21-02-17 प्रात:मुरली ओम शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - समझदार बन अपना पोतामेल देखो, कोई कर्मेन्द्रिय धोखा तो नहीं देती हैं! सारे दिन में कोई भूल हो तो अपने आपको सज़ा दो''
प्रश्नः- बाप से सच्चा व्यापार करने वा ऊंच पद पाने का आधार क्या है?
उत्तर:- बाप से सच्चा व्यापार करना है तो बाप के हर डायरेक्शन पर चलो। बाबा कहते बच्चे यदि ऊंच पद पाना है तो अन्दर में जो भी बुरी आदतें हैं वह निकाल दो। कुदृष्टि, क्रोध आदि से बहुत नुकसान होता है, इसलिए कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति जो बाप ने समझाई है, उसे बुद्धि में रखो।
ओम् शान्ति।
बच्चे, आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो? हर एक बात अपने आप से पूछनी होती है। बाबा युक्ति बताते हैं कि अपने आपसे पूछो कि हम आत्म-अभिमानी होकर बैठे हैं? बाप को याद कर रहे हैं? तुम्हारी यह सेना है। उस सेना में सिर्फ जवान होते हैं। तुम्हारी इस सेना में बूढ़े जवान बच्चे आदि सब हैं। 80-90 वर्ष के बूढ़े भी हैं। यह सेना है - माया पर जीत पाने के लिए। हर एक को माया पर जीत पाकर बाप से बेहद का वर्सा लेना है। माया बड़ी जबरदस्त है, बड़ी प्रबल है। बहुत तूफान लाती है। हर एक कर्मेन्द्रिय धोखा देती है। सबसे जास्ती धोखा देने वाली कौन सी कर्मेन्द्रिय है? आंखे सबसे जास्ती धोखा देती हैं। बच्चों को समझाया जाता है - भल स्त्री पुरूष हो तो भी बुद्धि से समझो हम बी.के. हैं। नहीं तो आंखे बहुत धोखा देंगी। यह भी चार्ट में लिखना चाहिए - सारे दिन में हमको कौन सी कर्मेन्द्रिय ने धोखा दिया है! आंखें नम्बरवन धोखा देने वाली हैं। आंखें नुकसान बहुत करती हैं। सूरदास का मिसाल, देखा मुझे आंखे धोखा देती हैं तो आंखे निकाल दी। भल बच्चे सर्विस बहुत अच्छी करते हैं - परन्तु माया भी कम नहीं है। आंखें बहुत धोखा देती हैं और एकदम पद भ्रष्ट कर देती हैं। समझू सयाने बच्चे जो होंगे वह सारा दिन नोट करेंगे। हमने कोई भूल तो नहीं की! भक्तिमार्ग में भी अपने को चमाट मारते हैं कि याद रहे फिर यह काम कभी नहीं करेंगे। वैसे ही इसमें भी जांच रखो। अगर आंखें कहाँ धोखा दें तो अपने को सजा दो। किनारा कर चला जाना चाहिए। खड़ा होकर देखना नहीं चाहिए। सन्यासी लोग बहुत करके आंखे बन्द कर बै"ते हैं। स्त्री को देखते ही नहीं हैं। वहाँ पुरूषों को आगे, स्त्रियों को पिछाड़ी में बिठाते हैं। यहाँ भी तुम बच्चों को मेहनत करनी है। विश्व का राज्य पाना कोई मासी का घर नहीं है।
अभी तुम बच्चे हो संगमयुग पर। बाबा कहते हैं संगम के साथ-साथ पुरूषोत्तम अक्षर जरूर लिखो, जो किसको भी समझाने में सहज हो। पुरुषोत्तम संगमयुग, जबकि तुम मनुष्य से देवता बनते हो। गायन है ना - मनुष्य से देवता किये... कौन से मनुष्य? कलियुगी। देवतायें तो रहते हैं सतयुग में। तो कलियुगी मनुष्यों को देवता, नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने के लिए ही बाप आते हैं। यह भी अभी तुम जानते हो। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में पड़े हैं। बहुत हैं जो कभी स्वर्ग को देख भी नहीं सकेंगे। बाप कहते हैं तुम्हारा यह धर्म सुख देने वाला है। भल गाते भी हैं हेविनली गॉड फादर परन्तु उसने हेविन की स्थापना किया, यह नहीं जानते। और धर्म वाले भी कहते हैं हेविनली गॉड फादर। परन्तु उन्हों को यह मालूम नहीं है कि हेविन में हमारा पार्ट नहीं है। क्रिश्चियन लोग खुद कहते हैं पैराडाइज था। इन देवी देवताओं को गॉड गॉडेज भी कहते हैं। परन्तु यह नहीं समझते तो जरूर गॉड ने उन्हों को गॉड गॉडेज बनाया होगा। तुमको बाप अब ऐसा बना रहे हैं। तो तुमको मेहनत भी करनी चाहिए। अपने से रोज़ पूछो मुझे कौन सी कर्मेन्द्रिय धोखा देती है? जबान भी कम नहीं है। अच्छी चीज़ देखेंगे तो दिल होगी यह खाऊं ... आगे तुम बच्चों की कचहरी होती थी। भूल बताते थे। शिवबाबा के यज्ञ से कोई चीज़ चोरी करना बड़ा खराब है। परन्तु माया नाक से बहुतों को पकड़ती है। तो बाप कहते हैं बच्चे बुरी आदतें जो हैं वह निकालनी चाहिए। नहीं तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। भल स्वर्ग में जायेंगे - परन्तु कहाँ राजा, कहाँ प्रजा... प्रजा में भी गरीब साहूकार होते हैं। तो कर्मेन्द्रियों की बहुत सम्भाल रखनी चाहिए। पोतामेल रखना चाहिए - यह भी व्यापार है ना। कोई बिरला ही यह व्यापार करे।
बाप समझाते हैं बच्चे अगर मेरे से व्यापार करना है, ऊंच पद पाना है तो डायरेक्शन पर चलो। माया तुमको भुलायेगी जरूर, अगर बाप की मत पर नहीं चलेंगे तो पिछाड़ी में सब साक्षात्कार होंगे। फिर तुम बहुत पछतायेंगे। अभी तो सब कहते हैं हम नर से नारायण बनेंगे। परन्तु अपने आपसे पूछते रहो, बाबा के डायरेक्शन को अमल में लाओ तो बहुत उन्नति होगी। सारे दिन का पोतामेल निकालो। आंखों ने कहाँ धोखा तो नहीं दिया! मंजिल बहुत ऊंची है इसलिए 8 रत्न ही पास विद् ऑनर निकलते हैं। भल 9 रत्न भी होते हैं, उसमें नम्बरवन तो है बाबा। बाकी 8 रत्न, जब कोई ग्रहचारी बैठती है तो 8 रत्न की अंगूठी पहनते हैं। तो पास विथ ऑनर 8 ही निकलते हैं। बाकी को कुछ न कुछ दाग लगते हैं, इसमें बड़ी मेहनत है। रावणराज्य है ना। सतयुग में यह बातें ही नहीं होती क्योंकि रावणराज्य है नहीं। ऊंच पद देने लिए भगवान तुमको पढ़ाते हैं। विचार करो। गुरू भी करते हैं ना। यह तो सतगुरू है। उन्होंने तो सर्वव्यापी कह बाप से बेमुख कर दिया है। तुम समझा सकते हो - बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं पतित-पावन हूँ। फिर तुम कहते हो "िक्कर भित्तर में है। अब बाप कहते हैं तुम सब आसुरी मत पर मेरी ग्लानी, अपकार करते आये हो। अब हमको सब पर उपकार करना है। तुम बच्चों में कुदृष्टि, क्रोध आदि कुछ नहीं होना चाहिए। अपना ही नुकसान करते हैं। कुदृष्टि होती है तो उनका भी वायब्रेशन आता है। दूसरे को भी कशिश होती है। बाबा घड़ी-घड़ी बच्चों को ध्यान खिचवाते हैं। बच्चे अपने को देखो कि कोई भी कर्मेन्द्रिय के वश हो विकर्म तो नहीं बनाया! यह है पाम संवत, पहले था विकर्माजीत संवत। फिर जब विकर्म करना शुरू करते हैं तो पाम संवत होता है। अब बाप बच्चों को कर्म-अकर्म-विकर्म की गति भी समझाते हैं। कर्म तो करना ही होता है। सतयुग में तुम्हारा कर्म अकर्म बनता है। यह सब बातें तुम अभी जानते हो। दूसरे तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। तुमको अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है। त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बनाने वाला एक ही बाप है। इस ड्रामा के राज़ को कोई बिल्कुल ही नहीं जानते। तुम मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन सबको जानते हो। आधा समय के बाद फिर दूसरे धर्म आते हैं, जो वृद्धि को पाते हैं। उनको गुरू नहीं कहेंगे। गुरू तो एक के सिवाए कोई है नहीं अर्थात् सद्गति करने वाला एक ही है। अब सबकी सद्गति होनी है। उनको धर्म स्थापक कहा जाता है, न कि गुरू। तो उनको याद करने से कोई सद्गति नहीं होगी। विकर्म विनाश नहीं होंगे, उसको भी भक्ति कहा जाता है। ज्ञान की लाइन में सिर्फ तुम ही हो। यह है पाण्डव सेना। तुम सब पण्डे हो, शान्तिधाम और सुखधाम में ले जाने वाले। तुम्हारी बुद्धि में है हम गाइड्स हैं। बाबा भी लिबरेटर और गाइड है। हर एक को लिबरेट करते हैं। बाबा कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। फिर अगर कोई विकर्म किया तो सौ गुणा दण्ड हो जाता है इसलिए जहाँ तक हो सके विकर्म नहीं करो, जो नाम बदनाम हो। विकर्म करने से फिर वृद्धि हो जायेगी इसलिए अब बहुत खबरदारी रखना। भाई-बहन की दृष्टि बहुत पक्की चाहिए। हम ब्रह्मा के बच्चे शिव के पोत्रे हैं। शिवबाबा से हमने प्रतिज्ञा की है फिर भी माया बहुत धोखा देती है। कहना बड़ा सहज है हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। परन्तु डायरेक्शन पर भी अमल करना पड़े। स्त्री पुरुष सारा दिन यह ज्ञान की बातें आपस में करते रहें। दोनों कहते हैं हम बाबा से पूरा वर्सा लेंगे। टीचर से पूरा पढ़ेंगे। अरे ऐसा टीचर फिर कब मिलेगा क्या? यह बस तुम ही जानते हो, देवतायें भी बाप को नहीं जानते तो और धर्म वाले कैसे जानेंगे। अब तुमको बाबा सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुना रहे हैं। यह ज्ञान फिर प्राय:लोप हो जायेगा। मैं ही प्राय:लोप हो जाता हूँ तो फिर यह ज्ञान कहाँ से मिलेगा। बाबा बच्चों को युक्ति बताते हैं तो हमेशा याद रखो कि हमको शिवबाबा सुनाते हैं। यह जानते हैं मैं भी शिवबाबा से वर्सा ले रहा हूँ। यह भी स्टूडेन्ट लाइफ में हैं। तुम भी मनुष्य से देवता बनने के लिए पढ़ रहे हो। देवतायें होते हैं - सतयुग में। कलियुग में मनुष्य हैं। उसमें भी अनेक धर्म हैं। यह बहुत समझने की बातें हैं। यहाँ आते तो बहुत हैं फिर भी तकदीर में नहीं है तो कहते हमको संशय आता है, शिवबाबा इसमें कैसे आकर पढ़ाते हैं। मैं नही जानता हूँ। अरे शिवबाबा अगर न आये तो भला शिवबाबा को याद कैसे करेंगे, जो तुम्हारे विकर्म विनाश हों। उनकी याद के बिना तो विकर्म विनाश हो न सकें। सजायें बहुत खानी पड़ेंगी। बाकी पाई पैसे का पद मिलेगा। यह राजधानी बन रही है। राजाओं के आगे दास दासियां भी होते हैं ना। बाबा से पूछो कि हमारा शरीर अब छूट जाए तो हम क्या जाकर बनेंगे? तो बाबा सब कुछ सुना देंगे। नम्बरवार तो हैं ना। यह पढ़ाई बड़ी जबरदस्त है, इसमें कमाई बहुत है। मनुष्य कमाई के लिए कितने हैरान रहते हैं। रात दिन बुद्धि उसमें लगी रहती है। सट्टा लगाते रहते हैं। तुम्हारे पास भी बड़े व्यापारी लोग आते हैं। कहते हैं क्या करें फुर्सत नहीं है। अरे विश्व की बादशाही मिलती है - सिर्फ शिवबाबा को याद करना है। अपने ईष्ट देव को भी याद तो करते हो ना। कोई देवता को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे इसलिए बाबा बार-बार समझाते रहते हैं ताकि कोई ऐसे न कहे कि हमको कोई ने समझाया नहीं। तुम बच्चों को हर एक को पैगाम देना है। एरोप्लेन से पर्चा गिराना भी बहुत अच्छा है। कोई ऐसा न रह जाये जो कहे कि हमको मालूम ही नहीं पड़ा कि बाबा आया है इसलिए यह सब करना पड़ता है।
ब्रह्मा है - शिव का पहला बच्चा। प्रजापिता ब्रह्मा वह भी बाप ठहरा ना। ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। बाबा कहते हैं मैं इन द्वारा आदि सनातन धर्म की स्थापना कर रहा हूँ। होवनहार विनाश के बाद विश्व में सुख, शान्ति, पवित्रता होगी। कल्प-कल्प ऐसे स्वर्ग की स्थापना होती है। सदैव बाबा, बाबा कहते रहो। बाबा कहने से ही आंखों से प्रेम के ऑसू आ जायें। बाबा आपसे कब मिलेंगे! परन्तु जो सम्मुख बैठे हैं वह मानते नहीं और नहीं देखने वाले तड़फते हैं। वन्डर है। लिखते हैं बन्धन से छुड़ाओ। कोई-कोई तो बाबा के बनकर फिर माया के बन जाते हैं। फिर पिछाड़ी में याद आयेगा। मरने समय सबको कहते हैं - राम-राम कहो फिर अन्त में कशिश होगी। समझेंगे बाबा की याद से हम विकर्म तो विनाश करें। बाबा कहते हैं मीठे-मीठे बच्चे अपना कल्याण करो। बाप की श्रीमत पर चलो। सबको सन्देश देते रहो। एरोप्लेन से कोई-कोई को पर्चा मिला तो वह जग गये (हिस्ट्री सुनाना)। सारे विश्व में खास भारत में सुख-शान्ति तो स्थापन होनी ही है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) भाई बहन वा भाई-भाई की दृष्टि पक्की करनी है, बहुत खबरदार रहना है। ऐसा कोई कर्म न हो जो बाप का नाम बदनाम हो।
2) बाप में कभी भी संशय नहीं लाना है। प्रेम से बाप को याद करना है। रात दिन पढ़ाई पर ध्यान देकर कमाई जमा करनी है।
वरदान:- संगमयुग की हर घड़ी को उत्सव के रूप में मनाने वाले सदा उमंग-उत्साह सम्पन्न भव
कोई भी उत्सव, उमंग उत्साह के लिए मनाते हैं। आप ब्राह्मण बच्चों की जीवन ही उत्साह भरी जीवन है। जैसे इस शरीर में श्वांस है तो जीवन है ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही उमंग-उत्साह है इसलिए संगमयुग की हर घड़ी उत्सव है। लेकिन श्वांस की गति सदा एकरस, नार्मल होनी चाहिए। अगर श्वांस की गति बहुत तेज हो जाए या स्लो हो जाए तो यथार्थ जीवन नहीं कही जायेगी। तो चेक करो कि ब्राह्मण जीवन के उमंग-उत्साह की गति नार्मल अर्थात् एकरस है!
स्लोगन:-सर्व शक्तियों के खजाने से सम्पन्न रहना - यही ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता है।
“मीठे बच्चे - समझदार बन अपना पोतामेल देखो, कोई कर्मेन्द्रिय धोखा तो नहीं देती हैं! सारे दिन में कोई भूल हो तो अपने आपको सज़ा दो''
प्रश्नः- बाप से सच्चा व्यापार करने वा ऊंच पद पाने का आधार क्या है?
उत्तर:- बाप से सच्चा व्यापार करना है तो बाप के हर डायरेक्शन पर चलो। बाबा कहते बच्चे यदि ऊंच पद पाना है तो अन्दर में जो भी बुरी आदतें हैं वह निकाल दो। कुदृष्टि, क्रोध आदि से बहुत नुकसान होता है, इसलिए कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति जो बाप ने समझाई है, उसे बुद्धि में रखो।
ओम् शान्ति।
बच्चे, आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो? हर एक बात अपने आप से पूछनी होती है। बाबा युक्ति बताते हैं कि अपने आपसे पूछो कि हम आत्म-अभिमानी होकर बैठे हैं? बाप को याद कर रहे हैं? तुम्हारी यह सेना है। उस सेना में सिर्फ जवान होते हैं। तुम्हारी इस सेना में बूढ़े जवान बच्चे आदि सब हैं। 80-90 वर्ष के बूढ़े भी हैं। यह सेना है - माया पर जीत पाने के लिए। हर एक को माया पर जीत पाकर बाप से बेहद का वर्सा लेना है। माया बड़ी जबरदस्त है, बड़ी प्रबल है। बहुत तूफान लाती है। हर एक कर्मेन्द्रिय धोखा देती है। सबसे जास्ती धोखा देने वाली कौन सी कर्मेन्द्रिय है? आंखे सबसे जास्ती धोखा देती हैं। बच्चों को समझाया जाता है - भल स्त्री पुरूष हो तो भी बुद्धि से समझो हम बी.के. हैं। नहीं तो आंखे बहुत धोखा देंगी। यह भी चार्ट में लिखना चाहिए - सारे दिन में हमको कौन सी कर्मेन्द्रिय ने धोखा दिया है! आंखें नम्बरवन धोखा देने वाली हैं। आंखें नुकसान बहुत करती हैं। सूरदास का मिसाल, देखा मुझे आंखे धोखा देती हैं तो आंखे निकाल दी। भल बच्चे सर्विस बहुत अच्छी करते हैं - परन्तु माया भी कम नहीं है। आंखें बहुत धोखा देती हैं और एकदम पद भ्रष्ट कर देती हैं। समझू सयाने बच्चे जो होंगे वह सारा दिन नोट करेंगे। हमने कोई भूल तो नहीं की! भक्तिमार्ग में भी अपने को चमाट मारते हैं कि याद रहे फिर यह काम कभी नहीं करेंगे। वैसे ही इसमें भी जांच रखो। अगर आंखें कहाँ धोखा दें तो अपने को सजा दो। किनारा कर चला जाना चाहिए। खड़ा होकर देखना नहीं चाहिए। सन्यासी लोग बहुत करके आंखे बन्द कर बै"ते हैं। स्त्री को देखते ही नहीं हैं। वहाँ पुरूषों को आगे, स्त्रियों को पिछाड़ी में बिठाते हैं। यहाँ भी तुम बच्चों को मेहनत करनी है। विश्व का राज्य पाना कोई मासी का घर नहीं है।
अभी तुम बच्चे हो संगमयुग पर। बाबा कहते हैं संगम के साथ-साथ पुरूषोत्तम अक्षर जरूर लिखो, जो किसको भी समझाने में सहज हो। पुरुषोत्तम संगमयुग, जबकि तुम मनुष्य से देवता बनते हो। गायन है ना - मनुष्य से देवता किये... कौन से मनुष्य? कलियुगी। देवतायें तो रहते हैं सतयुग में। तो कलियुगी मनुष्यों को देवता, नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने के लिए ही बाप आते हैं। यह भी अभी तुम जानते हो। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में पड़े हैं। बहुत हैं जो कभी स्वर्ग को देख भी नहीं सकेंगे। बाप कहते हैं तुम्हारा यह धर्म सुख देने वाला है। भल गाते भी हैं हेविनली गॉड फादर परन्तु उसने हेविन की स्थापना किया, यह नहीं जानते। और धर्म वाले भी कहते हैं हेविनली गॉड फादर। परन्तु उन्हों को यह मालूम नहीं है कि हेविन में हमारा पार्ट नहीं है। क्रिश्चियन लोग खुद कहते हैं पैराडाइज था। इन देवी देवताओं को गॉड गॉडेज भी कहते हैं। परन्तु यह नहीं समझते तो जरूर गॉड ने उन्हों को गॉड गॉडेज बनाया होगा। तुमको बाप अब ऐसा बना रहे हैं। तो तुमको मेहनत भी करनी चाहिए। अपने से रोज़ पूछो मुझे कौन सी कर्मेन्द्रिय धोखा देती है? जबान भी कम नहीं है। अच्छी चीज़ देखेंगे तो दिल होगी यह खाऊं ... आगे तुम बच्चों की कचहरी होती थी। भूल बताते थे। शिवबाबा के यज्ञ से कोई चीज़ चोरी करना बड़ा खराब है। परन्तु माया नाक से बहुतों को पकड़ती है। तो बाप कहते हैं बच्चे बुरी आदतें जो हैं वह निकालनी चाहिए। नहीं तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। भल स्वर्ग में जायेंगे - परन्तु कहाँ राजा, कहाँ प्रजा... प्रजा में भी गरीब साहूकार होते हैं। तो कर्मेन्द्रियों की बहुत सम्भाल रखनी चाहिए। पोतामेल रखना चाहिए - यह भी व्यापार है ना। कोई बिरला ही यह व्यापार करे।
बाप समझाते हैं बच्चे अगर मेरे से व्यापार करना है, ऊंच पद पाना है तो डायरेक्शन पर चलो। माया तुमको भुलायेगी जरूर, अगर बाप की मत पर नहीं चलेंगे तो पिछाड़ी में सब साक्षात्कार होंगे। फिर तुम बहुत पछतायेंगे। अभी तो सब कहते हैं हम नर से नारायण बनेंगे। परन्तु अपने आपसे पूछते रहो, बाबा के डायरेक्शन को अमल में लाओ तो बहुत उन्नति होगी। सारे दिन का पोतामेल निकालो। आंखों ने कहाँ धोखा तो नहीं दिया! मंजिल बहुत ऊंची है इसलिए 8 रत्न ही पास विद् ऑनर निकलते हैं। भल 9 रत्न भी होते हैं, उसमें नम्बरवन तो है बाबा। बाकी 8 रत्न, जब कोई ग्रहचारी बैठती है तो 8 रत्न की अंगूठी पहनते हैं। तो पास विथ ऑनर 8 ही निकलते हैं। बाकी को कुछ न कुछ दाग लगते हैं, इसमें बड़ी मेहनत है। रावणराज्य है ना। सतयुग में यह बातें ही नहीं होती क्योंकि रावणराज्य है नहीं। ऊंच पद देने लिए भगवान तुमको पढ़ाते हैं। विचार करो। गुरू भी करते हैं ना। यह तो सतगुरू है। उन्होंने तो सर्वव्यापी कह बाप से बेमुख कर दिया है। तुम समझा सकते हो - बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं पतित-पावन हूँ। फिर तुम कहते हो "िक्कर भित्तर में है। अब बाप कहते हैं तुम सब आसुरी मत पर मेरी ग्लानी, अपकार करते आये हो। अब हमको सब पर उपकार करना है। तुम बच्चों में कुदृष्टि, क्रोध आदि कुछ नहीं होना चाहिए। अपना ही नुकसान करते हैं। कुदृष्टि होती है तो उनका भी वायब्रेशन आता है। दूसरे को भी कशिश होती है। बाबा घड़ी-घड़ी बच्चों को ध्यान खिचवाते हैं। बच्चे अपने को देखो कि कोई भी कर्मेन्द्रिय के वश हो विकर्म तो नहीं बनाया! यह है पाम संवत, पहले था विकर्माजीत संवत। फिर जब विकर्म करना शुरू करते हैं तो पाम संवत होता है। अब बाप बच्चों को कर्म-अकर्म-विकर्म की गति भी समझाते हैं। कर्म तो करना ही होता है। सतयुग में तुम्हारा कर्म अकर्म बनता है। यह सब बातें तुम अभी जानते हो। दूसरे तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। तुमको अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है। त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बनाने वाला एक ही बाप है। इस ड्रामा के राज़ को कोई बिल्कुल ही नहीं जानते। तुम मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन सबको जानते हो। आधा समय के बाद फिर दूसरे धर्म आते हैं, जो वृद्धि को पाते हैं। उनको गुरू नहीं कहेंगे। गुरू तो एक के सिवाए कोई है नहीं अर्थात् सद्गति करने वाला एक ही है। अब सबकी सद्गति होनी है। उनको धर्म स्थापक कहा जाता है, न कि गुरू। तो उनको याद करने से कोई सद्गति नहीं होगी। विकर्म विनाश नहीं होंगे, उसको भी भक्ति कहा जाता है। ज्ञान की लाइन में सिर्फ तुम ही हो। यह है पाण्डव सेना। तुम सब पण्डे हो, शान्तिधाम और सुखधाम में ले जाने वाले। तुम्हारी बुद्धि में है हम गाइड्स हैं। बाबा भी लिबरेटर और गाइड है। हर एक को लिबरेट करते हैं। बाबा कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। फिर अगर कोई विकर्म किया तो सौ गुणा दण्ड हो जाता है इसलिए जहाँ तक हो सके विकर्म नहीं करो, जो नाम बदनाम हो। विकर्म करने से फिर वृद्धि हो जायेगी इसलिए अब बहुत खबरदारी रखना। भाई-बहन की दृष्टि बहुत पक्की चाहिए। हम ब्रह्मा के बच्चे शिव के पोत्रे हैं। शिवबाबा से हमने प्रतिज्ञा की है फिर भी माया बहुत धोखा देती है। कहना बड़ा सहज है हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। परन्तु डायरेक्शन पर भी अमल करना पड़े। स्त्री पुरुष सारा दिन यह ज्ञान की बातें आपस में करते रहें। दोनों कहते हैं हम बाबा से पूरा वर्सा लेंगे। टीचर से पूरा पढ़ेंगे। अरे ऐसा टीचर फिर कब मिलेगा क्या? यह बस तुम ही जानते हो, देवतायें भी बाप को नहीं जानते तो और धर्म वाले कैसे जानेंगे। अब तुमको बाबा सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुना रहे हैं। यह ज्ञान फिर प्राय:लोप हो जायेगा। मैं ही प्राय:लोप हो जाता हूँ तो फिर यह ज्ञान कहाँ से मिलेगा। बाबा बच्चों को युक्ति बताते हैं तो हमेशा याद रखो कि हमको शिवबाबा सुनाते हैं। यह जानते हैं मैं भी शिवबाबा से वर्सा ले रहा हूँ। यह भी स्टूडेन्ट लाइफ में हैं। तुम भी मनुष्य से देवता बनने के लिए पढ़ रहे हो। देवतायें होते हैं - सतयुग में। कलियुग में मनुष्य हैं। उसमें भी अनेक धर्म हैं। यह बहुत समझने की बातें हैं। यहाँ आते तो बहुत हैं फिर भी तकदीर में नहीं है तो कहते हमको संशय आता है, शिवबाबा इसमें कैसे आकर पढ़ाते हैं। मैं नही जानता हूँ। अरे शिवबाबा अगर न आये तो भला शिवबाबा को याद कैसे करेंगे, जो तुम्हारे विकर्म विनाश हों। उनकी याद के बिना तो विकर्म विनाश हो न सकें। सजायें बहुत खानी पड़ेंगी। बाकी पाई पैसे का पद मिलेगा। यह राजधानी बन रही है। राजाओं के आगे दास दासियां भी होते हैं ना। बाबा से पूछो कि हमारा शरीर अब छूट जाए तो हम क्या जाकर बनेंगे? तो बाबा सब कुछ सुना देंगे। नम्बरवार तो हैं ना। यह पढ़ाई बड़ी जबरदस्त है, इसमें कमाई बहुत है। मनुष्य कमाई के लिए कितने हैरान रहते हैं। रात दिन बुद्धि उसमें लगी रहती है। सट्टा लगाते रहते हैं। तुम्हारे पास भी बड़े व्यापारी लोग आते हैं। कहते हैं क्या करें फुर्सत नहीं है। अरे विश्व की बादशाही मिलती है - सिर्फ शिवबाबा को याद करना है। अपने ईष्ट देव को भी याद तो करते हो ना। कोई देवता को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे इसलिए बाबा बार-बार समझाते रहते हैं ताकि कोई ऐसे न कहे कि हमको कोई ने समझाया नहीं। तुम बच्चों को हर एक को पैगाम देना है। एरोप्लेन से पर्चा गिराना भी बहुत अच्छा है। कोई ऐसा न रह जाये जो कहे कि हमको मालूम ही नहीं पड़ा कि बाबा आया है इसलिए यह सब करना पड़ता है।
ब्रह्मा है - शिव का पहला बच्चा। प्रजापिता ब्रह्मा वह भी बाप ठहरा ना। ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। बाबा कहते हैं मैं इन द्वारा आदि सनातन धर्म की स्थापना कर रहा हूँ। होवनहार विनाश के बाद विश्व में सुख, शान्ति, पवित्रता होगी। कल्प-कल्प ऐसे स्वर्ग की स्थापना होती है। सदैव बाबा, बाबा कहते रहो। बाबा कहने से ही आंखों से प्रेम के ऑसू आ जायें। बाबा आपसे कब मिलेंगे! परन्तु जो सम्मुख बैठे हैं वह मानते नहीं और नहीं देखने वाले तड़फते हैं। वन्डर है। लिखते हैं बन्धन से छुड़ाओ। कोई-कोई तो बाबा के बनकर फिर माया के बन जाते हैं। फिर पिछाड़ी में याद आयेगा। मरने समय सबको कहते हैं - राम-राम कहो फिर अन्त में कशिश होगी। समझेंगे बाबा की याद से हम विकर्म तो विनाश करें। बाबा कहते हैं मीठे-मीठे बच्चे अपना कल्याण करो। बाप की श्रीमत पर चलो। सबको सन्देश देते रहो। एरोप्लेन से कोई-कोई को पर्चा मिला तो वह जग गये (हिस्ट्री सुनाना)। सारे विश्व में खास भारत में सुख-शान्ति तो स्थापन होनी ही है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) भाई बहन वा भाई-भाई की दृष्टि पक्की करनी है, बहुत खबरदार रहना है। ऐसा कोई कर्म न हो जो बाप का नाम बदनाम हो।
2) बाप में कभी भी संशय नहीं लाना है। प्रेम से बाप को याद करना है। रात दिन पढ़ाई पर ध्यान देकर कमाई जमा करनी है।
वरदान:- संगमयुग की हर घड़ी को उत्सव के रूप में मनाने वाले सदा उमंग-उत्साह सम्पन्न भव
कोई भी उत्सव, उमंग उत्साह के लिए मनाते हैं। आप ब्राह्मण बच्चों की जीवन ही उत्साह भरी जीवन है। जैसे इस शरीर में श्वांस है तो जीवन है ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही उमंग-उत्साह है इसलिए संगमयुग की हर घड़ी उत्सव है। लेकिन श्वांस की गति सदा एकरस, नार्मल होनी चाहिए। अगर श्वांस की गति बहुत तेज हो जाए या स्लो हो जाए तो यथार्थ जीवन नहीं कही जायेगी। तो चेक करो कि ब्राह्मण जीवन के उमंग-उत्साह की गति नार्मल अर्थात् एकरस है!
स्लोगन:-सर्व शक्तियों के खजाने से सम्पन्न रहना - यही ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता है।
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