19-02-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’ अव्यक्त बापदादा“ रिवाइज:12-03-82 मधुबन
चैतन्य पुष्पों में रंग, रूप, खुशबू का आधार
आज बागवान बाप अपने चैतन्य बगीचे में वैरायटी प्रकार के फूलों को देख रहे हैं। ऐसा रूहानी बगीचा बापदादा को भी कल्प में एक बार मिलता है। ऐसा रूहानी बगीचा, रूहानी खुशबूदार फूलों की रौनक और किसी भी समय मिल नहीं सकती। चाहे कितना भी नामीग्रामी बगीचा हो लेकिन इस बगीचे के आगे वो बगीचे क्या अनुभव होंगे! यह हीरे तुल्य वो कौड़ी तुल्य। ऐसे चैतन्य ईश्वरीय बगीचे का रूहानी पुष्प हूँ - ऐसा नशा रहता है? जैसे बापदादा हरेक फूल के रंग, रूप और खुशबू तीनों को देखते हैं ऐसे अपने रंग, रूप और खुशबू को जानते हो?
रंग का आधार है - ज्ञान की सबजेक्ट। जितना-जितना ज्ञान स्वरूप होंगे उतना रंग आकर्षण करने वाला होगा। जैसे स्थूल फूलों के रंग देखते हो, भिन्न-भिन्न रंग देखते हुए कोई-कोई रंग विशेष दूर से ही आकर्षित करता है। देखते ही मुख से यह महिमा ज़रूर निकलेगी कि कितना सुन्दर फूल है! और सदा दिल होगी कि देखते रहें। ऐसे ही ज्ञान के रंग में रंगे हुए फूल कितने सुन्दर लगेंगे। ऐसे ही रूप और खुशबू का आधार है - याद और दिव्य गुण मूर्त। सिर्फ रंग हो और रूप न हो तो भी आकर्षण नहीं होगी। और रंग रूप हो लेकिन खुशबू न हो तो भी आकर्षित नहीं करेंगे। कहा जाता है यह नकली है, यह असली है। सिर्फ रंग रूप वाले पुष्प डैकोरेशन के लिए ज्यादा काम आते हैं लेकिन खुशबूदार पुष्प मानव अपने समीप रखेंगे। खुशबूदार पुष्प सदा ही स्वत: ही सेवा का स्वरूप है। तो अपने से पूछो कि मैं कौन-सा पुष्प हूँ? कहाँ भी हैं लेकिन स्वत: सेवा होती रहती है अर्थात् रूहानी वायुमण्डल बनाने के निमित्त बने हुए हैं! नजदीक आने से अर्थात् सम्पर्क में आने से खुशबू पहुंचती है वा दूर से ही खुशबू फैलाते हैं। अगर सिर्फ ज्ञान सुन लिया, योग लगाने के अभ्यासी बन गये लेकिन ज्ञान स्वरूप वा योगी जीवन वाले वा प्रैक्टिकल दिव्यगुण मूर्त न बने तो सिर्फ डैकोरेशन अर्थात् प्रजा बन जायेंगे। राजा की प्रजा डैकोरेशन ही है। तो अल्लाह के बगीचे के पुष्प तो बन गये लेकिन कौन से? यही अपनी चेकिंग करनी है। बगीचा एक है, बागवान भी एक है लेकिन फूलों में वैरायटी है। डबल विदेशी अपने को क्या समझते हैं? राज्य अधिकारी हो वा राज्य करने वालों को देखने वाले? आज बापदादा बगीचे में मिलने के लिए आये हैं। सभी के मन में रूहरिहान करने का संकल्प रहता है। तो आज रूह-रूहान करने के लिए आये हैं। विशेष दो ग्रुप हैं ना।
बापदादा को तो सभी देश-विदेश दोनों तरफ के बच्चे अति प्रिय हैं। कर्नाटक वाले और डबल विदेशी भी सदा खुशी में झूलते रहते हैं। मधुबन में आते सभी मायाजीत बनने के अनुभवी बन गये हो वा मधुबन में भी माया आती है? मधबुन में आते ही हो मायाजीत स्थिति की अनुभूति करने के लिए। तो यहाँ माया का वार नहीं लेकिन माया हार खाके जायेगी क्योंकि मधुबन में विशेष अपनी कमाई जमा करने के लिए आते हो। डबल विदेशियों को तो डबल लाक लगा देना चाहिए।
मधुबन में आकर विशेष अपने में कौन-सी विशेषतायें धारण की? (बाबा विदेशियों से तथा कर्नाटक वालों से प्रश्न पूछ रहे थे) जैसे सहजयोगी बनने की विशेषता देखी वैसे और क्या देखा? लव भी मिला, पीस भी मिली, लाइट भी मिली। सब कुछ मिला ना! जितनी स्व को प्राप्ति होगी तो प्राप्ति वाला सेवा के सिवाए रह नहीं सकता इसलिए प्राप्ति स्वरूप सो सेवा स्वरूप स्वत: ही हो।
कर्नाटक वालों ने भी वृद्धि अच्छी की है और विदेश में भी अच्छी वृद्धि हुई है। विदेश ने सेवाकेन्द्र और सेवाधारी भी अच्छे निकाले हैं। बापदादा भी बच्चों की हिम्मत, उमंग, उत्साह देख हर्षित होते हैं। चाहे देश में, चाहे विदेश में सेवा का उमंग-उत्साह बच्चों में देख बाप खुश होते हैं। अच्छा जो सेवाकेन्द्र में रहते हैं वा सेवा में उपस्थित हैं - देश चाहे विदेश में, सब अमृतवेला शक्तिशाली रखते हो? यह ग्रुप बहुत अच्छा है लेकिन अच्छे-अच्छे बच्चों को माया भी अच्छी तरह से देखती है। माया को भी वे अच्छे लगते हैं इसलिए मायाजीत बनना है क्योंकि निमित्त आत्मायें हो ना इसलिए विशेष अटेन्शन। निमित्त बनी हुई आत्मायें जितनी शक्तिशाली होंगी उतना वायुमण्डल को शक्तिशाली बना सकेंगी। नहीं तो वायुमण्डल कमजोर हो जायेगा। प्राब्लम्स बहुत आयेंगी। शक्तिशाली वायुमण्डल होने कारण स्वयं भी विघ्न-विनाशक होंगे और औरों के भी विघ्न-विनाशक अर्थ निमित्त बनेंगे। जैसे सूर्य खुद प्रकाशमय है तो अंधकार को मिटाकर औरों को रोशनी देता और किचड़ा भस्म करता है। तो जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं वे शक्ति स्वरूप विघ्न-विनाशक स्थिति में स्थित रहने का अटेन्शन रखो। सिर्फ स्वयं प्रति नहीं। स्टॉक भी जमा हो जो औरों को भी विघ्न-विनाशक बना सको। तो यह मैजारिटी ग्रुप मास्टर ज्ञान सूर्य है! अभी सदा यही स्मृति स्वरूप बनकर रहना है कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ। स्वयं भी प्रकाश स्वरूप और औरों का भी अंधकार मिटाना है। अच्छा।
मधुबन वाले भी बापदादा को याद हैं। मधुबन निवासी भी ब्राह्मण परिवार की नज़रों में हैं। जब मधुबन की महिमा करते तो सामने मधुबन निवासी आते हैं। मधुबन की महिमा का तो पूरा भाषण बना हुआ है। जो मधुबन की महिमा है वह मधुबन निवासी हरेक अनुभव करते हो ना कि हमारी महिमा है। अच्छा।
सदा सर्व विशेषता सम्पन्न विशेष आत्माओं को, सदा स्वयं के स्वरूप द्वारा सेवा के निमित्त बने हुए सेवाधारी आत्माओं को, सदा रंग रूप और खुशबूदार फूलों को बागवान बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
डबल विदेशी बच्चों का एक प्रश्न रहता है कि हमें डबल सर्विस (ईश्वरीय सेवा के साथ नौकरी) के लिए क्यों कहा जाता है, इस प्रश्न का उत्तर देते हुए बापदादा बोले:-
समय कम है और प्राप्ति करने चाहते हो सबसे ज्यादा। इसके कारण तन भी लगे, मन भी लगे और धन भी लगे इसलिए तीनों प्रकार की सर्विस करनी पड़े। थोड़े समय में आपका तीनों प्रकार का लाभ जमा होता है क्योंकि धन की भी मार्क्स हैं। वह मार्क्स जमा होने कारण नम्बर आगे ले लेते हो। तो आप लोगों के फायदे के लिए कहा जाता है कि अपना धन लगाना तो धन की सबजेक्ट में भी एक का पद्म मिलता है। सब तरफ से अगर एक ही समय में लाभ हो सकता है तो क्यों न करो। बाकी जब निमित्त बनी हुई आत्मायें देखेंगी कि समय ही नहीं है, इसे फुर्सत ही नहीं है, अपने खाने का भी समय नहीं मिलता, यह इतना बिजी हो गये हैं तो आटोमेटिकली उससे फ्री कर देंगी। लेकिन जब तक इतने बिजी हो जाओ तब तक यह जरूरी है। यह व्यर्थ नहीं जाता है, इसकी भी मार्क्स जमा हो रही हैं। बिजी हो जायेंगे तो ड्रामा ही आपको वह नौकरी करने नहीं देगा। कोई न कोई कारण ऐसा बनेगा जो चाहो भी लेकिन कर नहीं सकेंगे। इसीलिए जैसे अभी चल रहे हो उसमें ही कल्याण है। ऐसे नहीं समझो हम सरेन्डर नहीं हैं। सरेन्डर हो, डायरेक्शन प्रमाण कर रहे हो। अपने मन से करते हो तो सरेन्डर नहीं हो! इसमें अगर अपनी मत चलाते हो कि नहीं मैं तो नहीं करूंगी, यह और ही मनमत है इसलिए स्वयं को सदा हल्का रखो। जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं वह अगर कहती हैं तो समझो इसमें हमारा कल्याण है। इसमें आप निश्चिन्त रहो। इसमें जो ज्यादा सोचेंगे - मेरा शायद पार्ट नहीं है, मेरे को क्यों नहीं कहा जाता है, यह फिर व्यर्थ है। समझा।
टीचर्स के प्रति:-
टीचर्स के लिए सेवास्थान कौन-सा है? टीचर्स सदा विश्व की स्टेज पर हैं। आपका सेवास्थान है विश्व की स्टेज। तो स्टेज पर समझने से हर कर्म अटेन्शन से करेंगे। जब कोई प्रोग्राम करते हो तो स्टेज पर बैठते समय कितना अटेन्शन रहता है। अलबेला नहीं होते। तो टीचर्स बनना अर्थात् विश्व की स्टेज पर रहना। सेन्टर पर दो बहनें रहती हो, लेकिन दो नहीं विश्व के आगे हो।
अव्यक्त मुरली से प्रश्न-उत्तर
प्रश्न:- भविष्य 21जन्मों के लिए राज्यपद वा दातापन के संस्कार कब भर सकेंगे?
उत्तर:- जब अभी से सर्व-आत्माओं को बाप का खज़ाना देने वाले दाता बनेंगे, अपनी शक्तियों द्वारा प्यासी व तड़पती हुई आत्माओं को जी-दान देंगे, वरदाता बन प्राप्त हुए वरदानों द्वारा उन्हें भी बाप के समीप सम्बन्ध में लायेंगे, तब यहाँ के दातापन के संस्कार भविष्य में 21 जन्मों के लिए राज्यपद अर्थात् दातापन के संस्कार भर सकेंगे।
प्रश्न:- इस संगमयुग को पुरूषोत्तम संगमयुग व सर्वश्रेष्ठ युग क्यों कहते हो?
उत्तर:- क्योंकि इसी समय आत्मा में हर प्रकार के धर्म की, राज्य की, श्रेष्ठ संस्कारों की, श्रेष्ठ सम्बन्धों की और श्रेष्ठ गुणों की सर्व श्रेष्ठता अभी रिकार्ड के समान भरती जाती है। चौरासी जन्मों की चढ़ती कला और उतरती कला उन दोनों के संस्कार इस समय आत्मा में भरते हैं। रिकार्ड भरने का समय अभी चल रहा है, इसलिए यही सर्वश्रेष्ठ पुरूषोत्तम युग है।
प्रश्न:- हद का रिकार्ड भरने वाले किन तीन बातों का ध्यान रखते हैं? जो आप बेहद का रिकार्ड भरने वालों को भी जरूर रहना चाहिए?
उत्तर:- वे लोग वायुमण्डल, अपनी वृत्ति और वाणी इन तीनों के ऊपर अटेन्शन देते हैं। अगर वृत्ति चंचल होती है, एकाग्र नहीं होती है तो भी वाणी में आकर्षण करने का रस नहीं रहता। जिस प्रकार का गीत गाते हैं, उसी रूप में स्थित होकर गाते हैं। तो जब हद का गीत गाने वाले व रिकार्ड भरने वाले भी इन सभी बातों का ध्यान रखते हैं तो आप बेहद का रिकार्ड भरने वाले, सारे कल्प का रिकार्ड भरने वालों को भी इन सभी बातों के ऊपर अटेन्शन देना चाहिए। अगर रिकार्ड भरते-भरते उल्लास के बजाय आलस्य आ जाय तो रिकार्ड कैसा भरेगा! तो कभी अपने भरे हुए सारे दिन के रिकार्ड को साक्षी होकर देखो कि ठीक भर रहा है!
प्रश्न:- आत्मा की निर्बलता किस एक बात से सिद्ध होती है?
उत्तर:- अगर स्वयं को चेक करने का कामन नियम भी अभी तक विस्मृत हो जाता है, अमृतवेले अपनी दिनचर्या फिक्स नहीं करते, अपने आपको ईश्वरीय नियम और मर्यादापूर्वक चला नहीं सकते तो इससे सिद्ध है कि आत्मा अभी तक निर्बल है, वे विश्व का मर्यादापूर्वक राज्य कैसे चला सकेंगे।
प्रश्न:- अभी कौन सा समय चल रहा है? फिर कौन सा समय आयेगा?
उत्तर:- अभी प्राप्ति का समय चल रहा है, थोड़े समय के बाद पश्चाताप का समय आयेगा। अभी बाप का स्नेही स्वरूप है फिर सुप्रीम जस्टिस का रूप हो जायेगा। जस्टिस के आगे चाहे कितना भी स्नेही सम्बन्धी हो लेकिन लॉ इज़ लॉ, अभी लव का समय है फिर लॉ का समय होगा। फिर उस समय लिफ्ट नहीं मिल सकेगी इसलिए बाप-दादा फिर भी सभी बच्चों को कहेंगे कि थोड़े समय में बहुत समय की प्रालब्ध बना लो। समय के इन्तज़ार में अलबेले न बनो।
प्रश्न:- सद्गति को प्राप्त करने के लिए किस तीव्रगति को अपनाना जरूरी है?
उत्तर:- जो भी कार्य करो वे सभी कार्य सेकेण्ड में हों, करेंगे..प्लैन बनायेंगे.... इसे तीव्रगति नहीं कहा जाता। तीव्र पुरूषार्थी वह है जो दृढ़ संकल्प ले कि करना ही है, बनना ही है। ऐसी तीव्रगति वाले ही सद्गति को प्राप्त कर सकेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
वरदान:- ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाले मायाजीत, क्रोधमुक्त भव
ब्राह्मण जीवन में यदि सुख का अनुभव करना है तो क्रोधजीत बनना अति आवश्यक है। भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट करे लेकिन आपको क्रोध न आये। रोब दिखाना भी क्रोध का ही अंश है। ऐसे नहीं क्रोध तो करना ही पड़ता है, नहीं तो काम ही नहीं चलेगा। आजकल के समय प्रमाण क्रोध से काम बिगड़ता है और आत्मिक प्यार से, शान्ति से बिगड़ा हुआ कार्य भी ठीक हो जाता है इसलिए इस क्रोध को बहुत बड़ा विकार समझकर मायाजीत, क्रोध मुक्त बनो।
स्लोगन:-अपनी वृत्ति को ऐसा पावरफुल बनाओ जो अनेक आत्मायें आपकी वृत्ति से योग्य और योगी बन जायें।
चैतन्य पुष्पों में रंग, रूप, खुशबू का आधार
आज बागवान बाप अपने चैतन्य बगीचे में वैरायटी प्रकार के फूलों को देख रहे हैं। ऐसा रूहानी बगीचा बापदादा को भी कल्प में एक बार मिलता है। ऐसा रूहानी बगीचा, रूहानी खुशबूदार फूलों की रौनक और किसी भी समय मिल नहीं सकती। चाहे कितना भी नामीग्रामी बगीचा हो लेकिन इस बगीचे के आगे वो बगीचे क्या अनुभव होंगे! यह हीरे तुल्य वो कौड़ी तुल्य। ऐसे चैतन्य ईश्वरीय बगीचे का रूहानी पुष्प हूँ - ऐसा नशा रहता है? जैसे बापदादा हरेक फूल के रंग, रूप और खुशबू तीनों को देखते हैं ऐसे अपने रंग, रूप और खुशबू को जानते हो?
रंग का आधार है - ज्ञान की सबजेक्ट। जितना-जितना ज्ञान स्वरूप होंगे उतना रंग आकर्षण करने वाला होगा। जैसे स्थूल फूलों के रंग देखते हो, भिन्न-भिन्न रंग देखते हुए कोई-कोई रंग विशेष दूर से ही आकर्षित करता है। देखते ही मुख से यह महिमा ज़रूर निकलेगी कि कितना सुन्दर फूल है! और सदा दिल होगी कि देखते रहें। ऐसे ही ज्ञान के रंग में रंगे हुए फूल कितने सुन्दर लगेंगे। ऐसे ही रूप और खुशबू का आधार है - याद और दिव्य गुण मूर्त। सिर्फ रंग हो और रूप न हो तो भी आकर्षण नहीं होगी। और रंग रूप हो लेकिन खुशबू न हो तो भी आकर्षित नहीं करेंगे। कहा जाता है यह नकली है, यह असली है। सिर्फ रंग रूप वाले पुष्प डैकोरेशन के लिए ज्यादा काम आते हैं लेकिन खुशबूदार पुष्प मानव अपने समीप रखेंगे। खुशबूदार पुष्प सदा ही स्वत: ही सेवा का स्वरूप है। तो अपने से पूछो कि मैं कौन-सा पुष्प हूँ? कहाँ भी हैं लेकिन स्वत: सेवा होती रहती है अर्थात् रूहानी वायुमण्डल बनाने के निमित्त बने हुए हैं! नजदीक आने से अर्थात् सम्पर्क में आने से खुशबू पहुंचती है वा दूर से ही खुशबू फैलाते हैं। अगर सिर्फ ज्ञान सुन लिया, योग लगाने के अभ्यासी बन गये लेकिन ज्ञान स्वरूप वा योगी जीवन वाले वा प्रैक्टिकल दिव्यगुण मूर्त न बने तो सिर्फ डैकोरेशन अर्थात् प्रजा बन जायेंगे। राजा की प्रजा डैकोरेशन ही है। तो अल्लाह के बगीचे के पुष्प तो बन गये लेकिन कौन से? यही अपनी चेकिंग करनी है। बगीचा एक है, बागवान भी एक है लेकिन फूलों में वैरायटी है। डबल विदेशी अपने को क्या समझते हैं? राज्य अधिकारी हो वा राज्य करने वालों को देखने वाले? आज बापदादा बगीचे में मिलने के लिए आये हैं। सभी के मन में रूहरिहान करने का संकल्प रहता है। तो आज रूह-रूहान करने के लिए आये हैं। विशेष दो ग्रुप हैं ना।
बापदादा को तो सभी देश-विदेश दोनों तरफ के बच्चे अति प्रिय हैं। कर्नाटक वाले और डबल विदेशी भी सदा खुशी में झूलते रहते हैं। मधुबन में आते सभी मायाजीत बनने के अनुभवी बन गये हो वा मधुबन में भी माया आती है? मधबुन में आते ही हो मायाजीत स्थिति की अनुभूति करने के लिए। तो यहाँ माया का वार नहीं लेकिन माया हार खाके जायेगी क्योंकि मधुबन में विशेष अपनी कमाई जमा करने के लिए आते हो। डबल विदेशियों को तो डबल लाक लगा देना चाहिए।
मधुबन में आकर विशेष अपने में कौन-सी विशेषतायें धारण की? (बाबा विदेशियों से तथा कर्नाटक वालों से प्रश्न पूछ रहे थे) जैसे सहजयोगी बनने की विशेषता देखी वैसे और क्या देखा? लव भी मिला, पीस भी मिली, लाइट भी मिली। सब कुछ मिला ना! जितनी स्व को प्राप्ति होगी तो प्राप्ति वाला सेवा के सिवाए रह नहीं सकता इसलिए प्राप्ति स्वरूप सो सेवा स्वरूप स्वत: ही हो।
कर्नाटक वालों ने भी वृद्धि अच्छी की है और विदेश में भी अच्छी वृद्धि हुई है। विदेश ने सेवाकेन्द्र और सेवाधारी भी अच्छे निकाले हैं। बापदादा भी बच्चों की हिम्मत, उमंग, उत्साह देख हर्षित होते हैं। चाहे देश में, चाहे विदेश में सेवा का उमंग-उत्साह बच्चों में देख बाप खुश होते हैं। अच्छा जो सेवाकेन्द्र में रहते हैं वा सेवा में उपस्थित हैं - देश चाहे विदेश में, सब अमृतवेला शक्तिशाली रखते हो? यह ग्रुप बहुत अच्छा है लेकिन अच्छे-अच्छे बच्चों को माया भी अच्छी तरह से देखती है। माया को भी वे अच्छे लगते हैं इसलिए मायाजीत बनना है क्योंकि निमित्त आत्मायें हो ना इसलिए विशेष अटेन्शन। निमित्त बनी हुई आत्मायें जितनी शक्तिशाली होंगी उतना वायुमण्डल को शक्तिशाली बना सकेंगी। नहीं तो वायुमण्डल कमजोर हो जायेगा। प्राब्लम्स बहुत आयेंगी। शक्तिशाली वायुमण्डल होने कारण स्वयं भी विघ्न-विनाशक होंगे और औरों के भी विघ्न-विनाशक अर्थ निमित्त बनेंगे। जैसे सूर्य खुद प्रकाशमय है तो अंधकार को मिटाकर औरों को रोशनी देता और किचड़ा भस्म करता है। तो जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं वे शक्ति स्वरूप विघ्न-विनाशक स्थिति में स्थित रहने का अटेन्शन रखो। सिर्फ स्वयं प्रति नहीं। स्टॉक भी जमा हो जो औरों को भी विघ्न-विनाशक बना सको। तो यह मैजारिटी ग्रुप मास्टर ज्ञान सूर्य है! अभी सदा यही स्मृति स्वरूप बनकर रहना है कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ। स्वयं भी प्रकाश स्वरूप और औरों का भी अंधकार मिटाना है। अच्छा।
मधुबन वाले भी बापदादा को याद हैं। मधुबन निवासी भी ब्राह्मण परिवार की नज़रों में हैं। जब मधुबन की महिमा करते तो सामने मधुबन निवासी आते हैं। मधुबन की महिमा का तो पूरा भाषण बना हुआ है। जो मधुबन की महिमा है वह मधुबन निवासी हरेक अनुभव करते हो ना कि हमारी महिमा है। अच्छा।
सदा सर्व विशेषता सम्पन्न विशेष आत्माओं को, सदा स्वयं के स्वरूप द्वारा सेवा के निमित्त बने हुए सेवाधारी आत्माओं को, सदा रंग रूप और खुशबूदार फूलों को बागवान बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
डबल विदेशी बच्चों का एक प्रश्न रहता है कि हमें डबल सर्विस (ईश्वरीय सेवा के साथ नौकरी) के लिए क्यों कहा जाता है, इस प्रश्न का उत्तर देते हुए बापदादा बोले:-
समय कम है और प्राप्ति करने चाहते हो सबसे ज्यादा। इसके कारण तन भी लगे, मन भी लगे और धन भी लगे इसलिए तीनों प्रकार की सर्विस करनी पड़े। थोड़े समय में आपका तीनों प्रकार का लाभ जमा होता है क्योंकि धन की भी मार्क्स हैं। वह मार्क्स जमा होने कारण नम्बर आगे ले लेते हो। तो आप लोगों के फायदे के लिए कहा जाता है कि अपना धन लगाना तो धन की सबजेक्ट में भी एक का पद्म मिलता है। सब तरफ से अगर एक ही समय में लाभ हो सकता है तो क्यों न करो। बाकी जब निमित्त बनी हुई आत्मायें देखेंगी कि समय ही नहीं है, इसे फुर्सत ही नहीं है, अपने खाने का भी समय नहीं मिलता, यह इतना बिजी हो गये हैं तो आटोमेटिकली उससे फ्री कर देंगी। लेकिन जब तक इतने बिजी हो जाओ तब तक यह जरूरी है। यह व्यर्थ नहीं जाता है, इसकी भी मार्क्स जमा हो रही हैं। बिजी हो जायेंगे तो ड्रामा ही आपको वह नौकरी करने नहीं देगा। कोई न कोई कारण ऐसा बनेगा जो चाहो भी लेकिन कर नहीं सकेंगे। इसीलिए जैसे अभी चल रहे हो उसमें ही कल्याण है। ऐसे नहीं समझो हम सरेन्डर नहीं हैं। सरेन्डर हो, डायरेक्शन प्रमाण कर रहे हो। अपने मन से करते हो तो सरेन्डर नहीं हो! इसमें अगर अपनी मत चलाते हो कि नहीं मैं तो नहीं करूंगी, यह और ही मनमत है इसलिए स्वयं को सदा हल्का रखो। जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं वह अगर कहती हैं तो समझो इसमें हमारा कल्याण है। इसमें आप निश्चिन्त रहो। इसमें जो ज्यादा सोचेंगे - मेरा शायद पार्ट नहीं है, मेरे को क्यों नहीं कहा जाता है, यह फिर व्यर्थ है। समझा।
टीचर्स के प्रति:-
टीचर्स के लिए सेवास्थान कौन-सा है? टीचर्स सदा विश्व की स्टेज पर हैं। आपका सेवास्थान है विश्व की स्टेज। तो स्टेज पर समझने से हर कर्म अटेन्शन से करेंगे। जब कोई प्रोग्राम करते हो तो स्टेज पर बैठते समय कितना अटेन्शन रहता है। अलबेला नहीं होते। तो टीचर्स बनना अर्थात् विश्व की स्टेज पर रहना। सेन्टर पर दो बहनें रहती हो, लेकिन दो नहीं विश्व के आगे हो।
अव्यक्त मुरली से प्रश्न-उत्तर
प्रश्न:- भविष्य 21जन्मों के लिए राज्यपद वा दातापन के संस्कार कब भर सकेंगे?
उत्तर:- जब अभी से सर्व-आत्माओं को बाप का खज़ाना देने वाले दाता बनेंगे, अपनी शक्तियों द्वारा प्यासी व तड़पती हुई आत्माओं को जी-दान देंगे, वरदाता बन प्राप्त हुए वरदानों द्वारा उन्हें भी बाप के समीप सम्बन्ध में लायेंगे, तब यहाँ के दातापन के संस्कार भविष्य में 21 जन्मों के लिए राज्यपद अर्थात् दातापन के संस्कार भर सकेंगे।
प्रश्न:- इस संगमयुग को पुरूषोत्तम संगमयुग व सर्वश्रेष्ठ युग क्यों कहते हो?
उत्तर:- क्योंकि इसी समय आत्मा में हर प्रकार के धर्म की, राज्य की, श्रेष्ठ संस्कारों की, श्रेष्ठ सम्बन्धों की और श्रेष्ठ गुणों की सर्व श्रेष्ठता अभी रिकार्ड के समान भरती जाती है। चौरासी जन्मों की चढ़ती कला और उतरती कला उन दोनों के संस्कार इस समय आत्मा में भरते हैं। रिकार्ड भरने का समय अभी चल रहा है, इसलिए यही सर्वश्रेष्ठ पुरूषोत्तम युग है।
प्रश्न:- हद का रिकार्ड भरने वाले किन तीन बातों का ध्यान रखते हैं? जो आप बेहद का रिकार्ड भरने वालों को भी जरूर रहना चाहिए?
उत्तर:- वे लोग वायुमण्डल, अपनी वृत्ति और वाणी इन तीनों के ऊपर अटेन्शन देते हैं। अगर वृत्ति चंचल होती है, एकाग्र नहीं होती है तो भी वाणी में आकर्षण करने का रस नहीं रहता। जिस प्रकार का गीत गाते हैं, उसी रूप में स्थित होकर गाते हैं। तो जब हद का गीत गाने वाले व रिकार्ड भरने वाले भी इन सभी बातों का ध्यान रखते हैं तो आप बेहद का रिकार्ड भरने वाले, सारे कल्प का रिकार्ड भरने वालों को भी इन सभी बातों के ऊपर अटेन्शन देना चाहिए। अगर रिकार्ड भरते-भरते उल्लास के बजाय आलस्य आ जाय तो रिकार्ड कैसा भरेगा! तो कभी अपने भरे हुए सारे दिन के रिकार्ड को साक्षी होकर देखो कि ठीक भर रहा है!
प्रश्न:- आत्मा की निर्बलता किस एक बात से सिद्ध होती है?
उत्तर:- अगर स्वयं को चेक करने का कामन नियम भी अभी तक विस्मृत हो जाता है, अमृतवेले अपनी दिनचर्या फिक्स नहीं करते, अपने आपको ईश्वरीय नियम और मर्यादापूर्वक चला नहीं सकते तो इससे सिद्ध है कि आत्मा अभी तक निर्बल है, वे विश्व का मर्यादापूर्वक राज्य कैसे चला सकेंगे।
प्रश्न:- अभी कौन सा समय चल रहा है? फिर कौन सा समय आयेगा?
उत्तर:- अभी प्राप्ति का समय चल रहा है, थोड़े समय के बाद पश्चाताप का समय आयेगा। अभी बाप का स्नेही स्वरूप है फिर सुप्रीम जस्टिस का रूप हो जायेगा। जस्टिस के आगे चाहे कितना भी स्नेही सम्बन्धी हो लेकिन लॉ इज़ लॉ, अभी लव का समय है फिर लॉ का समय होगा। फिर उस समय लिफ्ट नहीं मिल सकेगी इसलिए बाप-दादा फिर भी सभी बच्चों को कहेंगे कि थोड़े समय में बहुत समय की प्रालब्ध बना लो। समय के इन्तज़ार में अलबेले न बनो।
प्रश्न:- सद्गति को प्राप्त करने के लिए किस तीव्रगति को अपनाना जरूरी है?
उत्तर:- जो भी कार्य करो वे सभी कार्य सेकेण्ड में हों, करेंगे..प्लैन बनायेंगे.... इसे तीव्रगति नहीं कहा जाता। तीव्र पुरूषार्थी वह है जो दृढ़ संकल्प ले कि करना ही है, बनना ही है। ऐसी तीव्रगति वाले ही सद्गति को प्राप्त कर सकेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
वरदान:- ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाले मायाजीत, क्रोधमुक्त भव
ब्राह्मण जीवन में यदि सुख का अनुभव करना है तो क्रोधजीत बनना अति आवश्यक है। भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट करे लेकिन आपको क्रोध न आये। रोब दिखाना भी क्रोध का ही अंश है। ऐसे नहीं क्रोध तो करना ही पड़ता है, नहीं तो काम ही नहीं चलेगा। आजकल के समय प्रमाण क्रोध से काम बिगड़ता है और आत्मिक प्यार से, शान्ति से बिगड़ा हुआ कार्य भी ठीक हो जाता है इसलिए इस क्रोध को बहुत बड़ा विकार समझकर मायाजीत, क्रोध मुक्त बनो।
स्लोगन:-अपनी वृत्ति को ऐसा पावरफुल बनाओ जो अनेक आत्मायें आपकी वृत्ति से योग्य और योगी बन जायें।
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