटी के ऊपर आपका अधिकार है। परमात्म अधिकारी बच्चे सर्व संबंधों का और सर्व सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। इस समय ही बाप द्वारा सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति भव का वरदान मिलता है। आपके पास सर्व गुणों की, सर्व शक्तियों की और श्रेष्ठ ज्ञान की अविनाशी सम्पत्ति है, इसलिए आप जैसा सम्पत्तिवान और कोई नहीं।

स्लोगन:-सदा अलर्ट रहो तो अलबेलापन समाप्त हो जायेगा।

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