14-02-17 प्रात:मुरली ओम शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - सेन्सीबुल बन चलते-फिरते जहाँ भी सेवा हो करते रहो, बाप का परिचय दो, सर्विस का शौक रखो''
प्रश्नः- बच्चों की बुद्धि में कौन सी बात आ जाए तो अपना सब कुछ सफल कर सकते हैं?
उत्तर:- अब यह सब खत्म होने वाला है, दो कणा देने से बाप द्वारा महल मिलते हैं... जिनकी बुद्धि में यह बात आ जाती है, वह अपना सब कुछ ईश्वरीय कार्य में सफल कर लेते हैं। गरीब ही बलिहार जाते हैं। बाप दाता है - वह तुमको स्वर्ग की बादशाही देता, लेता नहीं।
गीत:-प्रीतम ऑन मिलो...
ओम् शान्ति।
प्रीतमायें अर्थात् भक्तियां, ब्राइड्स अर्थात् सजनियां। भक्तियां प्रीतम वा साजन को बुलाती हैं, पुरुष और स्त्री सब मिलकर बुलाते हैं। कितने ढेरों के ढेर हैं। बुलाते हैं तो इससे सिद्ध है जरूर प्रीतमाओं का कोई प्रीतम है। सब एक को बुलाते हैं कि हे परमपिता परमात्मा आओ। हम आपको बहुत याद करते हैं। यादगार तो बहुतों के बनाते हैं। अब वह सब हैं मनुष्यों के यादगार। ऐसे भी बहुत हैं जो लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता आदि देवताओं को याद करते हैं क्योंकि मनुष्य से देवता ऊंच हैं तब तो मनुष्य देवताओं की पूजा करते हैं। नम्बरवार ऊंच और नींच तो हैं ही। यह तो सब जानते हैं कि ऊंचे ते ऊंच भगवान को कहा जाता है। फिर हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर, फिर हैं ब्रह्मा और जगत अम्बा। मुख्य वह हैं। यह तो सिर्फ बच्चों की ही बुद्धि में है कि ऊंचे ते ऊंच बाबा द्वारा हमको ऊंचे ते ऊंचा वर्सा मिलता है। परन्तु उस बाप को जानते ही नहीं। जब बाप आये तब ही आकर अपना परिचय दे। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों के सिवाए और कोई से मिल नहीं सकता हूँ। बहुत आते हैं, कहते है महात्मा जी से मिलें। यहाँ तो वह बात ही नहीं। यहाँ बाप और बच्चों का तैलुक है। बाकी कोई का कुछ काम है तो और बात है। बाप मुरली भी बच्चों के आगे ही चलाते हैं। प्रदर्शनी में भी तुम सिद्ध कर बतलाते हो कि सबका वह फादर है। वो लोग तो कहते हैं वह नाम रूप से न्यारा है। तुम बतलाते हो उनका नाम भी है, रूप भी है, तो देश भी है, चित्र भी हैं। उनको बुलाते भी हैं तो जैसे आत्मायें आती हैं वैसे परमात्मा भी आते हैं। शिव के मन्दिर में भी बैल दिखाते हैं। उसको नंदीगण कहते हैं तो इससे सिद्ध है कि शिव परमात्मा आते हैं। फिर क्यों कहते हैं वह आ ही नहीं सकते। मनुष्य कितने बुद्धू हैं, दिखाते भी हैं बैल की भ्रकुटी में शिव, परमात्मा भी बरोबर भ्रकुटी के बीच में रहते हैं। भगवान को भी आना होगा तो जरूर भ्रकुटी के बीच में ही आयेगा। अब प्रदर्शनी में तुम यह भी समझा सकते हो कि नंदीगण किसको कहा जाता है। बाप कहते हैं मैं बच्चों को ही समझाता हूँ। मनुष्य कहते हैं गाड फादर, परन्तु फादर का नाम क्या है? तो कोई बतला नहीं सकते। लौकिक फादर का नाम तो फौरन सुनायेंगे। शिवबाबा के नाम भी ढेर रख दिये हैं। वास्तव में नाम तो एक ही होना चाहिए। बाप ही इन सब बातों की रोशनी देते हैं। मनुष्य तो इस समय तुच्छ बुद्धि बन गये हैं। अल्फ को नहीं समझते। वेद शास्त्र आदि पढ़ना - यह है भक्ति मार्ग। समझते हैं भक्ति से भगवान मिलेगा। भगत भी मनुष्य ठहरे। उन्हों को भगवान मिलना तो जरूर है परन्तु कब मिलेगा... यह किसको पता ही नहीं है। भक्ति मार्ग में किसको साक्षात्कार हुआ, समझते हैं बस भगवान मिल गया। इससे मुक्ति को पा लिया क्योंकि भगवान जब मिलते हैं तो मुक्ति ही देते हैं। वह है ही सबको मुक्ति और जीवनमुक्ति देने वाला दाता। पतितों को पावन कर्ता, दु:ख हर्ता सुख कर्ता...।
बाप तो है ही दाता। दो कणे के बदले महल दे देते हैं। सारे स्वर्ग की बादशाही दे देते हैं। बाबा कहते हैं अब सब कुछ खत्म होने वाला है। इस कारण इस कार्य में लगाकर सफल कर लो। तुमको रिटर्न भविष्य में मिलेगा। साहूकार कोई बाप को पा नहीं सकते। बलिहार जा नहीं सकते। गरीब बच्चे ही बलिहार जाते हैं। अगर कोई सेन्सीबुल हो तो रास्ते चलते भी सेवा कर सकते हैं। चलते-चलते पहले किसका मित्र बन जाना चाहिए फिर बैठकर ज्ञान सुनाना चाहिए। ज्ञान बिल्कुल ही सहज है। सिर्फ पूछो परमपिता परमात्मा का कब नाम सुना है। कितनी फर्स्टक्लास बात है। परमपिता कहने से वह सबका बाप हो जाता है। जैसे बिच्छू नर्म चीज़ देखेगी तो डंक मारेगी। तुम भी यही धन्धा करो, सबको राजयोग भी सिखलाओ तो सतयुग में प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। वहाँ तुमको गोरे बच्चे मिलेंगे। तो यह समझाना है कि बाप से वर्सा लेना है। इसमें सारी बुद्धि की बात है। बाकी साक्षात्कार तो कॉमन बात है। किसको कैसे साक्षात्कार होता है, किसको कैसे... वह भी एम आब्जेक्ट बतलाने के लिए। बाबा कहते हैं तुम मुझे याद करेंगे और पवित्र रहेंगे तो ऐसा पद पायेंगे। इकट्ठे रहकर पद पाना - यह है बड़ी मंजिल। और संग टूट जाए, एक संग जुट जाए... इसमें ही मेहनत है। सन्यासी तो सब कुछ छोड़कर चले जाते हैं। यहाँ तो इकट्ठे रहकर बुद्धि में रखना है कि यह पुरानी दुनिया खत्म हुई पड़ी है। हमको वापिस जाना है फिर हम स्वर्ग में जाकर राज्य करेंगे। अब पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है। यह बुद्धि में रख पुरुषार्थ करना है। 8 घण्टा इस याद की सर्विस में रहो। कोई कहते हैं यह कैसे हो सकेगा। भक्ति मार्ग में जो कृष्ण के भगत हैं वह भी सब तरफ से बुद्धि को हटाए एक कृष्ण को ही याद करते होंगे। कोई राम का भगत है, अच्छा राम को याद करो। राम की राजधानी को याद करो, सो भी जब निरन्तर याद करे तब अन्त मती सो गति होगी। राम को याद करके राम की राजधानी में जाये, यह भी मेहनत है। ऐसी मेहनत सिखलाने वाला कोई है नहीं। श्लोक भी है - अन्तकाल जो स्त्री सिमरे... अगर कोई सन्यासी है, गुरू है उनको भी याद करना पड़े तो अन्त मती सो गति हो। पहले पूछो कहाँ जाने चाहते हो? वापिस तो जाना है, परन्तु कहाँ? क्योंकि भक्ति से ताकत नहीं मिलती जो एक से बुद्धि लगा सके। सर्वशक्तिमान् तो एक परमपिता परमात्मा ही है ना। उनका ही पार्ट नूंधा हुआ है। ऊंचे ते ऊंचा बाप है उनको याद करो तो उनके देश में जायेंगे। सन्यासियों को तो देवता भी नहीं कह सकते। वह तो आते ही द्वापर में हैं। भगवान स्वयं आकर कहते हैं - बच्चे मुझे याद करो और सृष्टि चक्र पर भी समझाते हैं, जिससे तुम चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। यह नॉलेज बाप ही समझाते हैं। चित्रों पर तुम समझा सकते हो। ऊंचे ते ऊंचा है निराकार भगवान, वह रहते हैं मूलवतन में। वह भी ऊंचे ते ऊंचा है, हम देवतायें भी वहाँ ही रहते हैं। सूक्ष्मवतन में सूक्ष्म देवतायें रहते हैं। वहाँ सृष्टि का चक्र है नहीं। फिर नीचे आओ तो लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में सबसे जास्ती भभका है। जगत अम्बा, जगत पिता के मन्दिर में इतना नहीं। जगत अम्बा का तो बिल्कुल साधारण मन्दिर है। तुम लक्ष्मी का भी मन्दिर देखो, जगत अम्बा का भी देखो - तो रात-दिन का फर्क है। मनुष्यों को यह पता ही नहीं कि जगत अम्बा ही लक्ष्मी बनती है। तुम जानते हो - यह भी अति साधारण है तो उनके मन्दिर भी अति साधारण ही बनाये हैं। तो चित्र भी साधारण बनाये हैं। जगत अम्बा को कहाँ काला भी बनाते हैं। अभी तुम जानते हो कि संगम पर हम यह राजयोग सीखकर भविष्य में कितने शोभनिक श्री लक्ष्मी, श्री नारायण बनते हैं। लिखा भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना सो तो ज्ञान से ही होती है। बाकी गऊ के मुख से अमृत आदि की कोई बात ही नहीं। कृष्ण को भी संगम पर बाबा वर्सा देते हैं। संगम होने कारण उन्हों ने शिव के बदले कृष्ण का नाम लिख दिया है। अब तुम जानते हो जगत अम्बा ही लक्ष्मी बनती है और लक्ष्मी ही 84 जन्म ले जगत अम्बा बनती है। यह है ब्रह्मा का कुल। सो फिर बनता है दैवीकुल। दैवीकुल के फिर 84 जन्म लेते हैं तो अन्त में आकर शूद्र कुल के बनते हैं। कितनी अच्छी-अच्छी बातें हैं। धारणा नहीं होती तो कहेंगे डलहेड है। ऐसे बहुत सेन्टर्स हैं - जो आपेही क्लास चला सकते हैं। गॉड फादर कहते हैं - तेज बुद्धि स्टूडेन्ट बनो। सर्विसएबुल बच्चों को कितना याद करते हैं, बुलाते हैं। बाप भी ऐसे बच्चों को याद करते हैं। स्कूल में कोई तेज, कोई डल तो होते ही हैं। हैं तो सब बच्चे। परन्तु किन्हों के इतने पाप किये हुए हैं जो पुण्य आत्मा बन नहीं सकते हैं। घड़ी-घड़ी गिर पड़ते हैं। कितनी गुप्त खुशी रहनी चाहिए। अन्धों की लाठी तो सिर्फ बाबा ही है और कोई हो न सके। हे प्रभू अन्धों की लाठी तू ही है। यहाँ हर एक की इन्डीविज्युअल दवाई की जाती है। ज्ञान नैनहीन को अंधा कहा जाता है। कलियुग की रात में शिवबाबा आते हैं। कृष्ण रात्रि कहते हैं तो शिव की भी रात्रि है। अब शिव तो परमात्मा है, उनकी रात्रि कौन सी?
तुम जानते हो कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि को ही रात्रि कहा जाता है। भक्ति मार्ग के धक्के खाकर सब तंग हो गये हैं या तो कहते हैं परमात्मा बेअन्त है या तो कहते हैं हम ही परमात्मा हैं। कितना समझाया जाता है। कोई-कोई को सर्विस का बहुत शौक रहता है। बाबा को भी शौक है परन्तु बाबा कहाँ जाये, यह लॉ नहीं है। सन शोज़ फादर। बच्चे तो ढेर हैं। ढेर आते भी रहेंगे। क्यू में बाहर बैठ जायेंगे। पोप आया कितने मनुष्य गये। यह तो सभी का बाप है। पोप को भी सद्गति देने वाला है। सच्ची-सच्ची आशीर्वाद देने वाला बाप ही है। वह झूठी आशीर्वाद करते हैं। बी0के0 को तो सबको ब्लैसिंग देनी है। न समझने के कारण वह समझते हैं हम ब्लैसिंग करते हैं। यहाँ तो आते हैं, देखा जाता है - आशीर्वाद लेने का लायक है वा नहीं। परमपिता परमात्मा की बुद्धि में जो है वह किसकी भी बुद्धि में नहीं है। बाप कहते हैं यह आये तो हम इनको मुक्ति-जीवनमुक्ति दें। मनुष्य से देवता बनायें। स्वर्ग का सैपलिंग लगना तो है। हम समझ जायेंगे यह किस प्रकार का सैपलिंग लग रहा है। तुम भी ऐसे समझो कोई आये तो मुक्ति-जीवनमुक्ति दें। कहते हैं हमको मुक्ति चाहिए। अच्छा - मुक्तिधाम को याद करेंगे तो मुक्ति मिलेगी। बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कम से कम 8 घण्टा इस याद की सर्विस में रहना है। इकट्ठे रहते हुए भी और संग तोड़ एक संग जोड़ने की मेहनत करनी है।
2) तेज बुद्धि स्टूडेन्ट बनना है, डल हेड नहीं। बाप समान अन्धों की लाठी बन सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है।
वरदान:- न्यारी अवस्था में स्थित रह हर कार्य करने वाले सर्व के वा परमात्म प्यार के अधिकारी भव
जैसे बाप सबसे न्यारा और सबका प्यारा है। न्यारापन ही प्यारा बना देता है। जितना अपनी देह के भान से न्यारे होते जायेंगे उतना प्यारा बनेंगे। बीच-बीच में प्रैक्टिस करो देह में प्रवेश होकर कर्म किया और अभी-अभी न्यारे हो गये। ऐसे न्यारी अवस्था में स्थित रहने से कर्म भी अच्छा होगा और बाप के वा सर्व के प्यारे भी बनेंगे। परमात्म प्यार के अधिकारी बनना - कितना बड़ा फायदा है।
स्लोगन:-शुभ भावना का स्टॉक फुल हो तो व्यर्थ को फुलस्टॉप लग जायेगा।
“मीठे बच्चे - सेन्सीबुल बन चलते-फिरते जहाँ भी सेवा हो करते रहो, बाप का परिचय दो, सर्विस का शौक रखो''
प्रश्नः- बच्चों की बुद्धि में कौन सी बात आ जाए तो अपना सब कुछ सफल कर सकते हैं?
उत्तर:- अब यह सब खत्म होने वाला है, दो कणा देने से बाप द्वारा महल मिलते हैं... जिनकी बुद्धि में यह बात आ जाती है, वह अपना सब कुछ ईश्वरीय कार्य में सफल कर लेते हैं। गरीब ही बलिहार जाते हैं। बाप दाता है - वह तुमको स्वर्ग की बादशाही देता, लेता नहीं।
गीत:-प्रीतम ऑन मिलो...
ओम् शान्ति।
प्रीतमायें अर्थात् भक्तियां, ब्राइड्स अर्थात् सजनियां। भक्तियां प्रीतम वा साजन को बुलाती हैं, पुरुष और स्त्री सब मिलकर बुलाते हैं। कितने ढेरों के ढेर हैं। बुलाते हैं तो इससे सिद्ध है जरूर प्रीतमाओं का कोई प्रीतम है। सब एक को बुलाते हैं कि हे परमपिता परमात्मा आओ। हम आपको बहुत याद करते हैं। यादगार तो बहुतों के बनाते हैं। अब वह सब हैं मनुष्यों के यादगार। ऐसे भी बहुत हैं जो लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता आदि देवताओं को याद करते हैं क्योंकि मनुष्य से देवता ऊंच हैं तब तो मनुष्य देवताओं की पूजा करते हैं। नम्बरवार ऊंच और नींच तो हैं ही। यह तो सब जानते हैं कि ऊंचे ते ऊंच भगवान को कहा जाता है। फिर हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर, फिर हैं ब्रह्मा और जगत अम्बा। मुख्य वह हैं। यह तो सिर्फ बच्चों की ही बुद्धि में है कि ऊंचे ते ऊंच बाबा द्वारा हमको ऊंचे ते ऊंचा वर्सा मिलता है। परन्तु उस बाप को जानते ही नहीं। जब बाप आये तब ही आकर अपना परिचय दे। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों के सिवाए और कोई से मिल नहीं सकता हूँ। बहुत आते हैं, कहते है महात्मा जी से मिलें। यहाँ तो वह बात ही नहीं। यहाँ बाप और बच्चों का तैलुक है। बाकी कोई का कुछ काम है तो और बात है। बाप मुरली भी बच्चों के आगे ही चलाते हैं। प्रदर्शनी में भी तुम सिद्ध कर बतलाते हो कि सबका वह फादर है। वो लोग तो कहते हैं वह नाम रूप से न्यारा है। तुम बतलाते हो उनका नाम भी है, रूप भी है, तो देश भी है, चित्र भी हैं। उनको बुलाते भी हैं तो जैसे आत्मायें आती हैं वैसे परमात्मा भी आते हैं। शिव के मन्दिर में भी बैल दिखाते हैं। उसको नंदीगण कहते हैं तो इससे सिद्ध है कि शिव परमात्मा आते हैं। फिर क्यों कहते हैं वह आ ही नहीं सकते। मनुष्य कितने बुद्धू हैं, दिखाते भी हैं बैल की भ्रकुटी में शिव, परमात्मा भी बरोबर भ्रकुटी के बीच में रहते हैं। भगवान को भी आना होगा तो जरूर भ्रकुटी के बीच में ही आयेगा। अब प्रदर्शनी में तुम यह भी समझा सकते हो कि नंदीगण किसको कहा जाता है। बाप कहते हैं मैं बच्चों को ही समझाता हूँ। मनुष्य कहते हैं गाड फादर, परन्तु फादर का नाम क्या है? तो कोई बतला नहीं सकते। लौकिक फादर का नाम तो फौरन सुनायेंगे। शिवबाबा के नाम भी ढेर रख दिये हैं। वास्तव में नाम तो एक ही होना चाहिए। बाप ही इन सब बातों की रोशनी देते हैं। मनुष्य तो इस समय तुच्छ बुद्धि बन गये हैं। अल्फ को नहीं समझते। वेद शास्त्र आदि पढ़ना - यह है भक्ति मार्ग। समझते हैं भक्ति से भगवान मिलेगा। भगत भी मनुष्य ठहरे। उन्हों को भगवान मिलना तो जरूर है परन्तु कब मिलेगा... यह किसको पता ही नहीं है। भक्ति मार्ग में किसको साक्षात्कार हुआ, समझते हैं बस भगवान मिल गया। इससे मुक्ति को पा लिया क्योंकि भगवान जब मिलते हैं तो मुक्ति ही देते हैं। वह है ही सबको मुक्ति और जीवनमुक्ति देने वाला दाता। पतितों को पावन कर्ता, दु:ख हर्ता सुख कर्ता...।
बाप तो है ही दाता। दो कणे के बदले महल दे देते हैं। सारे स्वर्ग की बादशाही दे देते हैं। बाबा कहते हैं अब सब कुछ खत्म होने वाला है। इस कारण इस कार्य में लगाकर सफल कर लो। तुमको रिटर्न भविष्य में मिलेगा। साहूकार कोई बाप को पा नहीं सकते। बलिहार जा नहीं सकते। गरीब बच्चे ही बलिहार जाते हैं। अगर कोई सेन्सीबुल हो तो रास्ते चलते भी सेवा कर सकते हैं। चलते-चलते पहले किसका मित्र बन जाना चाहिए फिर बैठकर ज्ञान सुनाना चाहिए। ज्ञान बिल्कुल ही सहज है। सिर्फ पूछो परमपिता परमात्मा का कब नाम सुना है। कितनी फर्स्टक्लास बात है। परमपिता कहने से वह सबका बाप हो जाता है। जैसे बिच्छू नर्म चीज़ देखेगी तो डंक मारेगी। तुम भी यही धन्धा करो, सबको राजयोग भी सिखलाओ तो सतयुग में प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। वहाँ तुमको गोरे बच्चे मिलेंगे। तो यह समझाना है कि बाप से वर्सा लेना है। इसमें सारी बुद्धि की बात है। बाकी साक्षात्कार तो कॉमन बात है। किसको कैसे साक्षात्कार होता है, किसको कैसे... वह भी एम आब्जेक्ट बतलाने के लिए। बाबा कहते हैं तुम मुझे याद करेंगे और पवित्र रहेंगे तो ऐसा पद पायेंगे। इकट्ठे रहकर पद पाना - यह है बड़ी मंजिल। और संग टूट जाए, एक संग जुट जाए... इसमें ही मेहनत है। सन्यासी तो सब कुछ छोड़कर चले जाते हैं। यहाँ तो इकट्ठे रहकर बुद्धि में रखना है कि यह पुरानी दुनिया खत्म हुई पड़ी है। हमको वापिस जाना है फिर हम स्वर्ग में जाकर राज्य करेंगे। अब पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है। यह बुद्धि में रख पुरुषार्थ करना है। 8 घण्टा इस याद की सर्विस में रहो। कोई कहते हैं यह कैसे हो सकेगा। भक्ति मार्ग में जो कृष्ण के भगत हैं वह भी सब तरफ से बुद्धि को हटाए एक कृष्ण को ही याद करते होंगे। कोई राम का भगत है, अच्छा राम को याद करो। राम की राजधानी को याद करो, सो भी जब निरन्तर याद करे तब अन्त मती सो गति होगी। राम को याद करके राम की राजधानी में जाये, यह भी मेहनत है। ऐसी मेहनत सिखलाने वाला कोई है नहीं। श्लोक भी है - अन्तकाल जो स्त्री सिमरे... अगर कोई सन्यासी है, गुरू है उनको भी याद करना पड़े तो अन्त मती सो गति हो। पहले पूछो कहाँ जाने चाहते हो? वापिस तो जाना है, परन्तु कहाँ? क्योंकि भक्ति से ताकत नहीं मिलती जो एक से बुद्धि लगा सके। सर्वशक्तिमान् तो एक परमपिता परमात्मा ही है ना। उनका ही पार्ट नूंधा हुआ है। ऊंचे ते ऊंचा बाप है उनको याद करो तो उनके देश में जायेंगे। सन्यासियों को तो देवता भी नहीं कह सकते। वह तो आते ही द्वापर में हैं। भगवान स्वयं आकर कहते हैं - बच्चे मुझे याद करो और सृष्टि चक्र पर भी समझाते हैं, जिससे तुम चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। यह नॉलेज बाप ही समझाते हैं। चित्रों पर तुम समझा सकते हो। ऊंचे ते ऊंचा है निराकार भगवान, वह रहते हैं मूलवतन में। वह भी ऊंचे ते ऊंचा है, हम देवतायें भी वहाँ ही रहते हैं। सूक्ष्मवतन में सूक्ष्म देवतायें रहते हैं। वहाँ सृष्टि का चक्र है नहीं। फिर नीचे आओ तो लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में सबसे जास्ती भभका है। जगत अम्बा, जगत पिता के मन्दिर में इतना नहीं। जगत अम्बा का तो बिल्कुल साधारण मन्दिर है। तुम लक्ष्मी का भी मन्दिर देखो, जगत अम्बा का भी देखो - तो रात-दिन का फर्क है। मनुष्यों को यह पता ही नहीं कि जगत अम्बा ही लक्ष्मी बनती है। तुम जानते हो - यह भी अति साधारण है तो उनके मन्दिर भी अति साधारण ही बनाये हैं। तो चित्र भी साधारण बनाये हैं। जगत अम्बा को कहाँ काला भी बनाते हैं। अभी तुम जानते हो कि संगम पर हम यह राजयोग सीखकर भविष्य में कितने शोभनिक श्री लक्ष्मी, श्री नारायण बनते हैं। लिखा भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना सो तो ज्ञान से ही होती है। बाकी गऊ के मुख से अमृत आदि की कोई बात ही नहीं। कृष्ण को भी संगम पर बाबा वर्सा देते हैं। संगम होने कारण उन्हों ने शिव के बदले कृष्ण का नाम लिख दिया है। अब तुम जानते हो जगत अम्बा ही लक्ष्मी बनती है और लक्ष्मी ही 84 जन्म ले जगत अम्बा बनती है। यह है ब्रह्मा का कुल। सो फिर बनता है दैवीकुल। दैवीकुल के फिर 84 जन्म लेते हैं तो अन्त में आकर शूद्र कुल के बनते हैं। कितनी अच्छी-अच्छी बातें हैं। धारणा नहीं होती तो कहेंगे डलहेड है। ऐसे बहुत सेन्टर्स हैं - जो आपेही क्लास चला सकते हैं। गॉड फादर कहते हैं - तेज बुद्धि स्टूडेन्ट बनो। सर्विसएबुल बच्चों को कितना याद करते हैं, बुलाते हैं। बाप भी ऐसे बच्चों को याद करते हैं। स्कूल में कोई तेज, कोई डल तो होते ही हैं। हैं तो सब बच्चे। परन्तु किन्हों के इतने पाप किये हुए हैं जो पुण्य आत्मा बन नहीं सकते हैं। घड़ी-घड़ी गिर पड़ते हैं। कितनी गुप्त खुशी रहनी चाहिए। अन्धों की लाठी तो सिर्फ बाबा ही है और कोई हो न सके। हे प्रभू अन्धों की लाठी तू ही है। यहाँ हर एक की इन्डीविज्युअल दवाई की जाती है। ज्ञान नैनहीन को अंधा कहा जाता है। कलियुग की रात में शिवबाबा आते हैं। कृष्ण रात्रि कहते हैं तो शिव की भी रात्रि है। अब शिव तो परमात्मा है, उनकी रात्रि कौन सी?
तुम जानते हो कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि को ही रात्रि कहा जाता है। भक्ति मार्ग के धक्के खाकर सब तंग हो गये हैं या तो कहते हैं परमात्मा बेअन्त है या तो कहते हैं हम ही परमात्मा हैं। कितना समझाया जाता है। कोई-कोई को सर्विस का बहुत शौक रहता है। बाबा को भी शौक है परन्तु बाबा कहाँ जाये, यह लॉ नहीं है। सन शोज़ फादर। बच्चे तो ढेर हैं। ढेर आते भी रहेंगे। क्यू में बाहर बैठ जायेंगे। पोप आया कितने मनुष्य गये। यह तो सभी का बाप है। पोप को भी सद्गति देने वाला है। सच्ची-सच्ची आशीर्वाद देने वाला बाप ही है। वह झूठी आशीर्वाद करते हैं। बी0के0 को तो सबको ब्लैसिंग देनी है। न समझने के कारण वह समझते हैं हम ब्लैसिंग करते हैं। यहाँ तो आते हैं, देखा जाता है - आशीर्वाद लेने का लायक है वा नहीं। परमपिता परमात्मा की बुद्धि में जो है वह किसकी भी बुद्धि में नहीं है। बाप कहते हैं यह आये तो हम इनको मुक्ति-जीवनमुक्ति दें। मनुष्य से देवता बनायें। स्वर्ग का सैपलिंग लगना तो है। हम समझ जायेंगे यह किस प्रकार का सैपलिंग लग रहा है। तुम भी ऐसे समझो कोई आये तो मुक्ति-जीवनमुक्ति दें। कहते हैं हमको मुक्ति चाहिए। अच्छा - मुक्तिधाम को याद करेंगे तो मुक्ति मिलेगी। बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कम से कम 8 घण्टा इस याद की सर्विस में रहना है। इकट्ठे रहते हुए भी और संग तोड़ एक संग जोड़ने की मेहनत करनी है।
2) तेज बुद्धि स्टूडेन्ट बनना है, डल हेड नहीं। बाप समान अन्धों की लाठी बन सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है।
वरदान:- न्यारी अवस्था में स्थित रह हर कार्य करने वाले सर्व के वा परमात्म प्यार के अधिकारी भव
जैसे बाप सबसे न्यारा और सबका प्यारा है। न्यारापन ही प्यारा बना देता है। जितना अपनी देह के भान से न्यारे होते जायेंगे उतना प्यारा बनेंगे। बीच-बीच में प्रैक्टिस करो देह में प्रवेश होकर कर्म किया और अभी-अभी न्यारे हो गये। ऐसे न्यारी अवस्था में स्थित रहने से कर्म भी अच्छा होगा और बाप के वा सर्व के प्यारे भी बनेंगे। परमात्म प्यार के अधिकारी बनना - कितना बड़ा फायदा है।
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