Night story ❣️❣️23/05/2020❣️❣️ *👉🏿परलोक के भोजन का स्वाद*

*एक सेठ जी ने अन्नसत्र खोल रखा था।उनमें दान की भावना तो कम थी,पर समाज उन्हें दानवीर समझकर उनकी प्रशंसा करे यह भावना मुख्य थी।उनके प्रशंसक भी कम नहीं थे। थोक का व्यापार था उनका।वर्ष के अंत में अन्न के कोठारों में जो सड़ा गला अन्न बिकने से बच जाता था, वह अन्नसत्र के लिए भेज दिया जाता था। प्रायः सड़ी ज्वार की रोटी ही सेठ के अन्नसत्र में भूखों को प्राप्त होती थी।*
        *सेठ जी के पुत्र का विवाह हुआ। पुत्रवधू घर आयी। वह बड़ी सुशील,धर्मज्ञ और विचारशील थी।उसे जब पता चला कि उसके ससुर द्वारा खोले गये अन्नसत्र में सड़ी ज्वार की रोटी दी जाती है तो उसे बड़ा दुःख हुआ।उसने भोजन बनाने की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। पहले ही दिन उसने अन्नसत्र से सड़ी ज्वार का आटा मँगवाकर एक रोटी बनायी और सेठ जब भोजन करने बैठे तो उनकी थाली में भोजन के साथ वह रोटी भी परोस दी।काली, मोटी रोटी देखकर कौतुहलवश सेठ ने पहला ग्रास उसी रोटी का मुख में डाला।ग्रास मुँह में जाते ही वे थू-थू करने लगे और थूकते हुए बोले"बेटी!घर में आटा तो बहुत है।यह तूने रोटी बनाने के लिए सड़ी ज्वार का आटा कहाँ से मँगाया ?"*
     *पुत्रवधू बोलीः"पिता जी!यह आटा परलोक से मँगाया है।"*
     *ससुर बोले"बेटी!मैं कुछ समझा नहीं।"*
         *"पिता जी !जो दान पुण्य हमने पिछले जन्म में किया वही कमाई अब खा रहे हैं और जो हम इस जन्म में करेंगे वही हमें परलोक में मिलेगा। हमारे अन्नसत्र में इसी आटे की रोटी गरीबों को दी जाती है।परलोक में केवल इसी आटे की रोटी पर रहना है।इसलिए मैंने सोचा कि अभी से हमें इसे खाने का अभ्यास हो जाय तो वहाँ कष्ट कम होगा।"*
        *सेठ जी को अपनी गलती का एहसास हुआ।उन्होंने अपनी पुत्रवधू से क्षमा माँगी और अन्नसत्र का सड़ा आटा उसी दिन फिकवा  दिया। तब से अन्नसत्र से गरीबों, भूखों को अच्छे आटे की रोटी मिलने लगी।*
       *आप दान तो करो लेकिन दान ऐसा हो कि जिससे दूसरे का मंगल-ही-मंगल हो।जितना आप मंगल की भावना से दान करते हो उतना दान लेने वाले का भला होता ही है,साथ में आपका भी इहलोक और परलोक सुधर जाता है।दान करते समय यह भावना नहीं होनी चाहिए कि लोग मेरी प्रशंसा करें,वाहवाही करें। दान इतना गुप्त हो कि देते समय हमारे  दूसरे हाथ को भी पता न चले*
   


♦️🔹♦️🟠♦️🔹♦️

Night Story IIशुभरात्रि**_।I 21/05/2020। मधुर वाणी का फल ।।

Lएक राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके सब दाँत गिर गए हैं। प्रातः उसने दरबार में अपने एक सभासद से पूछा कि,- इस स्वप्न का क्या फल होना चाहिए ?_*

     *_सभासद ने उत्तर दिया- "सरकार, इस स्वप्न का फल यह होगा कि आपके समस्त परिजन आपके जीवन काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे !!"_*

      *_राजा ने उसका सिर धड़ से अलग कर देने का आदेश दे दिया। तदुपरांत उसने वही प्रश्न एक अन्य सभासद से किया।_*

      *_उस सभासद ने कहा कि, "सरकार आप अपने समस्त परिजन की अपेक्षा दीर्घजीवी होंगे। उसने अत्यन्त विनम्रतापूर्वक यह उत्तर दिया।"_* 

      *_राजा उसके उत्तर से बड़े आल्हादित हुए और उसको भारी ईनाम दिया !!_*

      *_दोनों सभासदों का मन्तव्य एक ही था परन्तु,- उसको प्रस्तुत करने का ढंग भिन्न था। एक में कटुता थी और दूसरे में मधुरता थी। उसके परिणाम भी कटु व मधुर रहे।_*

      *_इसीलिए कहते हैं कि वाणी का उपयोग इस प्रकार करो कि सुनने वाले को बुरा न लगे, उसे किसी प्रकार का दुःख न पहुँचे।_*

      *_अनुकूल वाणी मित्रों की सृष्टि करती है और प्रतिकूल वाणी अकारण शत्रु तैयार करती है।_*

      *_इन दोहों में वाणी की महत्ता को रेखांकित किया गया है:--_*

      *_कागा किसका धन हरे,_*
                         *_कोयल क्या कुछ देत।_*
      *_मीठे वचन सुनाय के,_*
                         *_जग अपनो कर लेत।।_*

      *_ऐसी वाणी बोलिये,_*
                         *_मन का आपा खोय।_*
      *_औरन को शीतल करे,_* 
                         _*आपहुं शीतल होय।।*_

      *_बोली एक अनमोल है,_* 
                         *_जो कोई बोलै जानि।_* 
      *_हिये तराजू तौलि के,_* 
                         *_तब मुख बाहर आनि।।_*

      _*मीठे वचन सुहावते,*_
                         *_और कड़वे करे आघात।_*
      *_मांगीलाल मीठा कहे,_*
                         *_बिगड़े काम बन जात।।_*

      *_संकलन ऐसा कीजिये,_*
                         *_हो हर शब्द अनमोल।_*
      *_कड़वे शब्द पीड़ा करे,_*
                         *_अरु मीठे मिश्री घोल।।_*

      *_कटु सत्य कड़वे लगे,_*
                         *_पर कहने का हो ढंग।_*
      *_सत्य शूल सम नहीं चुभे_*
                         *_जब मीठे बोल हो संग।।_*

      _*अतः हम सबको जीवन में सदा मधुरवाणी का ही प्रयोग करना चाहिए !!*_

# II Night story 🌹20/05/2020🌹🌹कंकड़ या हीरा (God bless you)

एक राजा अपने महल के बगीचे में टहल रहा था। उसकी नजर पिंटू नामक सफाई कर्मचारी पर पड़ी पिंटू को फटेहाल पांव में जूता नहीं चेहरा ऐसा कि    कई दिनों का भूखा ये देखकर राजा को दया आ गई। राजमहल में इतना गरीब इंसान वो भी भूखा राजा ने सोचा इसकी आज ही गरीबी समाप्त कर दूं। राजा ने पिंटू को पास बुलाया और हुक्म दिया कुछ देर पश्चात मुझे महल में मिलना। पिंटू काँपता हुआ राजा के सामने हाजिर हुआ  राजा ने कहा तू बड़ा गरीब है। ये ले मैं तुझे ये हीरों से जड़ा सोने का थाल देता हूं ताकि तेरी गरीबी मिट जाए। पिंटू सोने का थाल पाकर बड़ा खुश हुआ। राजा का धन्यवाद किया। घर जाकर अपनी पत्नी को थाल दिया और कहा- आज राजा ने मेरे पर बड़ी कृपा की है ये बहुमूल्य और सुंदर थाल दिया है। पत्नी ने थाल को हाथ में पकड़ते हुए कहा - ये अच्छा हुआ रोज-रोज कूड़ा टूटी हुई टोकरी में उठा रही थी। बाँस की टोकरी थोड़े दिन चलती है। गीले कूड़े से टोकरी जल्दी टूट जाती है। अब ये पक्की टोकरी मिल गई है कभी टूटेगी नहीं कल से इसमें गंदगी ढोया करुंगी। कितनी सुंदर है सिर रखूंगी तो अच्छी भी लगूँगी। दूसरे दिन राजा का दिया हुआ थाल सिर पर उठाकर घर-घर में जाकर थाल में गंदगी इकट्ठी करके ढोने लगी। यह कम्र कई दिनों तक चलता रहा अचानक राजा के सामने पिंटू आया  राजा ने देखा पिंटू की वही अवस्था फटे-पुराने वस्त्र पांव में जूते नहीं। राजा ने पिंटू को रोका और पूछा- पिंटू ! वो तुझे थाल दिया था उसका तूने क्या किया? पिंटू कांपते हुए बोला - महाराज, वो तो मेरी पत्नी के पास है। उसमें गंदगी घर   घर से इकट्ठी करके एक जगह फैंकती है। उसे मजबूत टोकरी मिल गई। ये सुनकर राजा को बहुत क्रोध आया और हुक्म दिया नालायक, मूर्ख इतना कीमती थाल दिया था कि तेरी गरीबी खत्म हो जाएगी। तूने उसकी कीमत नहीं जानी और उसमें गंदगी डालता है। जाओ थाल वापस लाकर दो। पिंटू ने कहा - सत्य वचन। अभी लाता हूं ये कहकर पिंटू घर गया और रोने लगा। मेरी कितनी बड़ी गलती मैंने कद्र नहीं की पत्नी से थाल लिया। अच्छी तरह धोया और राजा को वापस दिया। पिंटू गरीब का गरीब रहा। ये कहानी कहीं हम सबके साथ तो नही घट रही निरंकार परमात्मा ने ये शरीर रूपी कीमती थाल दिया जिसमें हाथ,पांव, आँखें, कान, नाक, मुंह जुबान ओर ना जाने कितने कीमती हीरे मोती जड़े हैं, परंतु इंसान इसमें तृष्णाओ, इच्छाओ कामनाओ वैर द्वेष जलन  नफरत और अभिमान रूपी गंदगी को ढोए जा रहा है  ढोए जा रहा है। इन्सान ने इस अनमोल मानुष देह की कद्र नहीं जानी अभी भी वक्त है... महात्मा समझा रहे है. क्यों गाफिल होके सोया आंख मूंद के हे इन्सान जाग कर अपना काम निपटा ले जिस कारण आया बीच जहान*
*🌺शुकर दातयां तेरा🌺*

# II.*शुभरात्रि*19/05/2020*पाप कहाँ कहा तक जाता है ?* (God bless you)

एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते है, तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी !

अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है ?

तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए , ऋषि ने पूछा कि
भगवन जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ?

भगवन ने जहा कि चलो गंगा से ही पूछते है, दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा कि "हे गंगे ! जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुई !"

गंगा ने कहा "मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ !"

अब वे लोग समुद्र के पास गए, "हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए !" 
समुद्र ने कहा "मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ !" 
अब वे लोग बादल के पास गए और कहा "हे बादलो ! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते है, 
तो इसका मतलब आप पापी हुए !"

बादलों ने कहा "मैं क्यों पापी हुआ,
मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ , जिससे अन्न उपजता है, जिसको मानव खाता है, उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है, जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है , 
उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है !"

शायद इसीलिये कहते हैं ..”जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन”

अन्न को जिस वृत्ति ( कमाई ) से प्राप्त किया जाता है और जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, वैसे ही विचार मानव के बन जाते है !

*इसीलिये सदैव भोजन सिमरन और शांत अवस्था मे करना चाहिए और कम से कम अन्न जिस धन से* *खरीदा जाए वह धन ईमानदारी एवं श्रम का होना चाहिए !*

II Today's night story👇18/05/2020👇*सत्संग के आनंद की दृढ़ इच्छा।I


एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद प्राप्त कर सके. 
चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा. 
कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया. 
कपड़े बदलकर वापस सत्संग  की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले. 
फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया. 
जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है.
 इस तरह वो शख्स उसे सत्संग घर के दरवाज़े तक ले आया. पहले वाले शख्स ने उससे कहा आप भी अंदर आकर सतसंग सुन लें. 
लेकिन वो शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर  में दाखिल नही हुआ. 
दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है ...? 
दूसरे वाले शख्स ने जवाब दिया "इसलिए क्योंकि मैं काल हूँ,
 ये सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना न रहा। 
काल  ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था. 
जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा सत्संग घर  की तरफ रवाना हुए तो भगवान ने आपके सारे पाप क्षमा कर दिए. जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो भगवान ने आपके पूरे परिवार के गुनाह क्षमा कर दिए.
*मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर  चले गए तो कहीं ऐसा न हो वह आपके सारे गांव के लोगो के पाप क्षमा कर दे.* इसलिए मैं यहाँ तक आपको खुद पहुंचाने आया हूँ.

अब हम देखे कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर  पहुँच गया और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन जाप छोड़ देते हैं। क्यों....??? 
क्योंकि हम जीव अपने भगवान से ज्यादा दुनिया की चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं। 
उनसे ज्यादा मोह हैं। इसके विपरीत वह शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर सत्संग घर चला गया। क्यों...??? 
क्योंकि उसे अपने दिल में भगवान के लिए बहुत प्यार था। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगीं का नियम टूटने नहीं देना चाहता था।
 इसीलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया और मालिक की बंदगी में रूकावट डाल रहा था, बाधा पहुँचा रहा था ! 

*इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन-सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे या कितना ही बाधित करे, हमें हार नहीं माननी चाहिए और मन का डट कर मुकाबला करना चाहिए।* 
*एक न एक दिन हमारा मन स्वयं हमें भजन सिमरन के लिए उठायेगा और उसमें रस भी लेगा।*
*बस हमें भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और न ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी हैं। वह मालिक आप ही हमारे काम सिद्ध और सफल करेगा।* 
*इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।*

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*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे*🙏🙏
 *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*।।🙌🙌

# II 🌳🌾🌿आत्मा की उन्नति के 100 तरीके🌿🌾🌳 II

1. सदा याद की यात्रा पर रहो। 
2. कभी भी बीती को याद नहीं करो। 
3. आगे के लिए कोई आश न रखो। 
4. शरीर निर्वाहार्थ कर्म करो, टाइम वेस्ट नहीं करो।
5. कम से कम 8 घण्टा ईश्वरीय सेवा करो।
6. ज्ञान की बारिश में भीगते रहो।
7. ज्ञान-योग में आत्मा को डूबो कर रखो।
8. अशरीरी बनने की प्रैक्टिस करते रहो।
9. स्वदर्शन चक्र बुद्धि में घूमता रहे।
10. बाप की महिमा के गीत गाते रहो।
11. अपने को आत्मा निश्चय करो।
12. स्वर्ग को याद करते रहो।
13. शान्तिधाम को याद करते रहो।
14. परमात्मा से मिलन मनाते रहो।
15. ज्ञान स्नान करते रहो।
16. बुद्धियोग बाप के साथ लगाओ।
17. आशिक बन प्रभू माशूक के साथ रहो। 
18. परमात्म पढ़ाई पढऩे की मस्ती में रहो।
19. निर्वाणधाम का अनुभव करते रहो।
20. दधीचि ऋर्षि मिसल यज्ञ सेवा करते रहो।
21. बाबा का संदेश देते रहो।
22. बाबा के मिलन को याद करते रहो।
23. जीते जी मरने की मौज में रहो।
24. घर लौटने की खुशी में रहो।
25. देही-अभिमानी बनकर रहो।
26. बाप के सम्मुख बैठे रहो।
27. देवी-देवता बनने की खुशी में रहो।
28. रूहानी पथ पर चलते रहो।
29. दफ्तर में भी याद करते रहो।
30. देखो फुर्सत है, बाप की याद में बैठ जाओ।
31. याद में बहुत कमाई है, उन्नति है।
32. ट्रेन में सफर करते हो तो भी बाबा को याद करते रहो। 
33. शाम को घर का खाना आदि पकाते हो तो भी एक-दो को याद दिलाओ-आओ, हम अपने बाप की याद में बैठें। 
34. प्वाइंट भी एक-दो को सुनाओ। 
35. हम स्वदर्शन चक्रधारी, लाइट हाउस हैं इसी खुशी में रहो।
36. बहुत गुल-गुल महारानी, पटरानी बनेंगे - इस समृति में रहो।
37. सात रोज़ की भट्टी करो।
38. कदम-कदम पर बाप से राय लेते रहो। 
39. अपनी कुटिया में भी खुश रहो।
40. अनावश्यक इच्छायें छोड़ दो।
41. दो रोटी मिली, बस, बाप को याद करो।
42. वैकुण्ठ की बादशाही की खुशी में रहो।
43. अपने यादगार मंदिर की खुशी में रहो।
44. ज्ञान धन दान करते रहो।
45. ज्ञान की बातों में रमण करते रहो।
46. सुप्रीम रूह से स्वयं को रिझाते रहो।
47. 84 जन्मों की हिस्ट्री-जॉग्राफी को याद करो।
48. पाँच स्वरूपों की ड्रिल करते रहो।
49. तीनों लोकों की सैर करो।
50. ज्ञान का नेत्र खुला रखो।
51. सदा सेवा में उपस्थित रहो। 
52. खूब पुरुषार्थ करते रहो।
53. बाप को याद, प्यार नमस्ते करते रहो।
54. श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर रहो।
55. सर्व को सम्मान देते रहो।
56. सम्मान देकर उमंग-उल्हास में रहो।
57. सर्व प्राप्तियों की समृति में रहो।
58. एक बाप की सच्ची मुहब्बत में रहो।
59. अपने आपसे रूह-रिहान करते रहो। 
60. किसी भी चीज़ में आसक्ति न हो। 
61. ज्ञान का मनन चिन्तन करते रहो।
62. कर्म करते बाप को याद करते रहो।
63. खाना आदि खाते भी बाप को याद करो। 
64. परमात्मा के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ लो।
65. तकलीफ सहन करते भी याद करो।
66. भ्रकुटी सिहांसन पर बैठो रहो।
67. अपने पूज्य स्वरूप की स्मृति में रहो।
68. रूहानी खुमारी में रहो।
69. ड्रामा को साक्षी हो देखते रहो।
70. पुरानी दुनिया से किनारे रहो।
71. बहुत-बहुत-बहुत लव से याद करो।
72. सदा सुहागिन बन कर रहो।
73. बाप के गले में पड़े रहो।
74. पुराने संस्कारो का संस्कार कर दो 
75. अपने सारे बोझ बाप को सौंप दो।
76. आंखों को शीतल बना दो।
77. सदा महावीर बनकर रहो।
78. सदा ड्रामा पर अटल रहो।
79. किसी से कोई शिकायत न करो।
80. पवित्रता के वायब्रेशन फैलाते रहो।
81. सबका धन्यवाद करते रहो।
82. बाप जैसा गुणवान बनो।
83.  मुसीबत में भी मुस्कराते रहो।
84. बापदादा की छत्रछाया में रहो।
85. मायावी कागजी शेर को चींटी समझ मार दो।
86. सदा बेफिकर बादशाह बनकर रहो।
87. मनसा साकाश देते रहो।
88. बापदादा के नयनों में समाए रहो।
89. मस्तक से बाप का साक्षात्कार कराते रहो।
90. सदा अव्यक्त स्थिति में रहो।
91. फरिश्ता बन कर सकाश देते रहो।
92. बाप समान अपकारी पर भी उपकार करो।
93. सबकी दुआयें जमा करते रहो।
94. बाप की याद में टाइम सफल करो। 
95. अज्ञान नींद से सदा जागते रहो।
96. सबको बहुत नम्रता प्यार से समझाते रहो।
97. प्रेमपूर्वक पवित्रता के सागर में समाये रहो।
98. अपने स्वीटहोम लौटने की खुशी में रहो।
99. संकल्प शक्ति को जमा करते रहो।
100. यज्ञ की बड़े प्यार से सम्भाल करते रहो।

            💥😇🙏ओम शान्ति🙏😇💥
                      ✌✌✌✌

# II 😴 😴 👉 *रात्रि कहानी* 👈 😴 😴 17/05/2020 🙏 *ज़िंदगी जीने का अंदाज़* 🙏II

 दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने के बाद ऐक बार नेल्सन मांडेला अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ एक रेस्तरां में खाना खाने गए।

सबने अपनी अपनी पसंद का खाना आर्डर किया और खाना आने का इंतजार करने लगे।

उसी समय मांडेला की सीट के सामने वाली सीट पर एक व्यक्ति अपने खाने का इंतजार कर रहा था।

मांडेला ने अपने सुरक्षा कर्मी से कहा कि उसे भी अपनी टेबल पर बुला लो।

ऐसा ही हुआ।

खाना आने के बाद सभी खाने लगे, *वो आदमी भी अपना खाना खाने लगा, पर उसके हाथ खाते हुए कांप रहे थे।*

खाना खत्म कर वो आदमी सिर झुका कर रेस्तरां से बाहर निकल गया।

उस आदमी के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारी ने मंडेला से कहा कि वो व्यक्ति शायद बहुत बीमार था, खाते वख़्त उसके हाथ लगातार कांप रहे थे और वह ख़ुद भी कांप रहा था।
 
मांडेला ने कहा नहीं ऐसा नहीं है।

*वह उस जेल का जेलर था, जिसमें मुझे कैद रखा गया था। जब कभी मुझे यातनाएं दी जाती थीं और मै कराहते हुए पानी मांगता था तो ये मेरे ऊपर पेशाब करता था।*

मांडेला ने कहा *मै अब राष्ट्रपति बन गया हूं, उसने समझा कि मै भी उसके साथ शायद वैसा ही व्यवहार करूंगा। पर मेरा चरित्र ऐसा नहीं है।*

👉 *मुझे लगता है बदले की भावना से काम करना विनाश की ओर ले जाता है। वहीं धैर्य और सहिष्णुता की मानसिकता हमें विकास की ओर ले जाती है।*

😴😴😴😴😴OM SHANTI😴😴😴😴😴😴

रात्रि कहानी ❣️❣️16/05/2020❣️❣️*🙏भगवान श्रीकृष्ण द्वारा एक समझने योग्य संदेश!🙏*

*"उम्मीद है ये हर एक समझ कर  उस षपर अमल करते हुए आगे बढा़येगा ।"*

*महाभारत युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य के धोखे से मारे जाने पर अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो गये।*

*उन्होंने पांडव सेना पर एक बहुत ही भयानक अस्त्र "नारायण अस्त्र" छोड़ दिया।*

*इसका कोई भी प्रतिकार नहीं कर सकता था।यह जिन लोगों के हाथ में हथियार हो और लड़ने के लिए कोशिश करता दिखे उस पर अग्नि बरसाता था और तुरंत नष्ट कर देता था।*

*भगवान श्रीकृष्ण जी ने सेना को अपने अपने अस्त्र शस्त्र  छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर खड़े रहने का आदेश दिया। और कहा मन में युद्ध करने का विचार भी न लाएं, यह उन्हें भी पहचान कर नष्ट कर देता है।*

*नारायण अस्त्र धीरे धीरे  अपना समय समाप्त होने पर शांत हो गया। इस तरह पांडव सेना की रक्षा हो गयी।*

*इस कथा प्रसंग का औचित्य समझें?*
*हर जगह लड़ाई सफल नहीं होती।प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए हमें भी कुछ समय के लिए सारे काम छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर, मन में सुविचार रख कर एक जगह ठहर जाना चाहिए। तभी हम इसके कहर से बचे रह पाएंगे।*

*कोरोना भी अपनी समयावधि पूरी करके शांत हो जाएगा।*

            *🙏🌹ओम शान्ति🙏🌹*

# I I !! *NIGHT STORY II 15/05/2020 🤔सोच बदल देगी जिंदगी☝🏻* !!

एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था। उसके घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर थी। क्योकि जब वह छोटा था। तब ही उसके पिता की मृत्यु हो गयी थी। उसकी माँ घर घर जाकर बर्तन मांज कर और सिलाई करके किसी न किसी तरह अपने घर का गुजारा करती थी। वह लड़का अक्सर चुप चुपचाप ही बैठा रहता था।
 
एक दिन उसके अध्यापक ने उसे एक पत्र देते हुए कहा – तुम इसे अपनी माँ को दे देना। उसने घर आकर वह पत्र अपनी माँ को दे दिया। उसकी माँ उस पत्र को पढ़कर मन ही मन मुस्कुराने लगी। बेटे ने अपनी माँ से पूछा – माँ इस पत्र में क्या लिखा है।

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा – बेटा इसमें लिखा है की आपका बेटा कक्षा में सबसे होशियार है। इसका दिमाग सभी बच्चो से तेज है। हमारे पास ऐसे अध्यापक नहीं है। जो आपके बच्चे को पढ़ा सके। इसलिए आप इसका एडमिशन किसी ओर स्कूल में करवा दीजिए।
 
यह सुनकर वह लड़का खुश हो गया। और साथ ही साथ उसका कॉन्फिडेंस बहुत ही बढ़ गया। वह मन ही मन सोचने लगा की उसके पास कुछ खाश है। जिसके कारण वह इतना बुद्धिमान और तीव्र बुद्धि वाला है। अगले ही दिन उसकी माँ ने उसका एडमिशन दूसरे स्कूल में करवा दिया।

उस लड़के ने मन लगाकर पढाई की और एक दिन अपनी मेहनत के दम पर सिविल सर्विसेज का एग्जाम पास कर लिया। उसकी माँ बूढी हो चुकी थी। और एक बीमारी से ग्रस्त होने के कारण। एक दिन अचानक ही उसकी मृत्यु हो गयी। उस लड़के को अपनी माँ से बहुत ही लगाव था।

वह बहुत ही रोया। तभी अचानक उसने अपनी माँ की अलमारी खोली, और उसके सामानो को देखने लगा। तभी उसकी नज़र एक पत्र पर पड़ी। यह वही पत्र था जो उसकी टीचर ने उसकी माँ को देने के लिए दिया था। जब उसने उस पत्र को पढ़ा तो उसके होश उड़ गए।

उस पत्र में लिखा था की आपको ये बताते हुए हमे बहुत दुःख है। की आपका बेटा पढ़ाई – लिखाई में बहुत ही कमजोर है। यह खेल कूद में भी इतना अच्छा नहीं है। जिस तरह से इसकी उम्र बढ़ रही है। उस तरह से इसकी बुद्धि का विकास नहीं हो रहा है। इसलिए हम इसे स्कूल से निकाल रहे है। आप इसका डमीशन किसी दूसरे स्कूल में करवा दीजिये। नहीं तो घर रहकर इसे पढ़ाइये।

*शिक्षा*- 
*इस Motivational Story से आपको ये समझाना चाहते हैं की जिस प्रकार पत्र पढ़कर उसकी माँ ने अपने बेटे की सोच बदल दी। ठीक उसी प्रकार आप भी अपनी सोच बदल सकते है। आपसे फिर से कहेंगे – हम अपने बारे में क्या सोचते है। ये हमारी जिंदगी में बहुत मायने रखता है। इसलिए कुछ अच्छा और positive सोचिये। सोच बदल देगी जिंदगी।*

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# II रात्रि कहांनी ❣️❣️14/05/2020❣️❣️*🟠👉🏿भाग्य से बढ़कर पुरूषार्थ है➖*


राजा विक्रमादित्य के पास सामुद्रिक लक्षण जानने वाला एक ज्योतिषी पहुँचा। विक्रमादित्य का हाथ देखकर वह चिंतामग्न हो गया। उसके शास्त्र के अनुसार तो राजा दीन, दुर्बल और कंगाल होना चाहिए था, लेकिन वह तो सम्राट थे, स्वस्थ थे। लक्षणों में ऐसी विपरीत स्थिति संभवतः उसने पहली बार देखी थी। ज्योतिषी की दशा देखकर विक्रमादित्य उसकी मनोदशा समझ गए और बोले कि 'बाहरी लक्षणों से यदि आपको संतुष्टि न मिली हो तो छाती चीरकर दिखाता हूँ, भीतर के लक्षण भी देख लीजिए।' इस पर ज्योतिषी बोला - 'नहीं, महाराज! मैं समझ गया कि आप निर्भय हैं, पुरूषार्थी हैं, आपमें पूरी क्षमता है। इसीलिए आपने परिस्थितियों को अनुकूल बना लिया है और भाग्य पर विजय प्राप्त कर ली है। यह बात आज मेरी भी समझ में आ गई है कि 'युग मनुष्य को नहीं बनाता, बल्कि मनुष्य युग का निर्माण करने की क्षमता रखता है यदि उसमें पुरूषार्थ हो, क्योंकि एक पुरूषार्थी मनुष्य में ही हाथ की लकीरों को बदलने की सामर्थ्य होती है।'

अर्थात स्थिति एवं दशा मनुष्य का निर्माण नहीं करती, यह तो मनुष्य है जो स्थिति का निर्माण करता है। एक दास स्वतंत्र व्यक्ति हो सकता है और सम्राट एक दास बन सकता है। 

उपरोक्त प्रसंग से ये बातें प्रकाश में आती हैं- 

हम स्वयं परिस्थितियों को अनुकूल या प्रतिकूल बनाते हैं, अपने विचारों से, अपनी सोच से। जो व्यक्ति यह सोचता है कि वह निर्धन है, तो उसके विचार भी निर्धन होते हैं। विचारों की निर्धनता के कारण ही वह आर्थिक रूप से विपन्न होता है। यह विपन्नता उसे इस कदर लाचार कर देती है, कि उसे धरती पर बिखरी संपन्नता नजर ही नहीं आती। नजर आते हैं सिर्फ संपन्न लोग, उनके ठाठबाट और शानो-शौकत जो उसे कुंठित करते हैं, जबकि उनसे प्रेरणा लेकर वह भी संपन्न होने की कोशिश कर सकता है। अतः जरूरत है अपनी सोच में बदलाव लाने की। 

मन की स्थिती अजेय है, अपराजेय है। उसकी दृढ़ इच्छा-शक्ति मनुष्य को विवश कर देती है कि वह किसी की परवाह किए बिना अपने काम को जी-जान से पूरा करें, अपनी सामर्थ्य से उस काम को पूरा करे। 

मनुष्य निर्धनता और संपन्नता का सम्बन्ध भाग्य से जोड़ता है। वह सोचता है कि जो सौभाग्यशाली है, लक्ष्य उस पर प्रसन्न रहती है और बदकिस्मती का मारा कोशिश करने के बावजूद निर्धन ही बना रहता है। 

निष्कर्ष: 

सफलता की मुख्य शर्त है- पुरूषार्थ। पुरूषार्थ करने से ही 'सार्थक जीवन' बनता है, केवल भाग्यवादी रहकर नहीं। भाग्य तो अतीत में किए गए कर्मों के संचित फलों का भूल है, जो मनुष्य को सुखःदुःख के रूप में भोगने को मिलते हैं और वे फल भोगने के पश्चात क्षीण हो जाते हैं। विशेष बात यह है कि भोग करने का समय भी निश्चित नहीं है। ऐसी स्थिति में वह कब तक भाग्य के भरोसे सुख की प्रतीक्षा करता रहेगा? 

यथार्थ में पुरूषार्थ करने में ही जीवन की सफलता सुनिश्ति है, जबकी व्यक्ति भाग्य के सहारे निष्क्रियता को जन्म देकर अपने सुनहरे अवसर को नष्ट कर देता है। महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण यदि चाहते तो पांडवों को पलक झपकते ही विजय दिला देते, किन्तु वे नहीं चाहते थे कि बिना कर्म किए उन्हें यश मिले। उन्होंने अर्जुन को कर्मयोग का पाठ पढ़ाकर उसे युद्ध में संलग्न कराया और फिर विजय-श्री एवं कीर्ति दिलवाकर उसे लोक-परलोक में यशस्वी बनाया। 

*अतः आप विकास की नई-नई मंजिलें तय करने और उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुँचने के लिए अपने पुरूषार्थ को कभी शिथिल न होने दें और पूर्ण उत्साह के साथ आगे बढ़ते रहें।*

*पुरूषार्थ उसी में है जो संकट की घड़ी में निर्णय लेने में संकोच नहीं करता।*



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# II Night story ❣️❣️12/05/2020❣️❣️*प्रार्थना का xभाव🤲*

*एक संत जंगल से गुजरते हैं और एक आदमी को प्रार्थना करते देखते हैं,गड़रिया, गरीब आदमी,फटे चीथड़े पहने हुए,भगवान से प्रार्थना कर रहा है,महीनों से नहाया नहीं होगा,ऐसी दुर्गन्ध आ रही है !*
      *ऐसा आदमी नहीं देखा,वो भगवान से कह रहा है-हे भगवान !तू एक दफ़े मुझे बुला ले,ऐसी तेरी सेवा करूँगा कि तू भी खुश हो जाएगा,पाँव दबाने में मेरा कोई सानी नहीं,पैर तो मैं ऐसे दबाता हूँ,तेरा भी दिल बाग-बाग हो जाए और तुझे घिस-घिस के नहलाऊँगा और तेरे सिर में जुएँ पड़ गए होंगे तो उनको भी सफाई कर दूँगा*
     *संत तो बर्दाश्त के बाहर हो गया कि,“ये आदमी क्या कह रहा है ! मैं रोटी भी अच्छी बनाता हूँ,शाक-सब्जी भी अच्छी बनाता हूँ,रोज भोजन भी बना दूँगा. थका-माँदा आएगा,पैर भी दाब दूँगा,नहला भी दूँगा. तू एक दफ़े मुझे मौका तो दे !*
      *संत ने कहा“अब चुप !चुप अज्ञानी!तू क्या बातें कर रहा है ?तू किससे बातें कर रहा है भगवान से ?”और उस आदमी की आँख से आँसू बह गए,वो आदमी तो डर गया,उससे कहा-- “मुझे क्षमा करें,कोई गलत बात कही ?”*
       *संत ने कहा-गलत बात ! और क्या गलती हो सकती है भगवान को जुएँ पड़ गए !पिस्सू हो गए !उसका कोई पैर दबाने वाला नहीं ! उसका कोई भोजन बनाने वाला नहीं !तू भोजन बनाएगा ?और तू उसे घिस-घिस के धोएगा ?तूने बात क्या समझी है?भगवान कोई गड़रिया है ?*
      *वो गड़रिया रोने लगा,उसने संत के पैर पकड़ लिए,उसने कहा--मुझे क्षमा करो !मुझे क्या पता,मैं तो बेपढ़ा-लिखा गँवार हूँ,शास्त्र का कोई ज्ञान नहीं, अक्षर सीखा नहीं कभी, यहीं पहाड़ पर इसी जंगल में भेड़ों के साथ ही रहा हूँ, भेड़िया हूँ,मुझे क्षमा कर दो !अब कभी ऐसी भूल न करूँगा,मगर मुझे ठीक-ठीक प्रार्थना समझा दो !*
       *संत ने उसे ठीक-ठीक प्रार्थना समझाई,वो आदमी कहने लगा-ये तो बहुत कठिन है,ये तो मैं भूल ही जाऊँगा,ये तो मैं याद ही न रख सकूँगा,फिर से दोहरा दो !*
      *फिर से संत ने दोहरा दी,वो बड़े प्रसन्न हो रहे थे मन में कि एक आदमी को राह पर ले आए भटके हुए को !*
       *और जब संत जंगल की तरफ़ अपने रास्ते पे जाने लगे,बड़े प्रसन्न भाव से,तो उन्होंने बड़े जोर की आवाज में गर्जना सुनी आकाश में और भगवान की आवाज आई--महात्मन!मैंने तुझे दुनिया में भेजा था कि तू मुझे लोगों से जोड़ना,तूने तो तोड़ना शुरू कर दिया !*
         *अभी गड़रिए की घबड़ाने की बात थी,अब संत घबड़ा के बैठ गए,हाथ-पैर कांपने लगे,उन्होंने कहा -- क्या कह रहे हैं आप,मैंने तोड़ दिया!मैंने उसे ठीक-ठीक प्रार्थना समझाई !*
        *परमात्मा ने कहा--ठीक-ठीक प्रार्थना का क्या अर्थ होता है?ठीक शब्द?ठीक उच्चारण?ठीक भाषा?ठीक प्रार्थना का अर्थ होता है,हार्दिक भाव !*
       *वो आदमी अब कभी ठीक प्रार्थना न कर पाएगा,तूने उसके लिए सदा के लिएतोड़ दिया,उसकी प्रार्थना से मैं बड़ा खुश था !*
       *वो आदमी बड़ा सच्चा था,वो आदमी बड़े हृदय से ये बातें कहता था,रोज कहता था,मैं उसकी प्रतीक्षा करता था रोज कि कब गड़रिया प्रार्थना करेगा !*
        *इससे फर्क नहीं पड़ता कि हमारे शब्द क्या हैं !इससे ही फर्क पड़ता है कि हम क्या है. हमारे आँसू सम्मिलित होने चाहिए हमारे शब्दों में !*
       *जब हमारे शब्द हमारे आँसूओं से गीले होते हैं,तब उनमें हजार-हजार फूल खिल जाते है*
       
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#IIशुभरात्रि*11/05/2020*पाप कहाँ कहा तक जाता है ?*

एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते है, तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी !

अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है ?

तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए , ऋषि ने पूछा कि
भगवन जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ?

भगवन ने जहा कि चलो गंगा से ही पूछते है, दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा कि "हे गंगे ! जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुई !"

गंगा ने कहा "मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ !"

अब वे लोग समुद्र के पास गए, "हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए !" 
समुद्र ने कहा "मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ !" 
अब वे लोग बादल के पास गए और कहा "हे बादलो ! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते है, 
तो इसका मतलब आप पापी हुए !"

बादलों ने कहा "मैं क्यों पापी हुआ,
मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ , जिससे अन्न उपजता है, जिसको मानव खाता है, उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है, जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है , 
उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है !"

शायद इसीलिये कहते हैं ..”जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन”

अन्न को जिस वृत्ति ( कमाई ) से प्राप्त किया जाता है और जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, वैसे ही विचार मानव के बन जाते है !

*इसीलिये सदैव भोजन सिमरन और शांत अवस्था मे करना चाहिए और कम से कम अन्न जिस धन से* *खरीदा जाए वह धन ईमानदारी एवं श्रम का होना चाहिए !*

# I I रात्रि कहांनी ❣️❣️10/05/2020❣️❣️इश्वर पर विश्वास ll

एक अमीर इन्सान था, उसने समुद्र में अकेले धूमने के लिए एक नाव बनवाई छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर करने निकला। आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तुफान आया ।उसकी नाव पूरी तरह से तहस - नहस हो गई लेकिन वह लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र में कूद गया। जब तूफान शांत हुआ तब वह तैरता - तैरता एक टापू पर पहुंचा लेकिन वहाँ भी कोई नहीं था। टापू के चारों और समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।*
*उस आदमी ने सोचा कि जब मैने पूरी जिंदगी में किसी का भी बुरा नहीं किया तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ ?* 
*उस इंसान को लगा कि ईश्वर ने मौत से बचाया तो आगे का रास्ता भी वो ही बताएगा। धीरे - धीरे वह वहाँ पर उगे झाड़-फल-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा। अब धीरे - धीरे उसकी आस टूटने लगी, ईश्वर पर से उसका यकीन उठने लगा। फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यही इस टापू पर ही बितानी है तो क्यों न एक झोपडी बना लूँ. . . . ?*

*फिर उसने झाड़ की डालियों और पत्तों से एक छोटी सी झोपड़ी बनाई। उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपड़ी में सोने को मिलेगा आज से बाहर नहीं सोना पडेगा। रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला बिजलियाँ जोर - जोर से कडकने लगी, तभी अचानक एक बिजली उस झोपड़ी पर आ गिरी और झोपड़ी धधकते हुए जलने लगी। यह देखकर वह इंसान टूट गया। आसमान की तरफ देखकर बोला है भगवान ये तेरा कैसा इंसाफ है ? तूने मुझ पर अपनी रहम की नजर क्यूँ नहीं की ? फिर वह इंसान हताश होकर सर पर हाथ रखकर रो रहा था, कि अचानक एक नाव टापू के पास आई। नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये और बोले कि हम तुम्हें बचाने आये हैं। दूर से इस वीरान टापू में जलता हुआ झोपडा़ देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत में हैं। अगर तुम अपनी झोपड़ी नहीं जलाते तो हमे पता नहीं चलता कि टापू पर कोई हैं।*
*उस आदमी की आखों से आसूं गिरने लगे।*
*उसने ईश्वर से माफी मांगी और बोला कि है भगवान मुझे क्या पता था कि तूने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपड़ी जलाई थी।*

*यकीनन तू अपने भक्तों का हमेशा ख्याल रखता है। तूने मेरे सब्र का इम्तेहान लिया लेकिन मैं उसमें फेल हो गया। मुझे माफ कर दें ।*

*वो ईश्वर अपने भक्तों से दूर नहीं हैं। उसे सब पता है कि अपने भक्तों को कब और कैसे देना है, उसकी रहमतों की बरसात तो हर पल, हर घड़ी चौबीसों घंटे हो रही हैं बस कमी हैं तो हमारे विश्वास की। हमारा विश्वास ही है जो डगमगा जाता हैं। जब एक सांसारिक पिता ही अपने बच्चे को दुख तकलीफों में नहीं देख सकता हैं तो जिस पिता ने इस सृष्टि की रचना की हैं वो भला कैसे अपने बच्चों को बीच मझदार में छोड़ सकता हैं ।*
           
 *दिन चाहे सुख के हो या दुख के, प्रभु अपने भक्तों के साथ हमेशा रहता हैं।* 

 *और हां एक बात और जब वह व्यक्ति इतने महिने तक उस वीरान टापू पर फल , पत्ते आदि खाकर बिना बिस्तर के सोकर महिनों तक रह सकता है तो हम हमारे ही भले के लिए मनपसंद खाकर , मनपसंद बिस्तर पर सोकर क्या कुछ दिन घर पर नही रह सकते हैं* 
 *घर पर रहिए सुरक्षित रहिए*
🙏🌹🌷🌹🌷🙏

# IIरात्रि कहांनी ❣️❣️09/05/2020❤️❣️*💥ठोकर

परिवार के तीनों बेटे , बहू  और बच्चे बैठे हुए थे।  पिता ने ही बुलाया था सबको। सुबह ही सब जब काम पर और बच्चे स्कूल चले गए थे तब मझली बहू और सास की कहा -सुनी हो गई थी। 

"बच्चों , आप जानते हो कि मैंने तुम्हें यहाँ क्यों बुलाया है।  आज शाम का ही खाना सब साथ खाएंगे।  कल ही अपना-अपना इंतजाम कर लो घर को छोड़ दो। " पिता ने बहुत भारी मन से कहा।

"नहीं , आपको ऐसे छोड़कर कैसे जा सकते हैं ? जिसने गलती की है उसकी सजा हमें क्यों मिले ?" बड़ा बेटा बोला था। 

"हाँ , भैया सही कह रहे हैं।  मैं सबसे छोटा हूँ और माँ के बिना मेरा रहना संभव नहीं।  आखिर मेरी गलती क्या है ?" छोटे बेटे ने कहा था।  माँ चुपचाप सब सुन रही थी। 

"ठीक है , तू माँ के साथ रह ले , मैं पिताजी को साथ रख लूँगा।  जब मन करे तू आ जाना , पिताजी से मिलने। " बड़ा बेटा फिर बोला था।  इस बार माँ के होंठ कुछ बुदबुदाए थे। पिता ने माँ की और देखा और बोला - " कोई कहीं जाए मगर जानकी मेरे साथ रहेगी।  हम दोनों मर जाएंगे तो तीनों बाँट लेना इस घर को।  यही चाहिए तुम्हे।  मेरी पत्नी मेरे साथ आई थी मेरे साथ ही रहेगी और मैं ये बर्दाश्त नहीं कर सकता कि घर में कोई क्लेश हो।  अब तुम बड़े हो गए हो , अब घोंसला छोड़ ही देना चाहिए तुम्हें. तुम्हें रोक-टोक पसंद नहीं है , रहो आजाद और अपनी तरह से।  यही तो ज़माना है।  मगर हम तुम्हारे लिए बोझ बनकर नहीं जीना चाहते। " पिता बोले थे। 

"मैं कहीं नहीं जाउंगी।  यहीं रहूंगी।  माँ से खूब लड़ूंगी भी।  मेरी माँ नहीं है तो मुझे कौन सिखाता।  मुझे नहीं आता अकेले रहना।  अगर बाहर निकालेंगे तो मैं इनके भी साथ नहीं रहूंगी।  बिन माँ की बेटी हूँ मैं तो पिता जी आप इतने कठोर हो जाएंगे ? मुझे डांटिए , मारिये , मैंने गलती की है।  मेरी गलती की सजा सबको क्यों ? "और वह माँ के पैरों पर लोट गई। 

कुछ देर मौन छाया रहा। बहू की आँखें रोने से लाल हो चुकी थीं। वह माँ की गोद  में अपना सर घुसाए रो रही थी।  पिता जी ने इशारा किया।  माँ का हाथ बहू के सर पर आ गया था। 

"ठीक है , ये बिन माँ की है , इसकी गलती समझ आती है पर बहुओं को अपना फ़र्ज़ निभाना चाहिए था। माँ का अपमान हुआ क्यों ? क्या इसको समझाया नहीं जा सकता था ? तुम बराबर की गुनाहगार हो।  तुम्हें सजा मिलनी चाहिए  नालायक भी , जो हमें अलग करने चले थे। " पिता बोले थे। 

सभी दौड़ पड़े थे माँ की तरफ।  बाहों में भर लिया था माँ को। 

"मैं तुम्हारे पिता की बात को काट नहीं सकती।  उन्ही से कहो जो कहना है। " माँ ने गेंद पिता के पाले में फेंक दी थी। सब माँ को साथ लिए खड़े हो गए थे सिर झुकाये पिता के सामने। 

"कुछ कहिये न। "

"मैं जा रहा हूँ पार्क में।  सुबह का खाना तुम्हारे साथ ये मझली बनाएगी।  इसे खूब सा प्यार देती रहो। इसकी सजा इतनी ही है।  अगली बार गलती बर्दाश्त नहीं होगी।" और पिता बाहर निकल गए थे। 

"रुको मैं भी आती हूँ।  ठोकर खा बैठोगे गुस्से में। " माँ ने आवाज दी थी। 

"नहीं माँ , पिता जी गुस्सा पालना जानते हैं। उन्होंने हमारे अभिमान को ठोकर मार दी है। " बेटे एक स्वर में बोल पड़े थे।


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# II Night story ❣️❣️08/05/2020❣️❣️*🟠👉🏿इन्द्र और तोते की कथा➖*I I

 *देवराज इन्द्र और धर्मात्मा तोते की यह कथा महाभारत से है।कहानी कहती है,अगर किसी के साथ ने अच्छा वक्त दिखाया है तो बुरे वक्त में उसका साथ छोड़ देना ठीक नहीं।* 
          *एक शिकारी ने शिकार पर तीर चलाया। तीर पर सबसे खतरनाक जहर लगा हुआ था।पर निशाना चूक गया।तीर हिरण की जगह एक फले-फूले पेड़ में जा लगा।पेड़ में जहर फैला।वह सूखने लगा।उस पर रहने वाले सभी पक्षी एक-एक कर उसे छोड़ गए।पेड़ के कोटर में एक धर्मात्मा तोता बहुत बरसों से रहा करता था। तोता पेड़ छोड़ कर नहीं गया,बल्कि अब तो वह ज्यादातर समय पेड़ पर ही रहता।दाना-पानी न मिलने से तोता भी सूख कर काँटा हुआ जा रहा था।बात देवराज इन्द्र तक पहुँची। मरते वृक्ष के लिए अपने प्राण दे रहे तोते को देखने के लिए इन्द्र स्वयं वहाँ आए।*
       *धर्मात्मा तोते ने उन्हें पहली नजर में ही पहचान लिया।इन्द्र ने कहा,देखो भाई इस पेड़ पर न पत्ते हैं, न फूल,न फल।अब इसके दोबारा हरे होने की कौन कहे,बचने की भी कोई उम्मीद नहीं है।जंगल में कई ऐसे पेड़ हैं,जिनके बड़े-बड़े कोटर पत्तों से ढके हैं।पेड़ फल-फूल से भी लदे हैं।वहाँ से सरोवर भी पास है।तुम इस पेड़ पर क्या कर रहे हो,वहाँ क्यों नहीं चले जाते ?तोते ने जवाब दिया,देवराज,मैं इसी पर जन्मा,इसी पर बढ़ा,इसके मीठे फल खाए।इसने मुझे दुश्मनों से कई बार बचाया। इसके साथ मैंने सुख भोगे हैं।आज इस पर बुरा वक्त आया तो मैं अपने सुख के लिए इसे त्याग दूँ।जिसके साथ सुख भोगे,दुख भी उसके साथ भोगूँगा,मुझे इसमें आनन्द है।आप देवता होकर भी मुझे ऐसी बुरी सलाह क्यों दे रहे हैं ?' यह कह कर तोते ने तो जैसे इन्द्र की बोलती ही बन्द कर दी।तोते की दो-टूक सुन कर इन्द्र प्रसन्न हुए,बोल,मैं तुमसे प्रसन्न हूँ।कोई वर मांग लो।तोता बोला,मेरे इस प्यारे पेड़ को पहले की तरह ही हरा-भरा कर दीजिए।देवराज ने पेड़ को न सिर्फ अमृत से सींच दिया,बल्कि उस पर अमृत बरसाया भी।पेड़ में नई कोपलें फूटीं।वह पहले की तरह हरा हो गया,उसमें खूब फल भी लग गए।तोता उस पर बहुत दिनों तक रहा,मरने के बाद देवलोक को चला गया।*
          *युधिष्ठिर को यह कथा सुना कर भीष्म बोले,अपने आश्रयदाता के दुख को जो अपना दुख समझता है,उसके कष्ट मिटाने स्वयं ईश्वर आते हैं।बुरे वक्त में व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाता है। जो उस समय उसका साथ देता है,उसके लिए वह अपने प्राणों की बाजी लगा देता है।किसी के सुख के साथी बनो न बनो,दुख के साथी जरूर बनो।यही धर्मनीति है और कूटनीति भी*
     

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II रात्रि कहानी ❣️❣️07/05/2020❣️❣️*विश्वासघात सबसे बड़ा छल होता है! II


अंधे धृतराष्ट्र ने क्यों गंवाए सौ पुत्र- श्रीकृष्ण का उत्तर:-
महाभारत युद्ध समाप्त होने पर धृतराष्ट्र ने श्रीकृष्ण से पूछा- मैं अंधा पैदा हुआ, सौ पुत्र मारे गए भगवन मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है जिसकी सजा मिल रही है. श्रीकृष्ण ने बताना शुरू किया- पिछले जन्म में आप एक राजा थे. आपके राज्य में एक तपस्वी ब्राह्मण थे. उनके पास हंसों का एक जोड़ा था जिसके चार बच्चे थे.

ब्राह्मण को तीर्थयात्रा पर जाना था लेकिन हंसों की चिंता में वह जा नहीं पा रहे थे. उसने अपनी चिंता एक साधु को बताई. साधु ने कहा- तीर्थ में हंसों को बाधक बताकर हंसों का अगला जन्म खराब क्यों करते हो. राजा प्रजापालक होता है. तुम और तुम्हारे हंस दोनों उसकी प्रजा हो. हंसों को राजा के संरक्षण में रखकर तीर्थ को जाओ.

ब्राह्मण हंस और उसके बच्चे आपके पास रखकर तीर्थ को गए. आपको एक दिन मांस खाने की इच्छा हुई. आपने सोचा सभी जीवों का मांस खाया है पर हंस का मांस नहीं खाया. आपने हंस के दो बच्चे भूनकर खा लिए. आपको हंस के मांस का स्वाद लग गया. हंस के एक-एक कर सौ बच्चे हुए और आप सबको खाते गए.अंततः हंस का जोड़ा मर गया.

कई साल बाद वह ब्राह्मण लौटा और हंसों के बारे में पूछा तो आपने कह दिया कि हंस बीमार होकर मर गए. आपने तीर्थयात्रा पर गए उस व्यक्ति के साथ विश्वासघात किया जिसने आप पर अंधविश्वास किया था. आपने प्रजा की धरोहर में डाका डालकर राजधर्म भी नहीं निभाया.

जिह्वा के लालच में पड़कर हंस के सौ बच्चे भूनकर खाने के पाप से आपके सौ पुत्र हुए जो लालच में पड़कर मारे गए. आप पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले से झूठ बोलने और राजधर्म का पालन नहीं करने के कारण आप अंधे और राजकाज में विफल व्यक्ति हो गए.

*श्रीकृष्ण ने कहा- सबसे बड़ा छल होता है विश्वासघात. आप उसी पाप का फल भोग रहे हैं..!!*


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#BRAHMAKUMARIES I I ON 10TH MAY 2020 8PM TO 9:30 PM Releasing 1st time on tv channel "Peace of Mind ( OM SHANTI)


ON 10TH MAY 2020 8PM TO 9:30 PM Releasing 1st time on tv channel "Peace of Mind.







# Brahmakumaries II Night story ❣️❣️05/05/2020❣️❣️ *🌸एक कहानी मुझे याद आती है।🌸*I| ( OM SHANTI)

💙एक घर में बहुत दिनों से एक वीणा रखी थी। उस घर के लोग भूल गए थे, उस वीणा का उपयोग। पीढ़ियों पहले कभी कोई उस वीणा को बजाता रहा होगा। अब तो कभी कोई भूल से बच्चा उसके तार छेड़ देता था तो घर के लोग नाराज होते थे। कभी कोई बिल्ली छलांग लगा कर उस वीणा को गिरा देती तो आधी रात में उसके तार झनझना जाते, घर के लोगों की नींद टूट जाती। वह वीणा एक उपद्रव का कारण हो गई थी। अंततः उस घर के लोगों ने एक दिन तय किया कि इस वीणा को फेंक दें -जगह घेरती है, कचरा इकट्ठा करती है और शांति में बाधा डालती है। वह उस वीणा को घर के बाहर कूड़े घर पर फेंक आए।_

_🔸वह लौट ही नहीं पाए थे फेंक कर कि एक भिखारी गुजरता था, उसने वह वीणा उठा ली और उसके तारों को छेड़ दिया। वे ठिठक कर खड़े हो गए, वापस लौट गए। उस रास्ते के किनारे जो भी निकला, वे ठहर गया। घरों में जो लोग थे, वे बाहर आ गए। वहां भीड़ लग गई। वह भिखारी मंत्रमुग्ध हो उस वीणा को बजा रहा था। जब उन्हें वीणा का स्वर और संगीत मालूम पड़ा और जैसे ही उस भिखारी ने बजाना बंद किया है, वे घर के लोग उस भिखारी से बोलेः वीणा हमें लौटा दो। वीणा हमारी है। उस भिखारी ने कहाः वीणा उसकी है जो बजाना जानता है, और तुम फेंक चुके हो। तब वे लड़ने-झगड़ने लगे। उन्होंने कहा, हमें वीणा वापस चाहिए। उस भिखारी ने कहाः फिर कचरा इकट्ठा होगा, फिर जगह घेरेगी, फिर कोई बच्चा उसके तारों को छेड़ेगा और घर की शांति भंग होगी। वीणा घर की शांति भंग भी कर सकती है, यदि बजाना न आता हो। वीणा घर की शांति को गहरा भी कर सकती है, यदि बजाना आता हो। सब कुछ बजाने पर निर्भर करता है।_

_🔸जीवन भी एक वीणा है और सब कुछ बजाने पर निर्भर करता है। जीवन हम सबको मिल जाता है, लेकिन उस जीवन की वीणा को बजाना बहुत कम लोग सीख पाते हैं। इसीलिए इतनी उदासी है, इतना दुख है, इतनी पीड़ा है। इसीलिए जगत में इतना अंधेरा है, इतनी हिंसा है, इतनी घृणा है। इसलिए जगत में इतना युद्ध है, इतना वैमनस्य है, इतनी शत्रुता है। जो संगीत बन सकता था जीवन, वह विसंगीत बन गया है क्योंकि बजाना हम उसे नहीं जानते हैं।_

              *🌟🔸ओम शान्ति 🔸🌟*

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# BRAHMAKUMARIS II रात्रि कहांनी ❣️❣️04/05/2020❣️❣️ *👉🏿हर जगह भगवान मिलेंगे➖*I I(OM SHANTI)

एक व्यक्ति बहुत नास्तिक था... उसको भगवान पर विश्वास नहीं था...एक बार उसके साथ दुर्घटना घटित हुई.. वो रोड पर पड़ा पड़ा सब की ओर कातर निगाहों से मदद के लिए देख रहा था,पर कलियुग का इंसान - किसी इंसान की मदद जल्दी नहीं करता,मालूम नहीं क्यों, वो यही सोच कर थक गया... तभी उसके नास्तिक मन ने अनमने  मन से प्रभु को गुहार लगाई...उसी समय एक ठेलेवाला वहां से गुजरा उसने उसको गोद में उठाया और चिकित्सा हेतु ले गया उसने उनके परिवार वालो को फ़ोन किया और अस्पताल बुलाया सभी आये उस व्यक्ति को बहुत धन्यवाद दिया...और  उसके घर का पता भी लिखवा लिया जब यह ठीक हो जायेगा तो आप से मिलने आयेंगे  !*

*वो सज्जन सही हो गए... कुछ दिन बाद वो अपने परिवार के साथ उस व्यक्ति से मिलने का इरादा बनाते है और निकल पड़ते है मिलने |वो बाँके बिहारी का नाम पूछते हुए उस पते पर जाते है उनको वहा पर प्रभु का मंदिर मिलता है, वो अचंभित से उस भवन को देखते है, और उसके अन्दर चले जाते  है !*
*तभी भी वहा पर पुजारी से नाम लेकर पूछते है की यह बाँके बिहारी कहा मिलेगा -पुजारी हाथ जोड़ मूर्ति की ओर इशारा कर के कहता है की यहाँ यही एक बाँके बिहारी है !*
*खैर वो मंदिर से लौटने लगते है तो उनकी निगाह एक बोर्ड पर पड़ती है उसमे एक वाक्य लिखा दिखता है - कि*
*इंसान ही इंसान के काम आता है, उस से प्रेम करते रहो मै तो तुम्हे स्वयं मिल जाऊंगा...*
                              


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#Brahmakumaries I l *💠::-संकल्प शक्ति के फायदे-:: 💠*ll ( OM SHANTI)

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*1-संकल्प शक्ति से मंशा सेवा कर सकते हैं ।* 
*2-संकल्प शक्ति से आत्माओं की बुद्धि का परिवर्तन कर सकते हैं।*
*3- संकल्प शक्ति से दुखी व अशांत आत्माओं को शांति व शक्ति की अंजली दे सकते हैं।* 
*4- संकल्प शक्ति से व्यर्थ को समर्थ कर सकते हैं।*
*5- संकल्प शक्ति से परमधाम घर की यात्रा कर सकते हैं।*
*6- संकल्प शक्ति अपने कर्मियों को शीतल व शांत बना सकते हैं।* 
*7- संकल्प शक्ति से प्रकृति को भी अपनी बात मनवा सकते हैं।*
*8- संकल्प शक्ति से अन्य  आत्माओं को भी अपनी बात  मनवा  सकते हैं।* 
*9- संकल्प शक्ति से सृष्टि रच सकते हैं।*
*10- संकल्प शक्ति से भोगी  कोई योगी बना सकते हैं।* 
*11- संकल्प शक्ति से अन्य शक्तियां निर्णय करने की, सामना करने की, परखने की अनेक शक्तियां आ जाती है।* 
*12- संकल्प शक्ति से अनेक आत्माओं के बंधनों को छुड़ा सकते हैं॥*
*13- संकल्प शक्ति से मन को एकाग्र कर सकते हैं ।*
*14-संकल्प शक्ति से बुद्धि को परमात्मा की याद  में लगा सकते हैं।*

              *🔹✨ओम शान्ति ✨🔹*

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#BRAHMAKUMARIES I I Night story ❣️❣️03/05/2020❣️❣️ *👉🏿" मनुष्य-जीवन की सफलता I I (OM SHANTI)

*" करना कब पूरा होगा?—आप लोग ध्यान देकर सुनें, बहुत बढ़िया बात है। "*_

    _*' करना तब पूरा होगा, जब अपने लिये कुछ नहीं करेंगे। '* अपने लिये करनेसे करना कभी पूरा होगा ही नहीं, सम्भव ही नहीं। कारण कि करनेका आरम्भ और समाप्ति होती है और आप वही रहते हैं। अतः अपने लिये करनेसे करना बाकी रहेगा ही। करना बाकी कब नहीं रहेगा? *जब अपने लिये न करके दूसरोंके लिये ही करेंगे।*_

    _घरमें रहना है तो घरवालोंकी प्रसन्नताके लिये रहना है। अपने लिये घरमें नहीं रहना है। समाजमें रहना है तो समाजवालोंके लिये रहना है, अपने लिये नहीं। माँ है तो माँके लिये मैं हूँ, मेरे लिये माँ नहीं। माँकी सेवा करनेके लिये, माँकी प्रसन्नताके लिये मैं हूँ; इसलिये नहीं कि माँ मेरेको रुपया दे दे, गहना दे दे, पूँजी दे दे। *यहाँ से आप शुरू करो*।_

   _स्त्रीके लिये मैं हूँ, मेरे लिये स्त्री नहीं। मेरे को स्त्री से कोई मतलब नहीं। उसके पालन-पोषणके लिये, गहने-कपड़ोंके लिये, उसके हित के लिये, उसके सुखके लिये ही मेरेको रहना है। मेरे लिये स्त्रीकी जरूरत नहीं। बेटोंके लिये ही मैं हूँ, मेरे लिये बेटे नहीं।_

     _इस तरह अपने लिये कुछ करना नहीं होगा, तब कृतकृत्य हो जाओगे। परन्तु यदि अपने लिये धन भी चाहिये, अपने लिये माँ-बाप चाहिये, अपने लिये स्त्री चाहिये, अपने लिये भाई चाहिये तो अनन्त जन्मोंतक करना पूरा नहीं होगा। अपने लिये करनेवाले का करना कभी पूरा होता ही नहीं, होगा ही नहीं, हुआ ही नहीं, हो सकता ही नहीं। इसमें आप सबका अनुभव बताता हूँ।_

    _*एक साधुकी बात सुनी। कुछ साधु बद्रीनारायण गये थे।* वहाँ एक साधुकी अँगुलीमें पीड़ा हो गयी, तो किसीने कहा कि आप पीड़ा भोगते हो, यहाँ अस्पताल है, सबका मुफ्तमें इलाज होता है। आप जा करके पट्‌टी बँधवा लो। उस साधुने उत्तर दिया कि *यह पीड़ा तो मैं भोग लूँगा, पर मैं किसीको पट्टी बाँधनेके लिये कहूँ—यह पीड़ा मैं नहीं सह सकूँगा!* ऐसे त्याग का उदाहरण भी मेरेको यह एक ही मिला, और कोई उदाहरण नहीं मिला मेरेको।_

    _मेरेको यह बात इतनी बढ़िया लगी कि वास्तवमें यही *साधुपना है, यही मनुष्यपना है।* जैसे कुत्ता टुकड़ेके लिये फिरे, ऐसे जगह-जगह फिरनेवालेमें मनुष्यपना ही नहीं है, साधुपना तो दूर रहा।_

    _सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका) गृहस्थी थे, पर वे भी कहते कि *भजन करना हो तो मनसे पूछे कि कुछ चाहिये?* तो कहे कि कुछ नहीं चाहिये। ऐसा कहकर फिर भजन करे। जब गृहस्थाश्रममें रहनेवाले भी यह बात कह रहे हैं, तो फिर साधुको क्या चाहिये?_

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_*" हमारे लिये कुछ चाहिये यही मरण है "*।_

_*करना* तो *दूसरोंके लिये* है और *जानना खुदको* है। खुदको जान जाओ तो जानना बाकी नहीं रहेगा। खुदको नहीं जानोगे तो कितनी ही विद्याएँ पढ़ लो, कितनी ही लिपियाँ पढ़ लो, कितनी ही भाषाओंका ज्ञान कर लो, कितने ही शास्त्रोंका ज्ञान कर लो, पर जानना बाकी ही रहेगा।_

   _स्वयंको साक्षात् कर लिया, *स्वरूपका बोध हो गया*, तो फिर जानना बाकी नहीं रहेगा। *ऐसे ही परमात्माकी प्राप्ति हो गयी*, तो फिर कुछ प्राप्त करना बाकी नहीं रहेगा।_

   _*दूसरोंके लिये करना, स्वरूपको जानना और परमात्माको पाना*—इन तीनोंके सिवा आप कुछ नहीं कर सकते, कुछ नहीं जान सकते और कुछ नहीं पा सकते। कारण कि इन तीनोंके सिवा आप कुछ भी करोगे, कुछ भी जानोगे और कुछ भी पाओगे, तो वह सदा आपके साथ नहीं रहेगा और न आप उसके साथ सदा रहोगे। जो सदा साथ न रहे, उसको करना, जानना और पाना केवल वहम ही है।_

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# Brahmakumaries II रात्रि कहानी ❣️❣️02/05/2020❣️❣️प्रेरक कहा़नी II ( OM SHANTI)


यह कहानी संत के ज्ञान को दर्शाने वाली कथा है क्युकि हमेशा ही ये माना जाता है की संत, गुरु, साधू और मुनि महाराज के पास उन सभी सांसारिक... समस्याओ का तुरंत हल मिल जाता है जिसके बारे में आज लोग और गृहस्थी हमेशा से ही परेशान रहते है | 

समाज में साधू,संत,गुरु और मुनि ही हर समस्या की एक मात्र चाबी माने जाते रहे है और यह सही भी है की इनके पास जाने मात्र से ही हमारे मन को शांति प्राप्त हो जाती है और फिर जब इनके दो सांत्वना भरे बोल या ज्ञान बढ़ाने वाले शब्द जब हमारे कान में जाते है तो जेसे अन्दर तक आत्मा को ठंडक पहुंचती हैl

इसलिए आज एक ऐसी ही कहानी लेकर आया हूँ जिससे आप गुरु की महिमा को समझ ही जायेंगे की क्यों और कैसे ये सभी विद्धवान जन तुरंत ही हरेक के मन की समस्या का समाधान कर देते है।

एक बार गोमल सेठ अपनी दुकान पर बेठे थे दोपहर का समय था इसलिए कोई ग्राहक भी नहीं था तो वो थोडा सुस्ताने लगे इतने में ही एक संत भिक्षुक भिक्षा लेने के लिए दुकान पर आ पहुचे।

और सेठ जी को आवाज लगाई कुछ देने के लिए... 

सेठजी ने देखा कि इस समय कौन आया है ? 

जब उठकर देखा तो एक संत याचना कर रहा था।

सेठ बड़ा ही दयालु था वह तुरंत उठा और दान देने के लिए कटोरी चावल बोरी में से निकाला और संत के पास आकर उनको चावल दे दिया।

संत ने सेठ जी को बहुत बहुत आशीर्वाद और दुवाए दी।

तब सेठजी ने संत से हाथ जोड़कर बड़े ही विनम्र भाव से कहा कि 

 हे गुरुजन आपको मेरा प्रणाम मैं आपसे अपने मन में उठी शंका का समाधान पूछना चाहता हूँ।

संत ने कहा की जरुर पूछो -

तब सेठ जी ने कहा की लोग आपस में लड़ते क्यों है ? 

संत ने सेठजी के इतना पूछते ही शांत स्वभाव और वाणी में कहा की 

सेठ मै तुम्हारे पास भिक्षा लेने के लिए आया हूँ तुम्हारे इस प्रकार के मूर्खता पूर्वक सवालो के जवाब देने नहीं आया हूँ।

संत के मुख से इतना सुनते ही सेठ जी को क्रोध आ गया और मन में सोचने लगे की यह कैसा घमंडी और असभ्य संत है ? 
ये तो बड़ा ही कृतघ्न है एक तरफ मैंने इनको दान दिया और ये मेरे को ही इस प्रकार की बात बोल रहे है इनकी इतनी हिम्मत 

और ये सोच कर सेठजी को बहुत ही गुस्सा आ गया और वो काफी देर तक उस संत को खरी खोटी सुनाते रहे 
और जब अपने मन की पूरी भड़ास निकाल चुके 
तब कुछ शांत हुए तब संत ने बड़े ही शांत और स्थिर भाव से कहा की

जैसे ही मैंने कुछ बोला आपको गुस्सा आ गया और आप गुस्से से भर गए और लगे जोर जोर से बोलने और चिल्लाने लगे।

वास्तव में केवल विवेकहीनता ही सभी झगडे का मूल होता है यदि सभी लोग विवेकी हो जाये तो अपने गुस्से पर काबू रख सकेंगे या हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना सीख जाये तो दुनिया में झगडे ही कभी न होंगे !!!

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# BRAHMAKUMARIES I I रात्रि कहांनी ❣️❣️01/05/2020❣️❣️इश्वर पर विश्वास II ( OM SHANTI)

*एक अमीर इन्सान था, उसने समुद्र में अकेले धूमने के लिए एक नाव बनवाई छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर करने निकला। आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तुफान आया ।उसकी नाव पूरी तरह से तहस - नहस हो गई लेकिन वह लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र में कूद गया। जब तूफान शांत हुआ तब वह तैरता - तैरता एक टापू पर पहुंचा लेकिन वहाँ भी कोई नहीं था। टापू के चारों और समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।*
*उस आदमी ने सोचा कि जब मैने पूरी जिंदगी में किसी का भी बुरा नहीं किया तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ ?* 
*उस इंसान को लगा कि ईश्वर ने मौत से बचाया तो आगे का रास्ता भी वो ही बताएगा। धीरे - धीरे वह वहाँ पर उगे झाड़-फल-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा। अब धीरे - धीरे उसकी आस टूटने लगी, ईश्वर पर से उसका यकीन उठने लगा। फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यही इस टापू पर ही बितानी है तो क्यों न एक झोपडी बना लूँ. . . . ?*

*फिर उसने झाड़ की डालियों और पत्तों से एक छोटी सी झोपड़ी बनाई। उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपड़ी में सोने को मिलेगा आज से बाहर नहीं सोना पडेगा। रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला बिजलियाँ जोर - जोर से कडकने लगी, तभी अचानक एक बिजली उस झोपड़ी पर आ गिरी और झोपड़ी धधकते हुए जलने लगी। यह देखकर वह इंसान टूट गया। आसमान की तरफ देखकर बोला है भगवान ये तेरा कैसा इंसाफ है ? तूने मुझ पर अपनी रहम की नजर क्यूँ नहीं की ? फिर वह इंसान हताश होकर सर पर हाथ रखकर रो रहा था, कि अचानक एक नाव टापू के पास आई। नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये और बोले कि हम तुम्हें बचाने आये हैं। दूर से इस वीरान टापू में जलता हुआ झोपडा़ देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत में हैं। अगर तुम अपनी झोपड़ी नहीं जलाते तो हमे पता नहीं चलता कि टापू पर कोई हैं।*
*उस आदमी की आखों से आसूं गिरने लगे।*
*उसने ईश्वर से माफी मांगी और बोला कि है भगवान मुझे क्या पता था कि तूने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपड़ी जलाई थी।*

*यकीनन तू अपने भक्तों का हमेशा ख्याल रखता है। तूने मेरे सब्र का इम्तेहान लिया लेकिन मैं उसमें फेल हो गया। मुझे माफ कर दें ।*

*वो ईश्वर अपने भक्तों से दूर नहीं हैं। उसे सब पता है कि अपने भक्तों को कब और कैसे देना है, उसकी रहमतों की बरसात तो हर पल, हर घड़ी चौबीसों घंटे हो रही हैं बस कमी हैं तो हमारे विश्वास की। हमारा विश्वास ही है जो डगमगा जाता हैं। जब एक सांसारिक पिता ही अपने बच्चे को दुख तकलीफों में नहीं देख सकता हैं तो जिस पिता ने इस सृष्टि की रचना की हैं वो भला कैसे अपने बच्चों को बीच मझदार में छोड़ सकता हैं ।*
           
 *दिन चाहे सुख के हो या दुख के, प्रभु अपने भक्तों के साथ हमेशा रहता हैं।* 

 *और हां एक बात और जब वह व्यक्ति इतने महिने तक उस वीरान टापू पर फल , पत्ते आदि खाकर बिना बिस्तर के सोकर महिनों तक रह सकता है तो हम हमारे ही भले के लिए मनपसंद खाकर , मनपसंद बिस्तर पर सोकर क्या कुछ दिन घर पर नही रह सकते हैं* 
 *घर पर रहिए सुरक्षित रहिए*
🙏🌹🌷OM SHANTI🌹🌷🙏

# I I रात्रि कहानी ❣️❣️30/04/2020❣️❣️*विश्वासघात सबसे बड़ा छल होता है! II

अंधे धृतराष्ट्र ने क्यों गंवाए सौ पुत्र- श्रीकृष्ण का उत्तर:-
महाभारत युद्ध समाप्त होने पर धृतराष्ट्र ने श्रीकृष्ण से पूछा- मैं अंधा पैदा हुआ, सौ पुत्र मारे गए भगवन मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है जिसकी सजा मिल रही है. श्रीकृष्ण ने बताना शुरू किया- पिछले जन्म में आप एक राजा थे. आपके राज्य में एक तपस्वी ब्राह्मण थे. उनके पास हंसों का एक जोड़ा था जिसके चार बच्चे थे.
ब्राह्मण को तीर्थयात्रा पर जाना था लेकिन हंसों की चिंता में वह जा नहीं पा रहे थे. उसने अपनी चिंता एक साधु को बताई. साधु ने कहा- तीर्थ में हंसों को बाधक बताकर हंसों का अगला जन्म खराब क्यों करते हो. राजा प्रजापालक होता है. तुम और तुम्हारे हंस दोनों उसकी प्रजा हो. हंसों को राजा के संरक्षण में रखकर तीर्थ को जाओ.

ब्राह्मण हंस और उसके बच्चे आपके पास रखकर तीर्थ को गए. आपको एक दिन मांस खाने की इच्छा हुई. आपने सोचा सभी जीवों का मांस खाया है पर हंस का मांस नहीं खाया. आपने हंस के दो बच्चे भूनकर खा लिए. आपको हंस के मांस का स्वाद लग गया. हंस के एक-एक कर सौ बच्चे हुए और आप सबको खाते गए.अंततः हंस का जोड़ा मर गया.

कई साल बाद वह ब्राह्मण लौटा और हंसों के बारे में पूछा तो आपने कह दिया कि हंस बीमार होकर मर गए. आपने तीर्थयात्रा पर गए उस व्यक्ति के साथ विश्वासघात किया जिसने आप पर अंधविश्वास किया था. आपने प्रजा की धरोहर में डाका डालकर राजधर्म भी नहीं निभाया.

जिह्वा के लालच में पड़कर हंस के सौ बच्चे भूनकर खाने के पाप से आपके सौ पुत्र हुए जो लालच में पड़कर मारे गए. आप पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले से झूठ बोलने और राजधर्म का पालन नहीं करने के कारण आप अंधे और राजकाज में विफल व्यक्ति हो गए.

*श्रीकृष्ण ने कहा- सबसे बड़ा छल होता है विश्वासघात. आप उसी पाप का फल भोग रहे हैं..!!*


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# BRAHMAKUMARIES I I रात्रि कहांनी ❣️❣️29/04/2020❣️❣️*जाको राखे साईंया मार सके ना कोई* I I. ( OM SHANTI)

किशोर का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था।उसके पिता  नगर के प्रसिद्ध सेठ थे।  परिवार में कोई कमी नहीं थी।  
किशोर के दो बड़े भाई थे जो पिता के व्यवसाय में उनका हाथ बटाते थे। किन्तु किशोर के लिए सब कुछ ठीक नहीं था।  किशोर जन्म से ही नैत्र हीन था इस कारण उसका सारा जीवन घर में ही व्यतीत हुआ था।  उसको घर में ही सभी सुख-साधन उपलब्ध रहते थे, नेत्रहीनता के अतिरिक्त किशोर के लिए एक और कष्टकारी स्थिति थी वह यह कि उसकी माँ का निधनछोटी उम्र में ही हो गया था। यद्धपि किशोर के पिता और उसके भाई उससे अत्यधिक प्रेम करते थे और उसकी सुख-सुविधा का पूर्ण ध्यान रखते थे किन्तु व्यापार की व्यस्तता के चलते वह घर में अधिक समय नहीं दे पाते थे किशोर का जीवन सेवकों के सहारे ही चल रहा था जिस कारण किशोर के मन में विरक्ति उत्त्पन्न होने लगी। वह ठाकुर जी के ध्यान में लीन रहने लगा। धीरे-धीर ठाकुर जी के प्रति उसकी भक्ति बढ़ती चली गई।अब उसका सारा समय ठाकुर जी के ध्यान और भजन-कीर्तन में व्यतीत होने लगा। उसके पिता और उसके भाइयों को इससे कोई आपत्ति नही थी, उन्होंने उसको कभी इस कार्य से नहीं रोका। किन्तु समय की गति को कौन रोक सकता है।  समय आने पर दोनों बड़े भाइयों का विवाह हो गया, आरम्भ में तो सब ठीक रहा किन्तु धीरे-धीरे किशोर की भाभीयों को किशोर अखरने लगा। किशोर भी अब युवा हो चला था। उसकी दोनों भाभी किशोर की सेवा करना बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी।  पहले तो वह इस  बात को मन में छुपाये रहीं किन्तु धीरे-धीरे इस बात ने किशोर के प्रति ईर्ष्या का भाव ले लिया।अपनी भाभी की इन भावनाओं से अनभिज्ञ किशोर उनमे अपनी माँ का रूप देखता था और सोंचता था की उसकी माँ की कमी अब पूर्ण हो गई है। धीरे-धीरे ईर्ष्या विकराल रूपों धारण करती जा रही थी। समय की बात कुछ दिनों बाद किशोर के पिता का भी देहांत हो गया, अब किशोर पूर्ण रूप से अपने भाई और भाभी पर ही निर्भर हो गया था।उसके भाइयों का प्रेम अब भी उसके प्रति वैसा ही बना रहा।  किन्तु कहते है कि त्रियाचरित के आगे किसी की नहीं चलती। अवसर देख किशोर की भाभीयों ने अपने पतियों को किशोर के विरूद्ध भड़काना आरम्भ कर दिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया उनका षड्यंत्र बढ़ता गया, अंततः वह दिन भी आ गया जब जी किशोर के भाई भी पूर्ण रूप से किशोर की विरुद्ध हो गए, अब उनको भी किशोर अखरने लगा था।इस सब बातो से अनभिज्ञ सहज, सरल हृदय किशोर अब भी ठाकुर जी की भक्ति में ही लीन रहता था, वह अपने भाइयों और  भाभीयों के प्रति मन में किसी प्रकार की शंका नहीं रखता था।  किन्तु ऐसा कब तक चलता आखिर एक दिन भाइयों की पत्नियों ने अपने पतियों को समझाया की इस नेत्रहीन के मोह में क्यों फंसे हो, इससे मुक्ति प्राप्त करो अन्यथा एक दिन तुमको अपनी सम्पति इसके साथ बाँटनी पड़ेगी, इस संपत्ति पर इसका अधिकार ही क्या है, इसने जीवन भर करा ही क्या है, यह जो भी कुछ है सब तुम्हारे परिश्रम का ही परिणाम है फिर आखिर इसको क्यों दी जाये। भाइयों के मन में कपट घर कर गया एक दिन सब मिल कर किशोर से कहा की अब हम तुम्हारा बोझ और अधिक नहीं उठा सकते इसलिए हम तुम्हारा रहने खाने का प्रबंध कही और कर रहे हैं, अब तुम वही रहा करो।  तुमको समय पर खाना कपडे और अन्य आवश्यक सामग्री मिलती रहेगी, तुमको किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होने देंगे। अपने भाइयों के मुख से अनायास ही इस प्रकार की बात सुन कर किशोर अवाक् रह गया।  वह नहीं समझ सका की वह के बोले, उसकी आँखों से झर-झर अश्रु बह निकले, किन्तु वह कुछ भी बोल पाने की स्तिथि में नहीं रहा। अन्तः स्वयं की संयत करते हुए वह बोला। भाई आप ने मेरे लिए जो निर्णय लिया है वह निश्चित रूप से मेरे अच्छे के लिए ही होगा, किन्तु बस इतना तो बता दो की मेरा अपराध क्या है, बस यही कि में नैत्रहीन हूँ, किन्तु इसमें मेरा क्या दोष। यह तो प्रभु की इच्छा है, और भाई अब तक आपने मुझको इतना प्रेम किया फिर अनायास यह क्या हुआ। भाइयों के पास कोई उत्तर नहीं था। वह उसको छोड़ कर चले गए। अब किशोर पूर्ण रूप से अनाथ हो चुका था। किन्तु ऐसा नहीं था जिसका कोई नहीं होता उसके भगवान होते है और फिर किशोर तो ठाकुर जी का दीवाना था फिर वह भला कैसे अनाथ हो सकता था। दुःखी मन किशोर ठाकुर जी के ध्यान में खो गया उसके मन से स्वर निकल उठे। 

है गिरधर गोपाल, करुणा सिंधु कृपाल। 
भक्तवत्सल, सबके सम्बल, मोहे लीजो सम्भाल।।
हरी में नैन हीन तुम नैना। 
निर्बल के बल, दीन के बंधु। 
कृपा मोह पे कर देना।।

अगले ही दिन किशोर के रहने का प्रबन्ध एक अन्य स्थान पर कर दिया गया, वह स्थान एकदम वीरान था, ना किसी का आना ना जाना, कुछ पशु-पक्षी वहा विचरते रहते थे, थोड़ी ही दूर से जंगल आरम्भ हो जाता था। किशोर के खाने-पीने और देख-रेख के लिए एक सेवक की नियुक्ति कर दी गई। प्रतिदिन सुबह नाश्ते का प्रबंध और दोपहर तथा रात्री के भोजन के प्रबन्ध किशोर के भाई और भाभी कर देते थे।  उसके वस्त्र भी घर से धुल कर आ जाते थे।  किशोर ने कुछ भी विरोध नहीं किया, वह उसमे ही संतुष्ट रहने लगा, उसका नियम था वह जब भी कुछ भोजन करता पहले अपने गोविन्द का स्मरण करता, उनको भोजन अर्पित करता और उस भोजन के लिए धन्यवाद देकर तब भोजन ग्रहण करता।  कुछ दिन यह क्रम चलता रहा इस बीच किशोर की दोनों भाभीयों को पुत्र रत्न की प्राप्त हुई। उसके बाद उनको किशोर का यह प्रति दिन का खाने और वस्त्र का प्रबंध भी अखरने लगा। तब दोनों ने मिल का एक भयानक षड्यंत्र रचा, उन्होंने किशोर को समाप्त करने की योजना बनाई। अगले दिन रात्री के भोजन में विष मिलकर सेवक के हाथ भेज दिया इस बात से अनभिज्ञ सेवक भोजन लेकर पहुंचा और किशोर को भोजन सौंप दिया। किशोर ने भोजन प्राप्त किया और प्रतिदिन की भाँति
               *जय जिनेन्द्र जी*
भोजन गोविन्द को अर्पित किया, अब जिसके साथ गोविन्द सदा रहते हो उसके सामने कोई षड्यंत्र भला क्या करता। गोविन्द के भोजन स्वीकार करते ही भोजन प्रशाद के रूप में परिवर्तित हो गया, किशोर ने सुख पूर्वक भोजन किया भगवान का धन्याद किया और लग गया हरी भजन में। उधर दोनों भाभी प्रसन्न थी कि चलो आज पीछा छूटा।  अगले दिन अनजान बन कर उन्होंने फिर से प्रातः का नाश्ता तैयार किया और सेवक के हाथ भेज दिया, इस आशा में की थोड़ी ही देर में सेवक उनके मन को प्रसन्न करने वाली सूचना लेकर आएगा।नाश्ता देकर जब सेवक वापस लौटा तो किशोर को कुशल जान उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। वह दोनों पाप बुद्धि यह नहीं जान पाई की जिसका रक्षक दयानिधान हो उसका भला कोई क्या बिगाड़ सकता है, उन्होंने सोंचा हो सकता है कि किसी कारण वश किशोर ने रात्री में भोजन ही ना किया हो, ऐसा विचार कर उन कुटिल स्त्रिओं ने अपने मन की शंका का समाधान स्वयं के करने की ठानी, उस दिन उन्होंने दोपहर के भोजन में किशोर के लिए खीर बनाई और उसमे पहले से भी अधिक तीक्षण विष मिला दिया, वह स्वयं ही खीर लेकर किशोर के पास गई और किशोर से बड़े ही प्रेम का व्यवहार किया और पूंछा की आज तुम्हारा चेहरा कुछ उदास लग रहा है, क्या रात्री में भोजन नही किया। अपनी भाभियों को वहा देख निर्मल मन किशोर बहुत प्रसन्न था, वह बोला नहीं भाभी मेने तो भोजन करा था, बहुत स्वादिष्ट लगा, यह तो आपका प्रेम है जो आपको ऐसा प्रतीत हो रहा है।यह सुनकर दोनों पापी स्त्रियां, शंका में पड़ गई कि इसने भोजन किया तो फिर यह जीवित कैसे है, उनकी पाप बुद्धि ने अब भी उनका साथ नही दिया और वह सत्य को नहीं पहचान पाईं। उन्होंने में में विचार किया की किशोर हमसे झूंठ बोल रहा है, तब उन्होंने प्रेम पूर्वक किशोर को खीर देकर कहा, आज हम तुम्हारे लिए अपने हाथ से खीर बना कर लाई है, और अपने सामने ही खिला कर जाएँगी। उनके कपट पूर्ण प्रेम के नाटक को किशोर नहीं जान पाया उसकी आँखों में आंसू आ गए उसने प्रेम से वह खीर ली और खाने बैठ गया, किन्तु खाने से पूर्व वह अपने गोविन्द को नहीं भूला, उसने प्रेम पूर्वक गोविन्द को स्मरण किया उनको खीर अर्पित करी और प्रेम पूर्वक खाने लगा। फिर कैसा विष और कैसा षड्यंत्र वह सुख पूर्वक सारी खीर खा गया। उधर उसकी भाभियों ने उसको खीर खाते देखा तो सोंचा की हो गया इसका तो अंत, अब यहाँ रुकना उचित नहीं, ऐसा विचार कर वह तुरंत ही वहां से निकल गई। खीर खाने के बाद किशोर ने भाभी को धन्यवाद कहा, किन्तु वह वहां होती तब ना, किशोर को बहुत आश्चर्य हुआ कि अनायास ही वह दोनों कहाँ चली गई। जब कोई उत्तर नहीं मिला तो उसने भगवान को पुनः स्मरण किया और हरी भजन में तल्लीन हो गया।उधर दोनों भाभी प्रसन्न मन अपने घर पहुंची तो देखा घर में कोहराम मचा था, देखा तो पता चला कि उन दोनों के पुत्रों ने कोई विषेला पदार्थ खा लिए जिससे उनकी मृत्यु हो गई। यह देख दोनों को काटो तो खून नहीं की स्तिथि में पहुँच गई। अब उनको अपने पाप का अहसास हो गया था। वह जान गई की भगवान ने उनको उनके कर्मो का दण्ड दिया है, वह दोनों दहाड़े मार-मार कर रोने लगी और खुद को कोसने लगीं।  उधर एक सेवक दौड़ा-दौड़ा किशोर के पास पहुंचा और सारी घटना सुनाई, सुनकर किशोर एकदम से विचलित हो गया और रो पड़ा, वह सेवक से बोला भाई मुझको वहा ले चलो, सेवक किशोर को लेकर घर पहुंचा वह जाकर किशोर ने देखा कि सभी लोग जोर-जोर से विलाप कर रहे हैं, उसके भाई और भाभी का तो रो रो कर बुरा हाल था। किशोर को वहां जीवित खड़ा देख दोनों भाभी सन्न रह गई अब उनको इस बात का विश्वाश हो गया था की जिस किशोर को उन्होंने ठुकरा दिया और जिसकी हत्या करने की कुचेष्टा करी भगवान स्वयं उसके साथ है इसलिए उसका बाल भी बांका नहीं हुआ बल्कि भगवान ने उनको ही उनकी करनी का फल दिया है। वह दोनों कुटिल स्त्रियां किशोर से भयभीत हो उठी और उसके पैरो में गिर कर अपने सारे अपराध स्वीकार कर लिए और उनको क्षमा करने की दुहाई देने लगी किशोर और उसके भाई उन दोनों के इस षड्यंत्र को सुन अवाक् थे किन्तु किशोर तो वहां उन बच्चों की खातिर आया था।  किशोर ने सेवक से कहा मुझको बच्चों तक पहुंचा दो, सेवक ने ऐसा ही करा, बच्चों के पास जाकर किशोर ने श्री गोविन्द को स्मरण किया और प्रार्थना करी कि है गोविन्द आज मेरी लाज आपके हाथ में हैं, इन दोनों मासूमो को जीवन दान दो या फिर मेरा भी जीवन ले लो। ऐसी प्रार्थना कर किशोर ने दोनों बच्चों के सर पर हाथ रखा। ठाकुर जी की लीला, अपने भक्त की पुकार को कैसे अनसुना करते पल भर में भी दोनों बच्चे जीवित हो उठे। यह देख किशोर के भाई और भाभी को बहुत लज्जा आई उन्होंने किशोर से अपने कर्मो के लिए क्षमा मांगी और कहा कि अब उसको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, अब वह यही रहेगा, पहले की ही तरहा।किन्तु किशोर का सर्वत्र तो अब उसके गोविन्द थे, उसको इन सब बातो से भला क्या लेना, वह सेवक के साथ  वापस लौट गया। किशोर के भाई और भाभी बहुत  लज्जित हुए जा रहे थे, सारा समाज उनको बुरा भला कह रहा था। सबने यही कहा कि अंत में वही भाई काम आया जिसको उन्होंने निर्दयिता से ठुकरा दिया था। उन सभी को सारी रात नींद नहीं आई । अगले दिन सभी ने मिल कर किशोर को वापस लाने का निर्णय किया। सब लोग मिलकर किशोर के पास पहुंचे किन्तु किशोर तो पहले ही सब कुछ भांप चुका था, वह लोग जब किशोर के निवास पर पहुंचे तो किशोर वहां नहीं था। वह वहां से जा चुका था। भाई भाभी को बहुत पछतावा हुआ, उन्होंने किशोर को आस-पास  बहुत  खोजा किन्तु वह नहीं मिला, निराश मन सब लोग वापस लौट गए। उधर जंगल में कही दूर स्वर लहरियां गूँज रही थीं ................
*है गिरधर गोपाल, करुणा सिंधु कृपाल।*
*भक्तवत्सल, सबके सम्बल, मोहे लीजो सम्भाल।।*



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# BRAHMAKUMARIES II रात्रि कहांनी 28/04/2020❣️❣️❣️❣️‼️ रिक्से वाला ‼️(OM SHANTI)

एक बार एक अमीर आदमी कहीं जा रहा होता है तो उसकी कार ख़राब हो जाती है। उसका कहीं पहुँचना बहुत जरुरी होता है। उसको दूर एक पेड़ के नीचे एक रिक्शा दिखाई देता है। वो उस रिक्शा वाले पास जाता है। वहा जाकर देखता है कि रिक्शा वाले ने अपने पैर हैंडल के ऊपर रखे होते है। पीठ उसकी अपनी सीट पर होती है और सिर जहा सवारी बैठती है उस सीट पर होती है ।

 और वो मज़े से लेट कर गाना गुन-गुना रहा होता है। वो अमीर व्यक्ति रिक्शा वाले को ऐसे बैठे हुए देख कर बहुत हैरान होता है कि एक व्यक्ति ऐसे बेआराम जगह में कैसे रह सकता है, कैसे खुश रह सकता है। कैसे गुन-गुना सकता है। 

 वो उसको चलने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला झट से उठता है और उसे 20 रूपए देने के लिए बोलता है।

  रास्ते में वो रिक्शा वाला वही गाना गुन-गुनाते हुए मज़े से रिक्शा खींचता है। वो अमीर व्यक्ति एक बार फिर हैरान कि एक व्यक्ति 20 रूपए लेकर इतना खुश कैसे हो सकता है। इतने मज़े से कैसे गुन-गुना सकता है। वो थोडा इर्ष्यापूर्ण  हो जाता है और रिक्शा वाले को समझने के लिए उसको अपने बंगले में रात को खाने के लिए बुला लेता है। रिक्शा वाला उसके बुलावे को स्वीकार कर देता है।

 वो अपने हर नौकर को बोल देता है कि इस रिक्शा वाले को सबसे अच्छे खाने की सुविधा दी जाए। अलग अलग तरह के खाने की सेवा हो जाती है। सूप्स, आइस क्रीम, गुलाब जामुन सब्जियां यानि हर चीज वहाँ मौजूद थी।

  वो रिक्शा वाला खाना शुरू कर देता है, कोई प्रतिक्रिया, कोई घबराहट बयान नहीं करता। बस वही गाना गुन-गुनाते हुए मजे से वो खाना खाता है। सभी लोगो को ऐसे लगता है जैसे रिक्शा वाला ऐसा खाना पहली बार नहीं खा रहा है। पहले भी कई बार खा चुका है। वो अमीर आदमी एक बार फिर हैरान एक बार फिर इर्ष्यापूर्ण कि कोई आम आदमी इतने ज्यादा तरह के व्यंजन देख के भी कोई हैरानी वाली प्रतिक्रिया क्यों नहीं देता और वैसे कैसे गुन-गुना रहा है जैसे रिक्शे में गुन-गुना रहा था।

 यह सब कुछ देखकर अमीर आदमी की इर्ष्या और बढती है। 
अब वह रिक्शे वाले को अपने बंगले में कुछ दिन रुकने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला हाँ कर देता है। 

  उसको बहुत ज्यादा इज्जत दी जाती है। कोई उसको जूते पहना रहा होता है, तो कोई कोट। एक बेल बजाने से तीन-तीन नौकर सामने आ जाते है। एक बड़ी साइज़ की टेलीविज़न स्क्रीन पर उसको प्रोग्राम दिखाए जाते है। और एयर-कंडीशन कमरे में सोने के लिए बोला जाता है।

 अमीर आदमी नोट करता है कि वो रिक्शा वाला इतना कुछ देख कर भी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा। वो वैसे ही साधारण चल रहा है। जैसे वो रिक्शा में था वैसे ही है। वैसे ही गाना गुन-गुना रहा है जैसे वो रिक्शा में गुन-गुना रहा था।

  अमीर आदमी के इर्ष्या बढ़ती चली जाती है और वह सोचता है कि अब तो हद ही हो गई। इसको तो कोई हैरानी नहीं हो रही, इसको कोई फरक ही नहीं पढ़ रहा। ये वैसे ही खुश है, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा।

 अब अमीर आदमी पूछता है: आप खुश हैं ना? 
वो रिक्शा वाला कहते है: जी साहेब बिलकुल खुश हूँ।

  अमीर आदमी फिर पूछता है: आप आराम में  हैं ना ? 
रिक्शा वाला कहता है: जी बिलकुल आरामदायक हूँ।

 अब अमीर आदमी तय करता है कि इसको उसी रिक्शा पर वापस छोड़ दिया जाये। वहाँ जाकर ही इसको इन बेहतरीन चीजो का एहसास होगा। क्योंकि वहाँ जाकर ये इन सब बेहतरीन चीजो को याद करेगा।

  अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी को बोलता है की इसको कह दो कि आपने दिखावे के लिए कह दिया कि आप खुश हो, आप आरामदायक हो। लेकिन साहब समझ गये है कि आप खुश नहीं हो आराम में नहीं हो। इसलिए आपको उसी रिक्शा के पास छोड़ दिया जाएगा।”

 सेक्रेटरी के ऐसा कहने पर रिक्शा वाला कहता है: ठीक है सर, जैसे आप चाहे, जब आप चाहे।

  उसे वापस उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है जहाँ पर उसका रिक्शा था। 

 अब वो अमीर आदमी अपने गाड़ी के काले शीशे ऊँचे करके उसे देखता है।

  रिक्शे वाले ने अपनी सीट उठाई बैग में से काला सा, गन्दा सा, मेला सा कपड़ा निकाला, रिक्शा को साफ़ किया, मज़े में बैठ गया और वही गाना गुन-गुनाने लगा।

 अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी से पूछता है: “कि चक्कर क्या है। इसको कोई फरक ही नहीं पड रहा इतनी आरामदायक वाली, इतनी बेहतरीन जिंदगी को ठुकरा के वापस इस कठिन जिंदगी में आना और फिर वैसे ही खुश होना, वैसे ही गुन-गुनाना।”

  फिर वो सेक्रेटरी उस अमीर आदमी को कहता है: “सर यह एक कामियाब इन्सान की पहचान है। एक कामियाब इन्सान वर्तमान में जीता है, उसको मनोरंजन (enjoy) करता है और बढ़िया जिंदगी की उम्मीद में अपना वर्तमान खराब नहीं करता। 

 अगर उससे भी बढ़िया जिंदगी मिल गई तो उसे भी वेलकम करता है उसको भी मनोरंजन (enjoy) करता है उसे भी भोगता है और उस वर्तमान को भी ख़राब नहीं करता। और अगर जिंदगी में दुबारा कोई बुरा दिन देखना पड़े तो वो भी उस वर्तमान को उतने ही ख़ुशी से, उतने ही आनंद से, उतने ही मज़े से, भोगता है मनोरंजन करता है और उसी में आनंद लेता है।”

 

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#BRAHMAKUMARIES II रात्रि कहांनी। 27/04/2020❣️❣️❣️❣️*🟠👉🏿अंहकार की सजा➖*(OM SHANTI)

एक बहुत ही घना जंगल था। उस जंगल में एक आम और एक पीपल का भी पेड़ था। एक बार मधुमक्‍खी का झुण्‍ड उस जंगल में रहने आया, लेकिन उन मधुमक्‍खी के झुण्‍ड को रहने के लिए एक घना पेड़ चाहिए था। 
रानी मधुमक्‍खी की नजर एक पीपल के पेड़ पर पड़ी तो रानी मधुमक्‍खी ने पीपल के पेड़ से कहा, हे पीपल भाई, क्‍या में आपके इस घने पेड़ की एक शाखा पर अपने परिवार का छत्‍ता बना लु?

पीपल को कोई परेशान करे यह पीपल को पसंद नही था। अंहकार के कारण पीपल ने रानी मधुमक्‍खी से गुस्‍से में कहा, हटो यहाँ से, जाकर कहीं और अपना छत्‍ता बनालो। मुझे परेशान मत करो।

पीपल की बात सुन कर पास ही खडे आम के पेड़ ने कहा, पीपल भाई बना लेने दो छत्‍ता। ये तुम्‍हारी शाखाओं में सुरक्षित रहेंगी।

पीपल ने आम से कहा, तुम अपना काम करो, इतनी ही चिन्‍ता है तो तुम ही अपनी शाखा पर छत्‍ता बनाने के लिए क्‍यों नही कह देते?

इस बात से आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी रानी से कहा, हे रानी मक्‍खी, अगर तुम चाहो तो तुम मेरी शाखा पर अपना छत्‍ता बना लो।

इस पर रानी मधुमक्‍खी ने आम के पेड़ का आभार व्‍यक्‍त किया और अपना छत्‍ता आम के पेड़ पर बना लिया।

समय बीतता गया और कुछ दिनो बाद जंगल में कुछ लकडहारे आए उन लोग को आम का पेड़ दिखाई दिया और वे आपस में बात करने लगे कि इस आम के पेड़ को काट कर लकड़िया ले लिया जाये।

वे लोग अपने औजार लेकर आम के पेड़ को काटने चले तभी एक व्‍यक्ति ने ऊपर की और देखा तो उसने दूसरे से कहा, नहीं, इसे मत काटो। इस पेड़ पर तो मधुमक्‍खी का छत्‍ता है, कहीं ये उड गई तो हमारा बचना मुश्किल हो जायेगा।

उसी समय एक आदमी ने कहा क्‍यों न हम लोग ये पीपल का पेड़ ही काट लिया जाए इसमें हमें ज्‍यादा लकड़िया भी मिल जायेगी और हमें कोई खतरा भी नहीं होगा।

वे लोग मिल कर पीपल के पेड़ को काटने लगे। पीपल का पेड़ दर्द के कारण जोर-जोर से चिल्‍लाने लगा, बचाओ-बचाओ-बचाओ….

आम को पीपल की चिल्‍लाने की आवाज आई, तो उसने देखा कि कुछ लोग मिल कर उसे काट रहे हैं।

आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से कहा, हमें पीपल के प्राण बचाने चाहिए….. आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से पीपल के पेड़ के प्राण बचाने का आग्रह किया तो मधुमक्‍खी ने उन लोगो पर हमला कर दिया, और वे लोग अपनी जान बचा कर जंगल से भाग गए।

पीपल के पेड़ ने मधुमक्‍खीयो को धन्‍यवाद दिया और अपने आचरण के लिए क्षमा मांगी।

तब मधुमक्‍खीयो ने कहा, धन्‍यवाद हमें नहीं, आम के पेड़ को दो जिन्‍होने आपकी जान बचाई है, क्‍योंकि हमें तो इन्‍होंने कहा था कि अगर कोई बुरा करता है तो इसका मतलब यह नही है कि हम भी वैसा ही करे।

अब पीपल को अपने किये पर पछतावा हो रहा था और उसका अंहकार भी टूट चुका था। पीपल के पेड़ को उसके अंहकार की सजा भी मिल चुकी थी।

*शिक्षा:- हमे कभी अंहकार नही करना चाहिए। जितना हो सके, लोगो के काम ही आना चाहिए, जिससे वक्‍त पड़ने पर तुम भी किसी से मदद मांग सको। जब हम किसी की मदद करेंगे तब ही कोई हमारी भी मदद करेगा।*


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#BRAHMAKUMARIES II *56 प्रकार के बल* I I(OM SHANTI)


1 त्याग का बल 
2 तपस्या का बल
3 दान का बल
4 बलिदान का बल
5 पवित्रता का बल
6 ज्ञान का बल
7 योग का बल
8 वाणी का बल
9 दृष्टि का बल
10 मन और सन्कल्प का बल
11 परमात्म बल 
12 पुण्य का बल
13 श्रेष्ठ कर्मो का बल
13 संगठन का बल
14 सचाई सफाई का बल
15 दृढ़ता का बल
16 निश्चय का बल
17 अनुभव का बल
18 धन का बल
19 शरीर का बल
20 दुआओ का बल
21 सहयोग का बल
22 श्रेष्ठ संग का बल
23 साधन का बल
24 साधना का बल
25 श्रेष्ठ स्थान का बल
26 विशेषताओ का बल
27 स्वास्थ्य का बल 
28  समय का बल
29  सत्यता का बल
30 ईमानदारी का बल
31 वफादारी का बल
32 भावनाओ का बल
33 सशतर् का बल
34 व्यवहार का बल
35 ब्रह्मचर्य का बल
36 सम्बन्धो का बल
37श्रेष्ठ दिनचर्या का बल
38 विज्ञानं का बल
39 आध्यात्मिकता का बल
40 कला का बल
41 शता का बल 
42 भक्ति का बल
43 स्नेह का बल
44 सुभ भावना का बल
45 नेचर का बल
46 एकाग्रता का बल
47 धर्म का बल
48 धारणा का बल
49 मर्यादा का बल
50 आहार का बल
51 वरदानों का बल
52 सेवा का बल
53 सानिध्य का बल
54 पालना का बल 
55 संस्कारो का बल
56 मित्रता का बल

#BRAHMAKUMARIES I I 👉🏻 🌃 Night Story 📝 👈🏻 26/04/2020 *💠✨ईश्वर का गणित✨💠*I I (OM SHANTI)

💙एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे । वहां अंधेरा छा रहा था और बादल मंडरा रहे थे ।  थोड़ी देर में वहां एक आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा ।_
_🍃कुछ देर बाद वो आदमी बोला उसे बहुत भूख लग रही है, उन दोनों को भी भूख लगने लगी थी ।   पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं।_ 

_🍃उसके बाद सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे ??  पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि हर रोटी के 3 टुकडे करते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकडे (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 - 8 टुकड़े बराबर बराबर बंट जाएंगे।_

    _🍃तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24 टुकडे करके प्रत्येक ने 8 - 8 रोटी के टुकड़े खाकर भूख शांत की और फिर बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए ।   सुबह उठने पर तीसरे आदमी ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने घर की ओर चला गया ।_

_🍃उसके जाने के बाद दूसरे आदमी ने  पहले आदमी से कहा हम दोनों 4 - 4 गिन्नी बांट लेते हैं ।   पहला आदमी बोला नहीं मेरी 3 रोटी थी और तुम्हारी  5 रोटी थी, अतः मैं 3 गिन्नी लुंगा, तुम्हें 5 गिन्नी रखनी होगी ।  इस पर दोनों में बहस होने लगी ।_

_🍃इसके बाद वे दोनों समाधान के लिये मंदिर के पुजारी के पास गए और उन्हें  समस्या बताई तथा  समाधान के लिए प्रार्थना की ।_
_पुजारी भी असमंजस में पड़ गया, दोनों  दूसरे को ज्यादा  देने के लिये लड़ रहे है ।  पुजारी ने कहा तुम लोग ये 8 गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ और मुझे सोचने का समय दो, मैं कल सवेरे जवाब दे पाऊंगा ।   पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3-5 की बात ठीक लग रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते-सोचते गहरी नींद में सो गया।   कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3 - 5 बंटवारा ही उचित लगता है ।_

_🍃भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं,  पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे आदमी को 7 गिन्नी मिलनी चाहिए । भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा-_

_✨प्रभु, ऐसा कैसे  ?_

_✨भगवन फिर एक बार मुस्कुराए और बोले :_

_🍃इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाया अर्थात उसका त्याग सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है ।   दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए । इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और ये ही मेरा न्याय है  !_

_🍃ईश्वर की न्याय का सटिक विश्लेषण सुनकर पुजारी  नतमस्तक हो गया।_

_🍃इस कहानी का सार ये ही है कि हमारी वस्तुस्थिति को देखने की, समझने की दृष्टि और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है । हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी हैं ।_ 
   _हम अपने त्याग का गुणगान करते है, परंतु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य एवं भोग तौर कर यथोचित निर्णय करते हैं ।_ 

*_🍃यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने धन संपन्न है, महत्वपूर्ण यहीं है कि हमारे सेवाभाव कार्य में त्याग कितना है।_*

              *💠✨ओम शान्ति ✨💠*

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# Bahmakumaries || रात्रि कहांनी। ❣️❣️❣️❣️ *🟠👉🏿अंहकार की सजा➖*25/04/2020 || (OM SHANTI)

एक बहुत ही घना जंगल था। उस जंगल में एक आम और एक पीपल का भी पेड़ था। एक बार मधुमक्‍खी का झुण्‍ड उस जंगल में रहने आया, लेकिन उन मधुमक्‍खी के झुण्‍ड को रहने के लिए एक घना पेड़ चाहिए था। 
रानी मधुमक्‍खी की नजर एक पीपल के पेड़ पर पड़ी तो रानी मधुमक्‍खी ने पीपल के पेड़ से कहा, हे पीपल भाई, क्‍या में आपके इस घने पेड़ की एक शाखा पर अपने परिवार का छत्‍ता बना लु?


पीपल को कोई परेशान करे यह पीपल को पसंद नही था। अंहकार के कारण पीपल ने रानी मधुमक्‍खी से गुस्‍से में कहा, हटो यहाँ से, जाकर कहीं और अपना छत्‍ता बनालो। मुझे परेशान मत करो।

पीपल की बात सुन कर पास ही खडे आम के पेड़ ने कहा, पीपल भाई बना लेने दो छत्‍ता। ये तुम्‍हारी शाखाओं में सुरक्षित रहेंगी।

पीपल ने आम से कहा, तुम अपना काम करो, इतनी ही चिन्‍ता है तो तुम ही अपनी शाखा पर छत्‍ता बनाने के लिए क्‍यों नही कह देते?

इस बात से आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी रानी से कहा, हे रानी मक्‍खी, अगर तुम चाहो तो तुम मेरी शाखा पर अपना छत्‍ता बना लो।

इस पर रानी मधुमक्‍खी ने आम के पेड़ का आभार व्‍यक्‍त किया और अपना छत्‍ता आम के पेड़ पर बना लिया।

समय बीतता गया और कुछ दिनो बाद जंगल में कुछ लकडहारे आए उन लोग को आम का पेड़ दिखाई दिया और वे आपस में बात करने लगे कि इस आम के पेड़ को काट कर लकड़िया ले लिया जाये।

वे लोग अपने औजार लेकर आम के पेड़ को काटने चले तभी एक व्‍यक्ति ने ऊपर की और देखा तो उसने दूसरे से कहा, नहीं, इसे मत काटो। इस पेड़ पर तो मधुमक्‍खी का छत्‍ता है, कहीं ये उड गई तो हमारा बचना मुश्किल हो जायेगा।

उसी समय एक आदमी ने कहा क्‍यों न हम लोग ये पीपल का पेड़ ही काट लिया जाए इसमें हमें ज्‍यादा लकड़िया भी मिल जायेगी और हमें कोई खतरा भी नहीं होगा।

वे लोग मिल कर पीपल के पेड़ को काटने लगे। पीपल का पेड़ दर्द के कारण जोर-जोर से चिल्‍लाने लगा, बचाओ-बचाओ-बचाओ….

आम को पीपल की चिल्‍लाने की आवाज आई, तो उसने देखा कि कुछ लोग मिल कर उसे काट रहे हैं।

आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से कहा, हमें पीपल के प्राण बचाने चाहिए….. आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से पीपल के पेड़ के प्राण बचाने का आग्रह किया तो मधुमक्‍खी ने उन लोगो पर हमला कर दिया, और वे लोग अपनी जान बचा कर जंगल से भाग गए।

पीपल के पेड़ ने मधुमक्‍खीयो को धन्‍यवाद दिया और अपने आचरण के लिए क्षमा मांगी।

तब मधुमक्‍खीयो ने कहा, धन्‍यवाद हमें नहीं, आम के पेड़ को दो जिन्‍होने आपकी जान बचाई है, क्‍योंकि हमें तो इन्‍होंने कहा था कि अगर कोई बुरा करता है तो इसका मतलब यह नही है कि हम भी वैसा ही करे।

अब पीपल को अपने किये पर पछतावा हो रहा था और उसका अंहकार भी टूट चुका था। पीपल के पेड़ को उसके अंहकार की सजा भी मिल चुकी थी।

*शिक्षा:- हमे कभी अंहकार नही करना चाहिए। जितना हो सके, लोगो के काम ही आना चाहिए, जिससे वक्‍त पड़ने पर तुम भी किसी से मदद मांग सको। जब हम किसी की मदद करेंगे तब ही कोई हमारी भी मदद करेगा।*


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