24-04-17 प्रात:मुरली ओम शान्ति “बापदादा” मधुबन



“मीठे बच्चे - मात-पिता के सिजरे में आना है तो पूरा फालो करो, उनके समान मीठे बनो, अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ो''

प्रश्नः-कौन सी गुह्य राज़युक्त, रहस्य-युक्त बातें समझने के लिए बहुत अच्छी बुद्धि चाहिए?

उत्तर:- ब्रह्मा सरस्वती वास्तव में मम्मा बाबा नहीं हैं, सरस्वती तो ब्रह्मा की बेटी है, वह भी ब्रह्माकुमारी है। ब्रह्मा ही तुम्हारी बड़ी माँ है, परन्तु मेल है इसलिए माता जगत अम्बा को कह दिया है। यह बड़ी रहस्ययुक्त गुह्य बात है, जिसको समझने के लिए बहुत अच्छी बुद्धि चाहिए। 2 सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा को प्रजापिता नहीं कहेंगे। प्रजापिता यहाँ है। यह व्यक्त जब सम्पूर्ण पवित्र हो जाते हैं तो सम्पूर्ण अव्यक्त रूप दिखाई देता है। वहाँ मूवी भाषा चलती है। देवताओं की महफिल लगती है। यह भी समझने की गुह्य बात है।

गीत:-माता ओ माता....
ओम् शान्ति।

बच्चे जानते हैं यह है ईश्वरीय युनिवर्सिटी। कौन पढ़ाते हैं? ईश्वर। ईश्वर तो एक ही है, उनका शास्त्र भी एक ही होना चाहिए। जैसे धर्म स्थापक एक होता है, उनका शास्त्र भी एक होना चाहिए। फिर भल छोटे मोटे पुस्तक बना दिये हैं, वैसे एक शास्त्र होता है। तो यह है गॉड फादर की युनिवर्सिटी। वैसे फादर की युनिवर्सिटी तो कोई होती नहीं, गवर्मेन्ट की युनिवर्सिटी होती हैं। इनको कहा जाता है मदर फादर की युनिवर्सिटी। कौन से मदर फादर? फिर कहेंगे गॉड गॉडेस। गाते भी हैं तुम मात पिता.... तो जरूर पिता ही फर्स्ट हुए। भगवानुवाच। भगवान बैठ पढ़ाते हैं और सब जगह मनुष्य, मनुष्यों को पढ़ाते हैं। यहाँ निराकार बाप तुम आत्माओं को पढ़ा रहे हैं, यह विचित्र बात मनुष्य सहज समझ नहीं सकते। ऐसे कोई भी नहीं कहेंगे कि निराकार परमपिता परमात्मा गॉड फादर हमको पढ़ाते हैं। यहाँ तुमको परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। किसी की भी बुद्धि में यह बात नहीं होगी। न पढ़ने वालों की बुद्धि में होगी, न पढ़ाने वालों की बुद्धि में होगी। यहाँ तुम जानते हो गॉड फादर हमको पढ़ाते हैं। सभी का फादर ऊंचे ते ऊंचा वह एक है और कोई फादर नहीं। ब्रह्मा का भी फादर वही है। तुमको पढ़ाते भी वही है। ब्रह्मा नहीं पढ़ाते हैं। निराकार बाप पढ़ाते हैं। भल मनुष्य जानते हैं - ब्रह्मा सरस्वती एडम और ईव हैं। परन्तु उनसे भी ऊंच निराकार है। वह तो फिर भी साकार में हैं। तुम बच्चों को यह पता है निराकार आकर पढ़ाते हैं। तुमको नॉलेज देने वाला वही गॉड फादर है। कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहकर तुमको नॉलेज पढ़नी है। वास्तव में गृहस्थ व्यवहार में कोई पढ़ते नहीं हैं। मुश्किल कोई सेकेण्ड कोर्स उठाते होंगे। यहाँ तुमको पूरा निश्चय है कि हमको निराकार परमात्मा पढ़ाते हैं। यह साकार मम्मा बाबा भी उनसे ही पढ़ते हैं। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। जब तक बाप न आकर समझावे तब तक कोई समझ न सकें। तुम भल इन्हें (सरस्वती को) मम्मा कहते हो परन्तु जानते हो कि यह ब्रह्मा की एडाप्टेड बेटी है। एडाप्ट तो तुम भी हो परन्तु तुमको मम्मा नहीं कहा जाता है। यह है दैवी परिवार। मम्मा, बाबा, दादा, भाई-बहन, तुम हो ब्रह्माकुमार कुमारियाँ। वह भी ब्रह्माकुमारी सरस्वती है। परन्तु उनको जगत अम्बा कहते हो क्योंकि यह ब्रह्मा तो मेल हो गया। मम्मा को भी इन द्वारा शिवबाबा ने रचा है। परन्तु कायदे-मुजीब माता चाहिए, इसलिए इनको निमित्त बनाया है। यह बड़ी रमणीक बातें हैं। नया कोई समझ न सके। जब तक उनको बाप और रचना का परिचय नहीं है तब तक बड़ा मुश्किल समझते हैं। किसको समझा भी नहीं सकेंगे।

वेद शास्त्र आदि पढ़ना, डॉक्टरी पढ़ना, यह सब है मनुष्यों की पढ़ाई। मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं, ऐसे कभी कोई नहीं कहता मैं आत्मा, आत्माओं को पढ़ाता हूँ। यहाँ तुमको देह-अभिमान से निकाल देही-अभिमानी बनाते हैं। देह-अभिमान है पहला नम्बर विकार। देही-अभिमानी कोई भी नहीं है। जानते हैं आत्मा और शरीर दो चीजें हैं। परन्तु आत्मा कहाँ से आती है, उनका बाप कौन है, यह नहीं जानते। यह हैं नई बातें, न्यू वर्ल्ड के लिए। न्यु देहली कहते हैं। परन्तु न्यु वर्ल्ड में इसका नाम देहली नहीं होता, उसे परिस्तान कहा जाता है। पहले-पहले यह निश्चय होना चाहिए कि हम ईश्वरीय औलाद हैं। दैवी औलाद और आसुरी औलाद में रात-दिन का फ़र्क है। वह हैं भ्रष्टाचारी, तुम हो श्रेष्ठाचारी। गाते भी हैं - हे पतित-पावन आओ, आकर श्रेष्ठाचारी बनाओ। गुरूनानक ने भी कहा है भगवान आकर मूत पलीती कपड़े धोते हैं। तुम आपेही पूज्य आपेही पुजारी कैसे बनते हो, यह सब समझने के राज़ हैं। सदा पूज्य एक परमपिता परमात्मा है। उसने पूज्य बनाया लक्ष्मी-नारायण को। उसने भी पहले मात-पिता को बनाया, मम्मा बाबा को एडाप्ट किया। पतित को पावन बनाते हैं। आते ही हैं पतित दुनिया में पावन बनाने इसलिए ब्रह्मा का चित्र ऊपर में दिया है। नीचे फिर तपस्या कर रहे हैं, पतित को एडाप्ट करते हैं। ब्रह्मा सरस्वती और बच्चों के नाम बदली होते हैं। तुम जानते हो ब्रह्माकुमार कुमारियाँ देवी-देवता बनने के लिए राजयोग सीख रहे हैं। यह है ईश्वरीय सन्तान अथवा सिजरा। एक बीज से यह सिजरा निकला। वह है आत्माओं का सिजरा। यह है मनुष्यों का सिजरा। रुद्र माला भी आत्माओं का सिजरा है। फिर मनुष्यों का सिजरा कौन सा ठहरा? देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र.... यह हुई रचता और रचना की नॉलेज, जो तुम बच्चे ही सुनते हो। परन्तु नम्बरवार धारणा होने के कारण राजा रानी भी बनते हैं तो प्रजा भी बनते हैं। पुरुषार्थ करना चाहिए कि मम्मा बाबा को फालो करें, बहुत मीठा बनें। मम्मा मीठी है इसलिए सब याद करते हैं। इस मम्मा बाबा और तुम बच्चों को मीठा बनाने वाला शिवबाबा है। मम्मा बाबा और बच्चे जो अच्छी रीति पढ़ते हैं उनका सिजरा है। वह तो बहुत मीठे होने चाहिए। सरस्वती को बैन्जो दिया है। फिर कृष्ण को मुरली दे दी है। सिर्फ नाम बदल दिया है। बाबा कहते हैं अच्छी रीति पढ़ो। जैसे स्टूडेन्ट पढ़ते हैं तो उनकी बुद्धि में सारी हिस्ट्री-जॉग्राफी होती है। मुहम्मद गजनवी कब आया, कैसे लूट करके गया। मुसलमानों ने फलानी जगह लड़ाई की। इस्लामी, बौद्धी जो भी आये उन्हों की हिस्ट्री सब जानते हैं। परन्तु यह बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई नहीं जानते। नई दुनिया सो फिर पुरानी कैसे बनती है, ड्रामा कहाँ से शुरू होता है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन फिर स्थूलवतन, फिर यहाँ यह चक्र कैसे फिरता रहता है, यह पढ़ाई तुम बच्चे अभी पढ़ रहे हो। मूलवतन में आत्माओं का निवास स्थान है। सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा विष्णु शंकर हैं। जो आत्मायें पहले पावन थी वे फिर पतित कैसे बनी, फिर पावन कैसे बनेंगी यह सब समझाया जाता है। सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा को प्रजापिता नहीं कहेंगे। प्रजापिता तो यहाँ है। तुमको साक्षात्कार होता है। जब यह व्यक्त ब्रह्मा पवित्र हो जाते हैं तो वहाँ सम्पूर्ण अव्यक्त रूप दिखाई देता है। जैसे सफेद लाइट का सूक्ष्म रूप होता है। वार्तालाप भी मूवी में चलती है। सूक्ष्मवतन क्या है, वहाँ कौन जा सकते हैं - यह तुम जानते हो। वहाँ मम्मा बाबा को तुम देखते हो। वहाँ देवतायें भी आते हैं महफिल मनाते हैं, क्योंकि देवतायें पतित दुनिया में तो पांव रख नहीं सकते, इसलिए सूक्ष्मवतन में मिलते हैं। वह हुआ पियर घर और ससुराल घर वालों का मिलन। नहीं तो तुम ब्राह्मण और देवतायें कैसे मिलो। तो यह मिलने की युक्ति है। सम्मुख साक्षात्कार करना भी बुद्धि से जानना है। यह है ड्रामा की नूँध। जैसे मीरा को घर बैठे वैकुण्ठ का साक्षात्कार होता था, डांस करती थी। शुरू में तुमने भी बहुत साक्षात्कार किये। राजधानी कैसे चलती है, रसम-रिवाज सब कुछ बताते थे। उस समय तुम थोड़े थे। दूसरे सब पिछाड़ी में देखेंगे। दुनिया वाले आपस में लड़ते झगड़ते रहेंगे और तुम साक्षात्कार करते रहेंगे। मनुष्यों में तो हायदोष मचता रहता है। किनकी दबी रहेगी धूल में.... इस समय तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। तो भी उनका पोजीशन कितना ऊंचा है। परन्तु इस समय किसका भी परमात्मा से बुद्धियोग न होने के कारण उनको पहचानते ही नहीं। कन्या जब एक बारी बालक को जान लेती है तो प्रीत जुट जाती है। पहचान नहीं तो प्रीत नहीं। तुम्हारें में भी नम्बरवार प्रीत है। निरन्तर याद की भी प्रीत चाहिए, परन्तु प्रीतम को भूल जाते हैं। यह बाबा (ब्रह्मा) कहते हैं मैं भी भूल जाता हूँ।

तुम बच्चों को 5 हजार वर्ष के बाद फिर यह शिक्षा मिलती है कि अपने को आत्मा समझो, परमात्मा को याद करो, इस याद से ही विकर्म भस्म होंगे। अब तो विकर्माजीत बनना है। पहले-पहले जो सतयुग में आते हैं उनको विकर्माजीत कहेंगे। पतित को विकर्मी, पावन को सुकर्मी कहेंगे। विकर्माजीत राज्य होता है सतयुग में। फिर विकर्म का संवत चलता है। 2500 वर्ष विकर्माजीत फिर वही विकर्मी बन जाते हैं। तुम अभी पुरुषार्थ कर रहे हो विकर्माजीत राजाई में आने के लिए। मोह जीत राजा की बड़ी कथा है। पतित राज्य कब चलता है, पावन राज्य कब चलता है - यह सब तुम ही जानते हो। शिवबाबा पावन बनाते हैं, उनका भी चित्र है। रावण पतित बनाते हैं, उनका भी चित्र है। तुम जानते हो बरोबर अब रावण राज्य है इसलिए यह जो सृष्टि चक्र का चित्र है, इस पर लिखना पड़े - भारत टूडे, भारत टूमारो। (आज का भारत और कल का भारत) बनना तो है ना।

तुम जानते हो यह है ही मृत्युलोक। यहाँ अकाले मृत्यु होते रहते हैं। वहाँ ऐसे नहीं होता, इसलिए उनको अमरलोक कहा जाता है। रामराज्य सतयुग से शुरू होता है। रावण राज्य द्वापर से शुरू होता है। यह सब बातें तुम ही समझते हो। मनुष्य तो सब कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं। मैं तुम बच्चों को सब राज़ समझाता हूँ। तुम हो ब्रह्मा मुख वंशावली, तुमको समझाता हूँ। इसमें यह ब्रह्मा सरस्वती भी आ जाते हैं। यह है जगत अम्बा। महिमा बढ़ाने के लिए इनका गायन है। बाकी वास्तव में यह बड़ी मम्मा ब्रह्मा ही है ना, परन्तु शरीर पुरुष का है। यह हैं बड़ी गुह्य बातें। जगत अम्बा की जरूर कोई मम्मा तो है ना। ब्रह्मा की बेटी तो है। परन्तु सरस्वती की मम्मा कहाँ? किस द्वारा इनको रचा? तो यह ब्रह्मा हो जाते हैं - बड़ी मॉ। इन द्वारा बच्चे और बच्चियाँ रचते हैं। इन बातों को समझने में बड़ी अच्छी बुद्धि चाहिए। कुमारियाँ अच्छा समझती हैं। मम्मा भी कुमारी है। जब ब्रह्मचर्य का भंग हो जाता है तो धारणा नहीं होती है। गृहस्थ धर्म तो सतयुग में था, परन्तु उनको पावन कहा जाता है। यहाँ पतित हैं। श्रीकृष्ण को कितनी महिमा देते हैं - सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण.... यहाँ तो कोई भी मनुष्य ऐसा हो नहीं सकता। वहाँ रावण राज्य ही नहीं। देह-अंहकार का नाम ही नहीं रहता। वहाँ उनको यह ज्ञान है कि हम यह पुरानी देह को छोड़ दूसरी लेंगे। आत्म-अभिमानी रहते हैं। यहाँ हैं देह-अभिमानी। अभी तुमको सिखलाया जाता है - अपने को आत्मा समझो, तुम्हें यह पुराना शरीर छोड़ वापिस जाना है। फिर नया शरीर नई दुनिया में लेंगे। समझा - अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) निरन्तर याद में रहने के लिए दिल की प्रीत एक बाप से रखनी है। प्रीतम को कभी भी भूलना नहीं है।

2) विकर्माजीत राजाई में जाने के लिए मोहजीत बनना है, सुकर्म करने हैं। कोई भी विकर्म नहीं करना है।

वरदान:- फ्राक-दिल बन अखुट खजानों से सबको भरपूर करने वाले मास्टर दाता भव 

आप दाता के बच्चे मास्टर दाता हो, किसी से कुछ लेकर फिर देना-वह देना नहीं है। लिया और दिया तो यह बिजनेस हो गया। दाता के बच्चे फ्राक दिल बन देते जाओ। अखुट खजाना है, जिसको जो चाहिए वह देते भरपूर करते जाओ। किसी को खुशी चाहिए, स्नेह चाहिए, शान्ति चाहिए, देते चलो। यह खुला खाता है, हिसाब-किताब का खाता नहीं है। दाता की दरबार में इस समय सब खुला है इसलिए जिसको जितना चाहिए उतना दो, इसमें कंजूसी नहीं करो।

स्लोगन:-अपनी मन्सा वृत्ति को ऐसा पावरफुल बनाओ जो खराब भी अच्छा हो जाए।

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