15-04-17 प्रात:मुरली ओम शान्ति “बापदादा” मधुबन

15-04-17 प्रात:मुरली ओम शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - पुरानी देह और देह के सम्बन्धी जो एक दो को दु:ख देने वाले हैं, उन सबको भूल एक बाप को याद करो, श्रीमत पर चलो''

प्रश्नः-बाप के साथ-साथ वापिस चलने के लिए बाप की किस श्रीमत का पालन करना पड़े?

उत्तर:- बाप की श्रीमत है बच्चे पवित्र बनो, ज्ञान की पूरी धारणा कर अपनी कर्मातीत अवस्था बनाओ तब साथ-साथ वापिस चल सकेंगे। कर्मातीत नहीं बने तो बीच में रुक कर सजायें खानी पड़ेंगी। कयामत के समय कई आत्मायें शरीर छोड़ भटकती हैं, साथ में जाने के बजाए यहाँ ही पहले सज़ा भोग हिसाब चुक्तू करती हैं इसलिए बाप की श्रीमत है बच्चे सिर पर जो पापों का बोझा है, पुराने हिसाब-किताब हैं, सब योगबल से भस्म करो।

गीत:-ओ दूर के मुसाफिर....
ओम् शान्ति।

अभी तुम ब्राह्मणों की बुद्धि से सर्वव्यापी का ज्ञान तो निकल गया है। यह तो अच्छी रीति समझाया जाता है कि परमपिता परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई रचना रचते हैं। वह ठहरा रचयिता, जिसको परमात्मा कहा जाता है। यह भी बच्चे जानते हैं कि वह आते हैं, आकर बच्चों को अपना बनाते हैं। माया से लिबरेट करते हैं। पुरानी देह, देह सहित जो भी मित्र-सम्बन्धी आदि हैं, जो एक दो को दु:ख देने वाले हैं, उनको भूलना है। जैसे कोई बूढ़ा होता है तो उनको मित्र-सम्बन्धी आदि कहते हैं राम जपो। अब वह भी झूठ ही बताते हैं। न खुद जानते हैं, न उनकी बुद्धि में परमात्मा की याद ठहरती है। समझते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है। एक तरफ गाते हैं दूर के मुसाफिर.. आत्मायें दूर से आकर शरीर धारण कर अपना-अपना पार्ट बजाती हैं। यह सब बातें मनुष्यों के लिए ही समझाई जाती हैं। मनुष्य शिव का मन्दिर बनाते हैं। पूजा करते हैं। फिर भी यहाँ-वहाँ ढूंढते रहते हैं। कह देते हैं हमारे तुम्हारे सबमें व्यापक है। उनको आरफन कहते हैं - धनी को न जानने वाले। याद करते हैं हे भगवान, परन्तु जानते नहीं। हाथ जोड़ते हैं। समझते हैं वह निराकार है। हमारी आत्मा भी निराकार है। यह आत्मा का शरीर है। परन्तु आत्मा को कोई भी जानते नहीं। कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अज़ब सितारा। अगर स्टार है तो फिर इतना बड़ा लिंग क्यों बनाते हैं! आत्मा में ही 84 जन्मों का पार्ट है। यह भी नहीं जानते हैं। इधर उधर ढूंढते धक्का खाते रहते हैं। सबको भगवान कहते हैं। बद्रीनाथ भी भगवान, कृष्ण भी भगवान, पत्थर-ठिक्कर में भी भगवान है तो फिर इतना दूर दूर ढूंढने क्यों जाते हैं। जो हमारे देवी-देवता धर्म वाला नहीं होगा वह न ब्राह्मण बनेगा, न उनको धारणा होगी। वह ऐसे ही अच्छा-अच्छा कहते रहेंगे। बाप कहते हैं बच्चे मैं तुमको साथ ले चलूंगा। जब तुम श्रीमत पर चल पहले पवित्र बनेंगे, ज्ञान की धारणा करेंगे, अपनी कर्मातीत अवस्था बनायेंगे तब ही मेरे साथ-साथ घर पहुंचेंगे। नहीं तो बीच में रुक कर बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी। मरने के बाद कई आत्मायें भटकती भी हैं। जब तक शरीर मिले तब तक भटकती हुई सजा भोगेंगी। यहाँ बहुत गन्दगी हो जायेगी - कयामत के समय। पापों का बोझा बहुत सिर पर है, सबको हिसाब-किताब तो चुक्तू करना ही है। कोई बच्चे तो अभी तक भी योग को समझते नहीं हैं। एक मिनट भी बाप को याद नहीं करते। तुम बच्चों को घड़ी-घड़ी कहा जाता है - बाबा को याद करो क्योंकि सिर पर बोझा बहुत है। मनुष्य कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है। फिर भी तीर्थ यात्रा की तरफ कितना भटकते हैं। समझते हैं यह सब कर्मकान्ड आदि करने से हमको परमात्मा से मिलने का रास्ता मिलेगा। बाप कहते हैं पतित भ्रष्टाचारी तो मेरे पास पहुंच भी नहीं सकते। कहते हैं फलाना पार निर्वाण गया, परन्तु यह गपोड़े मारते हैं। जाता कोई भी नहीं है। अभी तुम जानते हो - भक्ति मार्ग में कितने धक्के खाते हैं। यह सब शास्त्र आदि पढ़ते-पढ़ते मनुष्यों को गिरना ही है। बाप चढ़ाते हैं, रावण गिराते हैं। अब बाप समझाते हैं तुम मेरी मत पर चल पवित्र बनेंगे और अच्छी तरह पढ़ेंगे तो स्वर्ग में चलेंगे, नहीं तो इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। प्रदर्शनी की कितनी सर्विस चलती है। अब यह सर्विस बढ़ती जायेगी। गांव-गांव में जायेंगे। यह है नई इन्वेन्शन। नई-नई प्वाइंट्स निकलती रहती हैं। जब तक जीना है तब तक सीखना ही है। तुम्हारी एम आब्जेक्ट है ही भविष्य के लिए। यह शरीर छोड़ेगे तो तुम जाकर प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। स्वर्ग माना स्वर्ग। वहाँ नर्क का नाम-निशान भी नहीं। धरती भी उथल-पाथल कर नई बन जाती है। यह मकान आदि सब खत्म हो जाते हैं। कहते हैं सोने की द्वारिका नीचे चली गई। नीचे कोई जाती नहीं है। यह तो चक्र चलता है। यह तीर्थ यात्रा आदि सब भक्ति मार्ग है। भक्ति है रात। जब भक्ति की रात पूरी होती है तो ब्रह्मा आते हैं दिन करने। द्वापर कलियुग है ब्रह्मा की रात, फिर दिन होना चाहिए। तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं। सब तो एक जैसा पढ़ न सके। भिन्न-भिन्न दर्जे हैं। प्रदर्शनी में देखो कितने आते हैं। 5-7 हजार रोज़ आते हैं। फिर निकलते कौन हैं! कोटो में कोई, कोई में भी कोई। लिखते हैं - बाबा, 3-4 निकले हैं, जो रोज़ आते हैं। कोई 7 रोज़ का कोर्स भी उठाते हैं, फिर आते नहीं हैं। जो देवी-देवता धर्म के होंगे वही यहाँ ठहरेंगे। साधारण गरीब ही निकलते हैं। साहूकार तो मुश्किल ही ठहरते हैं। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। चिट्ठी भी लिखते हैं। ब्लड से भी लिखकर देते हैं। फिर चलते-चलते माया खा जाती है। युद्ध चलती है तो रावण जीत लेता है। बाकी जो थोड़ा कुछ सुनते हैं वह प्रजा में चले जाते हैं। बाबा तो समझाते रहते हैं - श्रीमत पर चलना है। जैसे मम्मा बाबा और अनन्य बच्चे पुरुषार्थ कर रहे हैं। महारथियों के नाम तो लिये जाते हैं ना! पाण्डव सेना में कौन-कौन हैं, उनका भी नाम बाला है। तो कौरव सेना के भी मुख्य का नाम बाला है। यूरोपवासी यादवों के भी नाम हैं। अखबार में भी जो नामीग्रामी हैं, उनका नाम डालते हैं। उन सबकी परमपिता परमात्मा के साथ विपरीत बुद्धि है। परमात्मा को जानें तब तो प्रीत रखें। यहाँ भी बच्चे प्रीत रख नहीं सकते। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं, फिर पद भ्रष्ट हो पड़ता है। जितना बाप को याद करेंगे, उतने विकर्म विनाश होंगे और पद ऊंचा मिलेगा। दूसरों को भी आप समान बनाना है, रहमदिल बनना है और अन्धों की भी लाठी बनना है। कोई अन्धे, कोई काने, कोई झुंझार होते हैं। यहाँ भी बच्चे नम्बरवार हैं। ऐसे फिर साधारण प्रजा में नौकर चाकर जाकर बनेंगे। आगे चलकर तुम सब साक्षात्कार करेंगे। ईश्वर को सर्वव्यापी कहना - यह कोई समझ नहीं है। ईश्वर तो ज्ञान का सागर है। वही आकर तुम्हें ज्ञान दे रहे हैं, राजयोग भी सिखला रहे हैं। श्रीकृष्ण की आत्मा, जिसने अब 84 जन्म पूरे किये हैं, अब वह राजयोग सीख रहे हैं। कितनी गुह्य बातें हैं। इस समय सभी बाप को भूलने के कारण महान दु:खी बन पड़े हैं। तुम बच्चे जितना-जितना पुरुषार्थ करेंगे, उतनी तुम्हारे से खामियां निकलती जायेंगी, बड़ी ऊंची मंजिल है। करोड़ों से 8 मुख्य निकलते हैं। फिर 108 की माला बनती है। फिर हैं 16 हजार। यह भी भीती दी जाती है - पुरुषार्थ करने के लिए। वास्तव में 16 हजार हैं नहीं। माला है 108 की। ऊपर फूल फिर युगल दाना, नम्बरवार विष्णु की माला बनती है। पुरुषार्थ कराने के लिए कितना समझाया जाता है। जो इस धर्म के नहीं होंगे तो कुछ भी समझेंगे नहीं। स्वर्ग के सुख पाने के लायक ही नहीं। भल पुजारी बहुत हैं, वह भी आयेंगे तो प्रजा में। प्रजा पद तो कुछ नहीं है। मम्मा बाबा कहते हो तो फालो कर मम्मा बाबा के तख्तनशीन बनो। हार्टफेल क्यों होते हो! स्कूल में कोई बच्चा कहे कि हम पास नहीं होंगे तो सब कहेंगे यह डल हेड है। सेन्सीबुल बच्चे बहुत अच्छा पढ़ते हैं और ऊंच नम्बर में आते हैं। तुम बच्चे प्रदर्शनी में बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हो। बाबा से भी पूछ सकते हो - बाबा मैं सर्विस करने लायक हूँ। तो बाबा बतला सकता है कि बच्चे अभी तुमको बहुत कुछ सीखना है अथवा लायक बनना है। विद्वान आदि के सामने समझाने वाले भी होशियार चाहिए। पहले-पहले तो यह निश्चय कराया जाता है कि भगवान आया हुआ है। बुलाते हो दूर देश के रहने वाले आओ, हमको साथ ले चलो क्योंकि हम बहुत दु:खी हैं। सतयुग में तो इतने सब मनुष्य होंगे ही नहीं। सभी आत्मायें मुक्तिधाम में चली जायेंगी, जिसके लिए दुनिया इतनी भक्ति करती है। बाप कहते हैं मैं सबको ले जाऊंगा। सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति। निश्चय हुआ तो जीवनमुक्त बनेंगे फिर जीवनमुक्ति में भी पद है। पुरुषार्थ करना है जीवनमुक्ति में राजा-रानी पद पायें। मम्मा-बाबा महाराजा महारानी बनते हैं तो हम क्यों न पद पायें। पुरुषार्थ करने वाले छिप नहीं सकते। सारी राजधानी स्थापन हो रही है। दैवी धर्म वाले जो भी हैं आयेंगे जरूर। मम्मा बाबा राजा-रानी बनते हैं तो हम भी क्यों न पुरुषार्थ करें।

बाबा को बच्चे पत्र लिखते हैं - बाबा कभी-कभी सेन्टर पर आता हूँ। अब बच्ची की शादी करानी है। कोई ज्ञानी लड़का लेकर दो तो शादी करावें। बच्ची कहे हम शादी नहीं करेंगी। बहुत बच्चियां मार खाती हैं। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। बाबा लिखते हैं माँ बाप और बच्चे तीनों ही बाबा के पास आ जाओ तो बाबा समझायेंगे। आदरणीय पिताश्री लिखते हो तो आ जाओ। पैसा नहीं हो, टिकेट के लिए तो वह भी मिल सकते हैं। सम्मुख आने से श्रीमत मिलेगी। कुमारी का घात तो नहीं करना है ना। नहीं तो पाप आत्मा बन पड़ेंगे। बाप की श्रीमत पर चलकर पवित्र बनना पड़े। अच्छा-

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) जीवनमुक्त पद पाने का पुरुषार्थ करना है। जैसे माँ बाप महाराजा महारानी बनते हैं, ऐसे फालो कर तख्तनशीन बनना है। सेन्सीबुल बन पढ़ाई अच्छी रीति पढ़नी है।

2) बाप से सच्ची प्रीत रखनी है। रहमदिल बन अन्धों को रास्ता दिखाना है। बाप से सम्मुख श्रीमत ले पाप आत्मा बनने से बचना और बचाना है।

वरदान:- अनेक प्रकार के भावों को समाप्त कर आत्मिक भाव को धारण करने वाले सर्व के स्नेही भव

देह-भान में रहने से अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं। कभी कोई अच्छा लगेगा तो कभी कोई बुरा लगेगा। आत्मा रूप में देखने से रूहानी प्यार पैदा होगा। आत्मिक भाव, आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति में रहने से हर एक के सम्बन्ध में आते हुए अति न्यारे और प्यारे रहेंगे। तो चलते फिरते अभ्यास करो-“मैं आत्मा हूँ'' इससे अनेक प्रकार के भाव-स्वभाव समाप्त हो जायेंगे और सबके स्नेही स्वत: बन जायेंगे।

स्लोगन:-जिसके पास उमंग-उत्साह के पंख है उसे सफलता सहज प्राप्त होती है।

🌝

No comments:

Post a Comment

I am very happy