The story of *नकारात्मकता का कचरा*

😴 😴 👉 *Night Story* 👈 😴 😴

✍ एक दिन देखता हूँ कि मोबाइल चलते-चलते कभी धीरे चलने लगता है, तो कभी हैंग होने लगता है।

एक जानकार ने बताया इसे हलका करना जरूरी है, फोन ओवरलोड हो गया है  इसलिए चलने में दिक्कत करता है।

मैंने बेकार की तस्वीरें, फाइलें, डाटा डीलीट कर दिये।

चमत्कार सा हो गया। फोन चलने ही नहीं, दौड़ने लग गया। फोन क्या चलने लगा, दिमाग का इंजन दौड़ने लगा।

मन में आया यदि अनपेक्षित सामाग्री मिटाने से एक निर्जीव फोन तीव्र गति से चल सकता है, तो मन में भरी हुई, जमी हुई अनावश्यक यादगारें, अप्रिय घटनाएँ, वैर विरोध की भावनाएँ आदि-आदि सारी नकारात्मकताएँ  मिटा दी जाएँ, भूला दी जाएं, तो आत्मा का पट सद्विचारों, सकारात्मकताओं के लिए खाली हो जाए।

👉 *जीवन बहुत छोटा है, खुल कर आनन्द से जीया जाए*

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The Story of किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे.🌹🙏🌹🙏

👉🏻 🌃 Story 📝 👈🏻

🏮 किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे. उनके घर के नजदीक ही एक मंदिर था । एक रात्रि को पुजारी के कीर्तन की ध्वनि के कारण उन्हें ठीक से नींद नहीं आयी.

सुबह उन्होंने पुजारी जी को खूब डाँटा कि ~ यह सब क्या है?

पुजारी जी बोले ~ एकादशी का जागरण कीर्तन चल रहा था.

सेठजी बोले ~ जागरण कीर्तन करते हो, तो क्या हमारी नींद हराम करोगे ? अच्छी नींद के बाद ही व्यक्ति काम करने के लिए तैयार हो पाता है फिर कमाता है, तब खाता है.

*इसके बाद पुजारी और सेठ के बीच हुआ संवाद  --*

पुजारी~सेठजी ! खिलाता तो वह खिलाने वाला ही है.

सेठजी ~ कौन खिलाता है ? क्या तुम्हारा भगवान खिलाने आयेगा ?

पुजारी ~ वही तो खिलाता है.

सेठजी ~ क्या भगवान खिलाता है ! हम कमाते हैं तब खाते हैं.

पुजारी ~ निमित्त होता है तुम्हारा कमाना, और पत्नी का रोटी बनाना, बाकी सब को खिलाने वाला, सब का पालनहार तो वह जगन्नाथ ही है.

सेठजी ~ क्या पालनहार - पालनहार लगा रखा है ! बाबा आदम के जमाने की बातें करते हो. क्या तुम्हारा पालने वाला एक - एक को आकर खिलाता है ? हम कमाते हैं तभी तो खाते हैं.

पुजारी ~ *सभी को वही खिलाता है.*

सेठजी ~ हम नहीं खाते उसका दिया.

पुजारी ~ *नहीं खाओ तो मारकर भी खिलाता है*.

सेठ ने कहा ~ पुजारी जी ! अगर तुम्हारा भगवान मुझे चौबीस घंटों में नहीं खिला पाया तो फिर तुम्हें अपना यह भजन-कीर्तन सदा के लिए बंद करना होगा.

पुजारी ~मैं जानता हूँ कि तुम्हारी पहुँच बहुत ऊपर तक है, लेकिन उसके हाथ बड़े लम्बे हैं.जब तक वह नहीं चाहता, तब तक किसी का बाल भी बाँका नहीं हो सकता आजमाकर देख लेना.

निश्चित ही पुजारी जी भगवान में प्रीति रखने वाले कोई सात्त्विक भक्त रहें होंगे. पुजारी की निष्ठा परखने के लिये सेठ जी घोर जंगल में चले गये और एक विशालकाय वृक्ष की ऊँची डाल पर ये सोचकर बैठ गये कि अब देखें इधर कौन खिलाने आता है?
चौबीस घंटे बीत जायेंगे और पुजारी की हार हो जायेगी. सदा के लिए कीर्तन की झंझट मिट जायेगी.

तभी एक अजनबी आदमी वहाँ आया. उसने उसी वृक्ष के नीचे आराम किया, फिर अपना सामान उठाकर चल दिया, लेकिन अपना एक थैला वहीं भूल गया.। *भूल गया कहो या छोड़ गया कहो*

*भगवान ने किसी मनुष्य को प्रेरणा की थी अथवा मनुष्य रूप में साक्षात् भगवान ही वहाँ आये थे यह तो भगवान ही जानें !*

थोड़ी देर बाद पाँच डकैत वहाँ पहुँचे उनमें से एक ने अपने सरदार से कहा,उस्ताद ! यहाँ कोई थैला पड़ा है.

क्या है ? जरा देखो ! खोल कर देखा, तो उसमें गरमा - गरम भोजन से भरा टिफिन!

उस्ताद भूख लगी है. लगता है यह भोजन भगवान ने हमारे लिए ही भेजा है.

अरे ! तेरा भगवान यहाँ कैसे भोजन भेजेगा ? हम को पकड़ने या फँसाने के लिए किसी शत्रु ने ही जहर-वहर डालकर यह टिफिन यहाँ रखा होगा,अथवा पुलिस का कोई षडयंत्र होगा. इधर - उधर देखो जरा,कौन रखकर गया है.

उन्होंने इधर-उधर देखा,लेकिन कोई भी आदमी नहीं दिखा.तब डाकुओं के मुखिया ने जोर से आवाज लगायी,कोई हो तो बताये कि यह थैला यहाँ कौन छोड़ गया है?

सेठजी ऊपर बैठे - बैठे सोचने लगे कि अगर मैं कुछ बोलूँगा तो ये मेरे ही गले पड़ेंगे.

वे तो चुप रहे,लेकिन *जो सबके हृदय की धड़कनें चलाता है, भक्तवत्सल है, वह अपने भक्त का वचन पूरा किये बिना शाँत नहीं रहता.*

उसने उन डकैतों को प्रेरित किया उनके मन में प्रेरणा दी कि ..'ऊपर भी देखो.' उन्होंने ऊपर देखा तो वृक्ष की डाल पर एक आदमी बैठा हुआ दिखा. डकैत चिल्लाये, अरे ! नीचे उतर!

सेठजी बोले, मैं नहीं उतरता.

क्यों नहीं उतरता,यह भोजन तूने ही रखा होगा.

सेठजी बोले,मैंने नहीं रखा.कोई यात्री अभी यहाँ आया था,वही इसे यहाँ भूलकर चला गया.

नीचे उतर!तूने ही रखा होगा जहर मिलाकर,और अब बचने के लिए बहाने बना रहा है.तुझे ही यह भोजन खाना पड़ेगा.

*अब कौन-सा काम वह सर्वेश्वर किसके द्वारा,किस निमित्त से करवाये अथवा उसके लिए क्या रूप ले,यह उसकी मर्जी की बात है.बड़ी गजब की व्यवस्था है उस परमेश्वर की.*

सेठजी बोले ~ मैं नीचे नहीं उतरूँगा और खाना तो मैं कतई नहीं खाऊँगा.

पक्का तूने खाने में जहर मिलाया है. अरे ! नीचे उतर अब तो तुझे खाना ही होगा.

सेठजी बोले ~ मैं नहीं खाऊँगा. नीचे भी नहीं उतरूँगा.

अरे कैसे नहीं उतरेगा.

सरदार ने एक आदमी को हुक्म दिया इसको जबरदस्ती नीचे उतारो

डकैत ने सेठ को पकड़कर नीचे उतारा.

ले खाना खा!

सेठ जी बोले ~ मैं नहीं खाऊँगा.

उस्ताद ने धड़ाक से उनके मुँह पर तमाचा जड़ दिया.

सेठ को पुजारी जी की बात याद आयी कि ~नहीं खाओगे तो, मारकर भी खिलायेगा.

सेठ फिर बोला ~ मैं नहीं खाऊँगा

अरे कैसे नहीं खायेगा ! इसकी नाक दबाओ और मुँह खोलो.

डकैतों ने सेठ की नाक दबायी, मुँह खुलवाया और जबरदस्ती खिलाने लगे. वे नहीं खा रहे थे, तो डकैत उन्हें पीटने लगे.

तब सेठ जी ने सोचा कि ये पाँच हैं और मैं अकेला हूँ. नहीं खाऊँगा तो ये मेरी हड्डी पसली एक कर देंगे. इसलिए चुपचाप खाने लगे और मन-ही-मन कहा ~ *मान गये मेरे बाप ! मार कर भी खिलाता है!*

डकैतों के रूप में आकर खिला, चाहे भक्तों के रूप में आकर खिला लेकिन खिलाने वाला तो तू ही है. आपने पुजारी की बात सत्य साबित कर दिखायी.

सेठजी के मन में भक्ति की धारा फूट पड़ी.

उनको मार-पीट कर ...डकैत वहाँ से चले गये, तो सेठजी भागे और पुजारी जी के पास आकर बोले ~
*पुजारी जी ! मान गये आपकी बात ~कि नहीं खायें तो वह मार कर भी खिलाता है.*

*संसार जगत में निमित्त तो कोई भी हो सकता है किन्तु सत्य यही है कि भगवान ही जगत की व्यवस्था का कुशल संचालन करते हैं ।अतः अपने जगत के आधार भगवानपर विश्वास ही नहीं बल्कि दृढ़ विश्वास होना चाहिए ।*

The story of मिट्टी का खिलौना (OM SHANTI)

  😴😴 * *एक  कहानी मिट्टी का खिलौना**  🌝🌝

*👉🏿मिट्टी का खिलौना*

एक गांव में एक कुम्हार रहता था, वो मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाया करता था, और उसे शहर जाकर बेचा करता था। जैसे तैसे उसका गुजारा चल रहा था, एक दिन उसकी बीवी बोली कि अब यह मिट्टी के खिलोने और बर्तन बनाना बंद करो और शहर जाकर कोई नौकरी ही कर लो, क्यूँकी इसे बनाने से हमारा गुजारा नही होता, काम करोगे तो महीने के अंत में कुछ धन तो आएगा। कुम्हार को भी अब ऐसा ही लगने लगा था, पर उसको मिट्टी के खिलोने बनाने का बहुत शौक था, लेकिन हालात से मजबूर था, और वो शहर जाकर नौकरी करने लगा, नौकरी करता जरूर था पर उसका मन अब भी, अपने चाक और मिट्टी के खिलोनों मे ही रहता था।

समय बीतता गया, एक दिन शहर मे जहाँ वो काम करता था,उस मालिक के घर पर उसके बच्चे का जन्मदिन था। सब महंगे महंगे तोहफे लेकर आये, कुम्हार ने सोचा क्यूँ न मै मिट्टी का खिलौना बनाऊ और बच्चे के लिए ले जाऊ, वैसे भी हम गरीबों का तोहफा कौन देखता है। यह सोचकर वो मिट्टी का खिलौना ले गया. जब दावत खत्म हुई तो उस मालिक के बेटे को और जो भी बच्चे वहा आए थे सबको वो खिलोना पंसद आया और सब जिद करने लगे कि उनको वैसा ही खिलौना चाहिए। सब एक दूसरे से पूछने लगे की यह शानदार तोहफा लाया कौन, तब किसी ने कहा की यह तौहफा आपका नौकर लेकर आया.

सब हैरान पर बच्चों के जिद के लिए, मालिक ने उस कुम्हार को बुलाया और पूछा कि तुम ये खिलौना कहाँ से लेकर आये हो, इतना मंहगा तोहफा तूम कैसे लाए? कुम्हार यह बाते सुनकर हंसने लगा और बोला माफ कीजिए मालिक, यह कोई मंहगा तोहफा नही है, यह मैने खुद बनाया है, गांव मे यही बनाकर मै गुजारा करता था, लेकिन उससे घर नही चलता था इसलिए आपके यहाँ नौकरी करने आया हूं। मालिक सुनकर हैरान हो गया और बोला की तुम क्या अभी यह खिलोने और बना सकते हो, बाकी बच्चों के लिए? कुम्हार खुश होकर बोला हाँ मालिक, और उसने सभी के लिए शानदार रंग बिरंगे खिलौने बनाकर दिए।

यह देख मालिक ने सोचा क्यूँ ना मै, इन खिलौने का ही व्यापार करू और शहर मे बेचू। यह सोचकर उसने कुम्हार को खिलौने बनाने के काम पर ही लगा दिया और बदले मे हर महीने अचछी तनख्वाह और रहने का घर भी दिया। यह सब पाकर कुम्हार और उसका परिवार भी बहुत खुश हो गया और कुम्हार को उसके पंसद का काम भी मिल गया.

इस कहानी का मूल अर्थ यह है की हुनर हो तो इंसान कभी भी किसी भी परिस्थिति मे उस हुनर से अपना जीवन सुख से जी सकता है और जग मे नाम करता है।

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How to change our thoughts or (आदत कैसे बदलें)

Om SHANTI

*🤔आदत कैसे बदलें😃*

हमारी Programming बचपन से ही हुई  होती है, ओर बचपन से ही कई Belief System बने हुए होते हैं, ओर हमारे हर Belief system का effect हमारी Body पर ओर हमारी पूरी Life पर पड़ता है ।

कुछ Belief System हम खुद  बनाते है, ज्यादातर दुनिया  को देख कर , बड़ों को देखकर, या अपनी Knowledge ओर समझ से ।

जैसे:- अगर कोई  ये समझता है कि  मेरे पास तो हमेशा पैसों कि कमी ही रहती है या रहेगी, क्योंकि किसी Astrologer ने कहा था ओर मेरी life में अगले 5 साल Problems आनी ही है क्योंकि मेरी कुंडली में लिखा है।  तो उस Person को problems आती ही रहेंगी, क्योंकि उसने अपने मन की Programming ही ऐसी कर ली है। Astrology कोई गलत नहीं है , its a Science।

अगर कोई ये समझता है मेरी ये बीमारी मेरे साथ ही जाएगी, या Bp , sugar तो सभी को ही है आज कल और इसकी दवाई तो पूरी life लेनी पड़ती है तो आपने अपने मन की ऐसी Programming कर ली है। ओर आपको पूरी Life लेनी ही पड़ेगी।

कई लोगों को गर्मी बरदाश्त नहीं होती उन्होंने मन को confirm करवा दिया है कि मुझे बहुत गर्मी लगती है, ओर ठंड भी बहुत लगती है। तो सारी बात मन की Programming की है।

आप पहले thought create करते हो फिर वो बार बार repeat करते हो फिर वैसा feel करते हो ओर फिर एक belief बन जाता है । फिर वो whole life चलता है।

But........But.......But

हम कभी भी अपना New Belief बना सकते हैं, क्योंकि जब  आप एक new thought लोगे चाहे वो Negative या positive  ओर बार बार बार बार लोगे तो तब  हमारे Brain में New Neuron  Path ways बनते है ओर जब हम उस Thought को repeat करते हैं तो वो path ways धीरे धीरे पक्के होते जाते हैं।

ओर  फिर एक नया belief System बन जाता है, इसलिए हम अपनी पुरानी से पुरानी आदत (Habit) कभी भी बदल सकते हैं, बस मेहनत तो पहले करनी पड़ती है।

जैसे हमने सुबह जल्दी उठना है but कभी उठे नहीं पहले तो कम से कम आप  21 days का प्लान बनाएं फिर उसको next 21 दिन करें ओर फिर उसको next 21 दिन करें ओर फिर उस आदत को  last  21 दिन तक लेकर जाएं यानी Continue 84 या 90 days तक।

उसके बाद आपके Subconscious mind में ये msg अच्छी तरह पहुंच जाएगा। फिर वो  पुरानी आदत हमेशा के लिए change हो जाएगी।

ओम शांति
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